ग्रीन ​कॉरिडोर ने 40 दिन में बचाई 13 जिंदगियां इमरजेंसी में एक कॉल पर ठहर जाता है पूरा शहर

ग्रीन ​कॉरिडोर ने 40 दिन में बचाई 13 जिंदगियां इमरजेंसी में एक कॉल पर ठहर जाता है पूरा शहर

गोरखपुर के लोग अब अदब लिहाज के लिए भी जाने जाएंगे। गौर करने वाली बात यह है कि यहां पर एक कॉल पर शहरवासी एक जगह ठहर जाते हैं। ग्रीन कॉरिडोर बनाकर इमरजेंसी में मरीजों की जान बचाई जा रही है। पब्लिक के सपोर्ट से ही यह संभव हो पा रहा है।


खास बात यह है कि अब तक ग्रीन कॉरिडोर के जरिए 13 जिंदगियां बचाई जा चुकी हैं। ये सुविधा केवल गंभीर मरीजों को मिलती है जिनकी जरा भी लेट होने पर जान जा सकती है। इसके अलावा नॉर्मल मरीजों के लिए ये सुविधा नहीं है।


आइए ऐसे 2 केस बताते हैं जिनकी ग्रीन कॉरिडोर से जिंदगी बचाई गई है


केस-1: 6 मिनट में अस्पताल पहुंचाकर बचाई बच्ची की जान


10 अगस्त की शाम एंबुलेंस को-ऑर्डिनेटर प्रवीण पांडे ने ट्रैफिक पुलिस से अनुरोध किया कि एक एंबुलेंस जिसका नंबर UP32 BG9500 है जिला अस्पताल को जा रही है। इसमें गोला की अमृता नाम की बच्ची है। जो हार्ट की समस्या से जूझ रही है।


उसकी सांस धीरे-धीरे थमने लगी हैं। उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोला से 108 एंबुलेंस से जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया है।​ इसके बाद सभी चौराहों पर शहरवासी ठहर गए और उस बच्ची की ग्रीन कॉरिडोर बनाकर जान बचाई गई। इस दौरान महज 6 मिनट में एंबुलेंस जिला अस्पताल पहुंची।


केस-2: 8 मिनट में मेडिकल कॉलेज पहुंची एंबुलेंस


12 अगस्त को ग्रीन कारीडोर के चलते नौसढ़ से मेडिकल कॉलेज की 13 किमी की दूरी एंबुलेंस ने मात्र 8 मिनट में तय कर ली। इससे दुर्घटना में घायल दो बच्चों की जान बचाई जा सकी। ऊरुवा किशुनपुर गांव के तीन युवक सिकरीगंज की तरफ से लौट रहे थे।


पिपरा पांडेय गांव के पास उनकी स्कूटी किसी अन्य वाहन से टकरा गई। पहले तो वह निजी साधन से घायल बच्चों को ऊरुवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए। वहां 108 नंबर एंबुलेंस को बुलाया। एक बच्चे की हालत काफी गंभीर थी।


पब्लिक करे सपोर्ट तो बचाई जा सकती है जान

SP ट्रैफिक डॉ. एमपी सिंह ने कहा कम समय में सभी चौराहों को खाली कराना बहुत ही चुनौतीपुर्ण होता है। इसम खास तौर से बाईं लेन खाली कराने में अधिक समय लगता है। पब्लिक अगर नियम से चले तो और कम समय में चौराहे खाली कर किसी को नया जीवन दिया जा सकता है।


गंभीर मरीजों को बचाने के लिए पहल

दरअसल इमरजेंसी में एंबुलेंस सेवा 108 102 के वाहन अक्सर जाम की वजह से मरीज को लेकर सड़क पर फंस जाते थे। समय से इलाज ना मिलने के कारण मरीज की मौत हो जाती थी। इसके लिए ग्रीन कॉरिडोर का प्लान तैयार किया गया।


इससे जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज तक इमरजेंसी में एंबुलेंस कम समय में पहुंच पाए। मरीजों को गंभीर हालत में उन्हें गोल्डन ऑवर में मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल पहुंचाने के लिए विशेष रूप से ग्रीन कॉरिडोर की व्यवस्था की गई।


ऐसे काम करता है ग्रीन कॉरिडोर

ट्रैफिक पुलिस के पास गंभीर मरीज की सूचना आते ही एंबुलेंस वाहनों का रास्त क्लियर करने के लिए ट्रैफिक पुलिस और जिला पुलिस का सहयोग लिया जाता है। एंबुलेंस में लगे पीए सिस्टम और नगर निगम स्थित ITMS के हेल्पलाइन नंबर 8081 208538 तत्काल केस के बारे जानकारी दी जाती है।


इसके बाद ITMS से सभी चौक पर इसकी सूचना बार- बार प्रसारित की जाती है। जब तक वाहन सभी चौराहों को पार न कर लें। चौक पर ट्रैफिक पुलिस के जवान और रास्ते में पड़ने वाले थाने पर पुलिस एंबुलेंस का रास्ता क्लियर कराती है।


बायीं लेन रखनी होती है खाली

सड़क पर चलते समय बायीं लेन खाली रखनी ही होती है। ऐसा न करने पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है। वहीं इमरजेंसी में एंबुलेंस को बायीं लेन पकड़कर चलना होता है। साथ ही जुलूस और त्योहार के समय इमरजेंसी केस को लेकर विपरीत दिशा में भी एंबुलेंस सदर अस्पताल और मेडिकल कॉलेज जा सकती है।


बायीं लेन खाली कराना चुनौती

ट्रैफिक पुलिस की मानें तो ग्रीन कॉरिडोर बनाते समय एक समस्या बार- बार आती है। यहां के लोग बायीं लेन में बार- बार मना करने के बाद भी गाड़ी खड़ी कर देते हैं। जिन्हें हटाना पड़ता है। जबकि चौराहे पर बायीं लेन खाली रखने के लिए बार-बार हिदायत दी जाती है

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