1983 क्रिकेट वर्ल्ड कप की जीत स्वतंत्रता के 75 सालों का यादगार और सुनहरा लम्हा

1983 क्रिकेट वर्ल्ड कप की जीत स्वतंत्रता के 75 सालों का यादगार और सुनहरा लम्हा

हमारे देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए हैं और पूरा भारतवर्ष इस साल आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस दौरान इन 75 सालों में भारत को खेल की दुनियां से गौरवांवित करने वाले पलों को भी हम याद कर रहे हैं। उनमें से ही एक है भारत की 1983 वर्ल्ड कप जीत। कपिल देव की अगुआई वाली उस भारतीय टीम ने उस वक्त की सबसे खतरनाक और मजबूत टीम वेस्टइंडीज को फाइनल मैच में हराकर देश को पहली बार वनडे क्रिकेट में वर्ल्ड चैंपियन बनाया था।


25 जून 1983 को कपिल देव की उस भारतीय टीम ने अपना नाम इतिहास के पन्नों पर अमर कर दिया था। यही कारण है कि आज 39 साल बाद भी हम टीम इंडिया की उस उपलब्धि को याद करके गर्व महसूस करते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम की यह जीत आजाद भारत के सबसे शानदार लम्हों में से एक है। अगर उस वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले की बात करें तो उस मैच में पहली पारी के बाद लग रहा था कि टीम इंडिया अब हार गई है। लेकिन भारतीय जांबाजों ने कम स्कोर के बावजूद घुटने नहीं टेके और हारी हुई उस बाजी को जीतकर पूरी दुनिया को चौंका दिया था।


कैसे भारत ने हारी हुई बाजी को किया था अपने नाम?

फाइनल मुकाबले में टीम इंडिया का सामना था उस दौर की सबसे खतरनाक टीम और पहले दो वर्ल्ड कप (1975 और 1979) की चैंपियन टीम वेस्टइंडीज से। भारतीय टीम जोश से भरी हुई थी क्योंकि टीम लीग राउंड में विंडीज को एक बार हरा चुकी थी लेकिन एक बार कैरेबियाई टीम ने भी भारत को हराया था। ऐसे में उम्मीद कांटे की टक्कर की थी। पूरे सीजन में भी विंडीज को भारत के अलावा किसी भी टीम ने मात नहीं दी थी। फाइनल मुकाबला शुरू हुआ और टॉस जीतकर वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लॉयड ने पहले फील्डिंग का फैसला किया।


इसके बाद भारतीय बल्लेबाज सुनील गावस्कर औक कृष्णमचारी श्रीकांत मैदान पर बल्लेबाजी के लिए उतरे। मैल्कम मार्शल और एंडी रॉबर्ट्स अपनी गेंदों से आग उगल रहे थे। इसी बीच रॉबर्ट्स ने 2 रन पर भारत को पहला झटका गावस्कर (2) को आउट कर दे दिया। इसके बाद मोहिंदर अमरनाथ (26) ने श्रीकांत (38) के साथ दूसरे विकेट के लिए 57 रन जोड़े। 59 के कुल स्कोर पर श्रीकांत आउट हुए और 90 के स्कोर पर अमरनाथ। देखते ही देखते 111 पर भारत का स्कोर था 6 विकेट। आखिरी में सैय्यद किरमानी (14) मदन लाल (17) और बलविंदर संधू (11) की बदौलत भारत का स्कोर पहुंचा 183 तक। 


वेस्टइंडीज को लगातार तीसरी बार विश्व चैंपियन बनने के लिए 184 रनों की जरूरत थी। भारतीय फैंस खामोश थे। वेस्टइंडीज का खेमा ओवरकॉन्फिडेंट था कि उनकी जीत तय है। लेकिन अंत में कुछ ऐसा हुआ कि वेस्टइंडीज उस वर्ल्ड कप से तो चूकी साथ ही आज तक उसके बाद वनडे विश्व कप अपने नाम नहीं कर पाई। भारतीय गेंदबाजों ने वो कमाल किया जिसकी शायद किसी को उम्मीद नहीं थी। कपिल देव की उस टीम कुछ ही घंटों के अंदर विश्व प्रख्यात हो गई थी। मोहिंदर अमरनाथ और मदन लाल उस जीत के हीरो बन गए थे। 


रिचर्ड्स और हेन्स ने डराया!

184 रनों का लक्ष्य चेज करने उतरी वेस्टइंडीज की शुरुआत भी डगमगाई। 5 रन पर गोर्डन ग्रीनिज आउट हुए। इसके बाद विवियन रिचर्ड्स अच्छी लय में दिख रहे थे और उनके साथ डेसमन्ड हेन्स भी ऐसा लग रहा था कि जल्दी मैच खत्म करना चाहते हैं। फिर मदन लाल ने खेल को पलटा और पहले हेन्स और फिर रिचर्ड्स को आउट कर भारतीय फैंस के चेहरे पर खुशियां लौटाईं। देखते ही देखते 66 रन पर आधी कैरेबियाई टीम पवेलियन लौट गई। 76 पर 6 विकेट के बाद मैल्कम मार्शल और जेफ डुजोन क्रीज पर टिक गए। इस बार काम किया मोहिंदर अमरनाथ ने जिन्होंने 5 रन के अंदर मार्शल और डुजोन दोनों को आउट कर दिया। भारतीय टीम और फैंस को जीत की खुशबू आने लगी थी। 


अमरनाथ का वो आखिरी विकेट

कपिल देव ने एंडी रॉबर्ट्स को आउट कर भारत को 9वीं सफलता दिलाई थी। वेस्टइंडीज की आखिरी जोड़ी मैदान पर थी और जीत के लिए चाहिए थे करीब 58 रन। जोएल गार्नर और माइकल होल्डिंग क्रीज पर थे। देखते स्कोर 140 तक पहुंच गया और रन बचे सिर्फ 44। इतने में आए मोहिंदर अमरनाथ जिन्होंने एक शानदार गेंद पर माइकल होल्डिंग को एलबीडबल्यू आउट किया और भारत की इस टीम का नाम इतिहास के पन्नों पर अमर कर दिया। इस विकेट के बाद भारत चैंपियन बन गया था। मदन लाल और मोहिंदर अमरनाथ ने 3-3 विकेट झटके थे।


आज भी देश के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की उस जीत का खास महत्व है। उस जीत के 28 साल बाद 2011 में टीम इंडिया एमएस धोनी की कप्तानी में दोबारा वनडे वर्ल्ड चैंपियन बनी। जीत वो भी खास थी लेकिन कपिल देव की उस टीम ने जिस तरह विश्व चैंपियन वेस्टइंडीज को चारों खाने चित किया था वो सिर्फ देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के क्रिकेट फैंस के लिए एक चौंकाने वाला पल था। इसलिए आजादी के अमृत महोत्सव पर कपिल देव की अगुआई वाली उस भारतीय टीम की जीत को याद करना अनिवार्य हो जाता है।

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