वाराणसी के ज्ञानवापी-मां शृंगार गौरी केस की सुनवाई अब मुगल बादशाह औरंगजेब के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गई है। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी का कहना है कि वर्ष 1669 में बादशाह औरंगजेब की सत्ता थी। इस तरह से उस समय की जो भी संपत्ति थी वह बादशाह औरंगजेब की थी। बादशाह औरंगजेब ने ज्ञानवापी की संपत्ति दान की तो वहां मस्जिद बनी।
वहीं वादिनी महिलाओं का कहना है कि ज्ञानवापी की संपत्ति को वक्फ की संपत्ति कहना एक बहुत बड़ी धोखाधड़ी है। अगर औरंगजेब ने ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति दान की थी तो वह डीड कोर्ट में पेश की जाए।
फिलहाल वाराणसी के जिला जज की कोर्ट में हिंदू पक्ष की दलीलों पर मुस्लिम पक्ष की जवाबी बहस बुधवार को पूरी हो जाएगी। इसके बाद मुस्लिम पक्ष की जवाबी बहस पर हिंदू पक्ष अपना प्रति उत्तर दाखिल करेगा।
मसाजिद कमेटी ने ज्ञानवापी को शाही मस्जिद आलमगीर बताया
मसाजिद कमेटी की जवाबी बहस 22 अगस्त से लगातार जारी है। बहस में एडवोकेट शमीम अहमद रईस अहमद मिराजुद्दीन सिद्दीकी मुमताज अहमद और एजाज अहमद ने कहा कि वर्ष 1936 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था। वर्ष 1944 के गजट में यह बात सामने आई थी कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम शाही मस्जिद आलमगीर है।
संपत्ति शहंशाह आलमगीर यानी बादशाह औरंगजेब की बताई गई थी। वक्फ करने वाले के तौर पर भी बादशाह आलमगीर का नाम दर्ज था। इस तरह से बादशाह औरंगजेब द्वारा 1400 साल पुराने शरई कानून के तहत वक्फ की गई (दान दी गई) संपत्ति पर वर्ष 1669 में मस्जिद बनी और तब से लेकर आज तक वहां नमाज पढ़ी जा रही है।
इसके अलावा 1883-84 में अंग्रेजों के शासनकाल में जब बंदोबस्त लागू हुआ तो सर्वे हुआ और आराजी नंबर बनाया गया। आराजी नंबर 9130 में उस समय भी दिखाया गया था कि वहां मस्जिद है कब्र है कब्रिस्तान है मजार है कुआं है। पुराने मुकदमों में भी यह डिसाइड हो चुका है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की प्रॉपर्टी है।
इसलिए मां शृंगार गौरी का मुकदमा सिविल कोर्ट में सुनवाई योग्य नहीं है। सरकार भी तो इसे वक्फ प्रॉपर्टी मानती है इसी वजह से काशी विश्वनाथ एक्ट में मस्जिद को नहीं लिया गया। वर्ष 2021 में मस्जिद और मंदिर प्रबंधन के बीच जमीन की अदला-बदली हुई वह भी वक्फ प्रॉपर्टी मान कर ही की गई। वह संपत्ति अल्लाह को मानने वालों यानी मुस्लिमों की थी है और रहेगी।
मुस्लिम पक्ष ने ज्ञानवापी से 2km दूर आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश किए हैं
हिंदू पक्ष के एडवोकेट विष्णु शंकर जैन का कहना है कि मुस्लिम पक्ष जवाबी बहस में अपनी ही दलीलों में फंस चुका है। उन्होंने कोर्ट में कागजात पेश कर बताया है कि ज्ञानवापी की संपत्ति वक्फ नंबर 100 के तौर पर दर्ज है यह एक बहुत बड़ा फ्रॉड है। उन्होंने ज्ञानवापी से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित आलमगीर मस्जिद के कागजात पेश किए हैं।
वह मस्जिद बिंदु माधव मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी। सभी जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद का नाम आलमगीर मस्जिद नहीं है। अब वह ज्ञानवापी मस्जिद को आलमगीर मस्जिद बता रहे हैं। औरंगजेब ने यदि ज्ञानवापी मस्जिद की संपत्ति का वक्फ किया था तो वह डीड लाकर दिखाई जाए लेकिन मसाजिद कमेटी नहीं दिखा पाई।
मिनिस्ट्री ऑफ माइनॉरिटी अफेयर्स की वेबसाइट में भी कहीं यह उल्लेख नहीं है कि ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की प्रॉपर्टी है। मुस्लिम पक्ष की कहानी पूरी तरह से फर्जी है और उनकी जवाबी बहस पूरी होने के बाद हम प्रति उत्तर दाखिल करेंगे तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।