भारतीय राजनीति ने देश का बंटाधार कर रखा है। राजनीति में नैतिकता शुचिता ईमानदारी और पारदर्शिता जैसे गुण अब दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते हैं। मतदाता राजनेताओं पर भरोसा करके हर बार ठगे जाते हैं। राजनीति के इस दलदल में एक बार फिर मतदाता ठगे गए हैं। हालांकि यह ठगविद्या सीधी नहीं है किन्तु यह ठगी भावनाओं से खिलवाड़ की है जिसमें सत्ता बचाने के लिए सारे लोकतांत्रिक मूल्यों को बिसरा दिया गया है। शतरंज की यह बिसात बिछी है बिहार में इसके मोहरे हैं मुख्यमंत्री नीतिश कुमार। नीतिश कुमार के बारे में अब तक यही माना जाता रहा है कि उनकी छवि देश के दूसरे सत्ताधारी दलों के मुख्यमंत्रियों से कुछ अलग है किन्तु सत्ता के भय ने उन्हें भी सत्तालोलुप मुख्यमंत्रियों की कतार में खड़ा कर दिया। भाजपा के निगले जाने के भय से नीतिश के जनता दल युनाइटेड ने अलग होने का निर्णय ले लिया। भाजपा को छोड़ने का कोई ठोस कारण नहीं दिया गया। सिर्फ इतना बताया गया कि भाजपा बिहार में भी महाराष्ट्र की तरह अपनी ही पार्टी की सरकार बनाने की फिराक में है हालांकि इसके प्रमाण नहीं दिए गए।
राजनेताओं का यह दस्तूर हो गया है कि सत्ता हर हाल में बनी रहनी चाहिए बेशक धुर विरोधियों को ही गले क्यों न लगाना पड़े। नीतिश कुमार ने भी यही किया। भ्रष्टाचार के इतिहास में सुर्खियों पर रहे लालू प्रसाद यादव की पार्टी से नीतिश कुमार ने हाथ मिला लिया। भाजपा को छोड़ने के बाद बहुमत का आंकड़ा पूरा करने के लिए कांग्रेस को भी सत्ता में शामिल कर लिया। मतदाता इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम से ठगे रह गए। बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतिश कुमार और उनकी पार्टी के नेताओं ने लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस को कोसने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। चारा घोटाले में सजा भुगत रहे लालू यादव पर बिहार को बर्बाद करने का आरोप लगाया। कुछ इसी तरह के आरोप कांग्रेस पर लगाए गए। आश्चर्य की बात यह है कि अब यही दोनों पार्टियां नीतिश कुमार के लिए दूध की धुली हो गईं। अब दोनों ही पार्टियां बिहार और देश की बर्बादी के लिए जिम्मेदार नहीं रहीं! मतदाताओं ने नीतिश कुमार की बात पर भरोसा करते हुए भाजपा गठबंधन को बहुमत दिया। सवाल यह है कि चुनाव के दौरान जो पार्टी महाभ्रष्ट्र थी जिसे कोस कर सत्ता प्राप्त की गई अब वह अचानक पवित्र गाय कैसे बन गई। क्या अदालत ने लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टचार के मामले माफ कर दिए। क्या कांग्रेस आचरण से अब भली पार्टी बन गई। कांग्रेस का तो पूरा कुनबा ही भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहा है।
सत्ता में आने के बाद क्या राजद अपने सुप्रीमो लालू प्रसाद के भ्रष्टाचार के मामलों में दखलंदाजी नहीं करेगी। गौरतलब यह है कि नीतिश की सरकार ने सजा के दौरान उपचार के लिए गेस्ट हाउस में रहे लालू यादव को हर तरह की सुविधाएं दीं। यहां तक कि लालू यादव पार्टी का संचालन गेस्ट हाउस से कर रहे थे इस मामले में कोर्ट से तगड़ी लताड़ पड़ने के बाद ही लालू यादव से कैदियों जैसा व्यवहार किया गया। हालांकि लालू यादव ने स्वास्थ्य कारणों से कई बार जमानत देने का अनुरोध किया किन्तु कोर्ट ने उपचार कराने की छूट देकर जमानत देने से हर बार इंकार कर दिया। उसी लालू यादव की पार्टी के साथ अब नीतिश कुमार गलबहियां कर रहे हैं। कमोबेश यही हाल कांग्रेस का भी रहा। नीतिश कुमार को कांग्रेस देश की बर्बादी का कारण लगी। लोक सभा हो या विधानसभा चुनाव नीतिश ने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। अब वही कांग्रेस और लालू यादव की पार्टी की तरह अचानक साफ-सुथरी हो गई। नीतिश ने भाजपा का साथ छोड़ कर दोनों दलों का दामन पकड़ लिया।
ऐसा नहीं कि उसूलों को सत्ता की बलिवेदी पर भेंट चढ़ाए जाने का यह खेल केवल नीतिश कुमार ने ही खेला है जिस राजनीतिक दल को जहां मौका मिला मतदाताओं को दगा देने से पीछे नहीं रहे चाहे वह भाजपा हो कांग्रेस हो या दूसरे रानजीतिक दल हों। सत्तावादी विस्तार का यह कुचक्र हर कहीं रचा गया। विधायकों की खरीद-फरोख्त और मंत्री बनाए जाने का लालच लोकतंत्र को लगातार रसातल की तरफ धकेल रहा है इसकी किसी को चिंता नहीं चिंता है तो सिर्फ इस बात की हर हाल में बस सत्ता बची रही देश जाए गर्त में।