केंद्र की राजनीति में विपक्ष को एकजुट करके प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाली बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने ही प्रदेश में घिरती जा रही हैं। प्रदेश में विभिन्न योजनाओं में हुए भारी घोटाले उनके सामने बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। शिक्षक भर्ती घोटाले में सीबीआई और ईडी के शिकंजे में फंसे प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री द्वारा किए करोड़ों के घोटाले की आंच उन्हें भी प्रभावित करने लगी है। इससे शर्मनाक बात क्या होगी कि हाल में कलकत्ता हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा में एक व्यक्ति की छीनी गई नौकरी के मामले में टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि बंगाल ऐसी जगह बनता जा रहा है जहां बिना रुपये के कोई काम नहीं होता।
अपने अक्खड़ व्यवहार के लिए प्रसिद्ध रहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही हैं। स्कूल सर्विस कमीशन की ओर से अवैध शिक्षक भर्ती घोटाला अकेला सरकार के सामने बड़ा संकट पैदा किये हुए है। इसमें पात्र युवकों की नियुक्ति नहीं की गई किंतु लाखों रुपये लेकर उन्हें नियुक्ति दे दी गई जो इसके योग्य नहीं थे। विरोध स्वरूप पात्र होकर भी नियुक्त न होने वाले आंदोलन करने पर उतर आए। धरने और प्रदर्शन हुए। राज्य के जिन मेधावी बेरोजगार युवाओं के सपने चकनाचूर हुए सपने हैं वे कलकत्ता की गांधी प्रतिमा के पास पिछले 508 दिनों से अनशन कर रहे हैं।
कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई की जांच में अब इस घोटाले की परत दर परत खुलने लगीं। इस मामले में पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी महिला मित्र अर्पिता गिरफ्तार हो चुकी हैं। इस घोटाले के मुख्य आरोपी पार्थ चटर्जी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के बार-बार पूछे जाने पर इस सवाल का जवाब नहीं दे रहे कि उनकी महिला मित्र के पास से बरामद 50 करोड़ रुपये गहने और जमीन-फ्लैट किसके हैं। वे बार−बार यही कहते हैं कि उनके खिलाफ षड्यंत्र किया गया है। हालांकि वह यह स्वीकार करने लगे हैं कि वह अपने दल के कई नेताओं के कहने पर भर्तियां करवाते थे। पार्थ और अर्पिता मिलकर आठ फर्जी कंपनियां चलाते थे। इनके खाते ईडी ने फ्रीज करवा दिए हैं। पार्थ की एक और महिला मित्र के नाम प्रदेश में दस फ्लैट बताए जाते हैं। गिरफ्तारी के डर से वह बांग्लादेश भागी हुई हैं।
प्रदेश में शिक्षा विभाग में इतना बड़ा घोटाला हुआ। प्रश्न है कि मुख्यमंत्री ने खुद आगे आकर क्यों नहीं कार्रवाई की। मामला हाईकोर्ट तक क्यों जाने दिया ? राजनैतिक खेमों में उनकी इस चुप्पी का कारण घोटाले के कर्ता−धर्ता पार्थ का उनके नजदीकी होना बताया जाता है। इतना ही नहीं राज्य में हुए कोयला घोटाले में ईडी ने राज्य के आठ आईपीएस अफसरों को पूछताछ के लिए दिल्ली बुलाया है। ये लोग तस्करी वाले जिलों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उधर सीबीआई ने पशु तस्करी में टीएमसी नेता अनुब्रत मंडल को गिरफ्तार कर लिया है। जहां प्रदेश का ये हाल है वहीं घोटालों और गड़बड़ी के कारण तीन अहम केंद्रीय योजनाओं- मनरेगा पीएम ग्रामीण सड़क योजना और आवास योजना- का पैसा रुका हुआ है। केंद्र का कहना यह है कि प्रदेश सरकार इस राशि के व्यय की जानकारी नहीं दे रही।
शिक्षक नियुक्ति को लेकर सरकार की प्रदेश में बहुत बदनामी हो रही है। ममता दीदी महसूस करें या न करें किंतु उनके मंत्रिमंडल के सदस्य इसे अच्छी तरह महसूस कर रहे हैं। वे मानते हैं कि शिक्षक भर्ती में हुए घोटाले से उनकी छवि बुरी तरह प्रभावित हुई है। प्रदेश सरकार के मंत्री फिरहाद हकीम ने इस बारे में साफ-साफ कहा। उन्होंने कहा कि पार्थ चटर्जी के मामले में हमें शर्म आती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम सभी भ्रष्टाचारी हैं। हमने अपना अधिकांश जीवन परिवार को न देकर सामाजिक सेवा में लगाया। ऐसा हमने इसलिए नहीं किया कि हमें भ्रष्टाचारी कहा जाए।
ममता दीदी भले ही महसूस न करें किंतु प्रदेश सरकार के मंत्री फिरहाद हकीम के कथन की सच्चाई को वह नकार नहीं सकतीं। अभी हाल ही में कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश-पीठ की टिप्पणी राज्य में फैले भ्रष्टाचार को बताने के लिए काफी है। कोर्ट ने मिराज शेख के मामले में कहा कि पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य बन गया है जहां कोई भी बिना पैसे दिए राज्य सरकार की नौकरी को सुरक्षित या बरकरार नहीं रख सकता है। न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल-न्यायाधीश पीठ ने अपनी नियुक्ति के चार महीने बाद मिराज शेख के एक सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षक की बर्खास्तगी से संबंधित फैसला सुनाते हुए पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और तृणमूल कांग्रेस के विधायक माणिक भट्टाचार्य के नाम का भी जिक्र किया।
श्री गंगोपाध्याय ने कहा शायद वादी ने माणिक भट्टाचार्य को पैसे नहीं दिए और इसलिए उनका रोजगार समाप्त कर दिया गया। पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य बन गया है जहां कोई भी बिना पैसे दिए राज्य सरकार की नौकरी हासिल नहीं कर सकता है। मिराज शेख को दिसंबर 2021 में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के एक सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। सेवा में शामिल होने के ठीक चार महीने बाद यह कहते हुए उनकी सेवा समाप्त कर दी गई कि उनके पास बोर्ड के मानदंडों के अनुसार आरक्षित श्रेणी में नियुक्त होने के लिए स्नातक में 45 प्रतिशत के योग्यता अंक नहीं हैं। शेख ने आदेश को चुनौती दी और समर्थन में उन्होंने अपना स्नातक प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया। इसमें उनके प्राप्त अंक 46 प्रतिशत थे। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और वादी द्वारा रखे गए दस्तावेजों से संतुष्ट होने के बाद न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय वादी को प्राथमिक शिक्षक के रूप में तुरंत बहाल करने का आदेश दिया। इसके बाद उन्होंने यह टिप्पणी की।