आल‍िया भट्ट की इस डार्क-कॉमेडी परफॉर्मेंस नाम का हीरा अंधेरे में भी चमकता है

आल‍िया भट्ट की इस डार्क-कॉमेडी परफॉर्मेंस नाम का हीरा अंधेरे में भी चमकता है

आल‍िया भट्ट (Alia Bhatt) इस साल गंगुबाई (Gangubaai) में अपनी शानदार परफॉर्मेंस के जरिए खूब तारीफें पा चुकी हैं. अभी तक स‍िर्फ एक्‍ट्रेस के तौर पर नजर आ रहीं आल‍िया पहली बार अपनी फिल्‍म डार्लिंग्‍स (Darlings) के जरिए प्रोड्यूसर भी बनी हैं. शायद यही वजह है कि आल‍िया और उनके फैंस दोनों को ही उनके प्रोडक्‍शन हाउस इटरनल सनशाइन के बैनर तले बनीं इस फ‍िल्‍म से काफी ज्‍यादा उम्‍मीदें हैं. आल‍िया शेफाली शाह (Shefali Shah) और व‍िजय वर्मा (Vijay Varma) स्‍टारर ये फिल्‍म आज नेटफ्ल‍िक्‍स (Netflix) पर र‍िलीज हो चुकी है. आल‍िया भट्ट ने अपने प्रोडक्‍शन हाउस की इस पहली फ‍िल्‍म के तौर पर घरेलू ह‍िंसा जैसे व‍िषय को चुना है, लेकिन इस सारे माहौल में भी इसका ट्रीटमेंट अब तक की क‍िसी भी कहानी से अलग कहा जा सकता है. जान‍िए कैसी है ये फ‍िल्‍म.


ये कहानी है बद्रून‍िसा (आल‍िया भट्ट) की है, ज‍िसे प्‍यार होता है हमजा (व‍िजय वर्मा) से और फ‍िर उनकी शादी हो जाती है. इस प्‍यार भरी कहानी में ट्व‍िस्‍ट तब आता है जब शराब पीते ही हमजा का दूसरा रूप सामने आता है और वह अपनी पत्‍नी को जानवरों की तरह मारता है. बद्रून‍िसा, मुंबई की एक चाल में रहती है और इसी चाल में उसकी मां (शेफाली शाह) भी रहती है जो हर द‍िन अपनी बेटी को इस शादी से बाहर न‍िकलने की सलाह देती है. लेकिन कई औरतों की तरह एक द‍िन सब ठीक हो जाएगा की उम्‍मीद में बद्रून‍िसा ये मारपीट सहती रहती है. लेकिन फ‍िर कुछ ऐसा होता है कि उसके सब्र का बांध टूट जात है और कहानी में आता है ट्व‍िस्‍ट. अब ये ट्व‍िस्‍ट क‍ितना मजेदार है ये देखने के लिए आप नेटफ्ल‍िक्‍स पर ये फिल्‍म देख सकते हैं.


सबसे पहले कहानी की बात करें तो ये कहानी घरेलू ह‍िंसा जैसे बेहद संवेदनशील मुद्दे पर है लेकिन ये कहानी दरअसल उस सच को द‍िखाती है जो अब तक की कई कहान‍ियों में म‍िस‍िंग रहा है. अक्‍सर घरेलू ह‍िंसा द‍िखाने वाली फिल्‍में एक ऐसे आदमी की कहानी द‍िखाती हैं जो हर रात या द‍िन में भी अपनी पत्‍नी को मारता है उसे जलील करता है और पत्‍नी समाज के डर से बस सालों तक ये सब सहती है. अक्‍सर ऐसी कहान‍ियों के बाद औरत के पैर की बेड़ी समाज लोक-लाज होती है. लेकिन डार्लिंग्‍स वो सच बयां करती है जो असल में सच के बेहद करीब है. बद्रून‍िसा के साथ उसकी मां है जो हर द‍िन उसे इस र‍िश्‍ते से न‍िकलने की बात करती है. पुल‍िस है जो उसे एहसास द‍िलाती है कि वो मार रहा है क्‍योंकि वह मार खा रही है. दरअसल ऐसे र‍िश्‍तों में अक्‍सर मह‍िलाएं उस द‍िन का इंतजार करती हैं जब सबकुछ ठीक हो जाता है. और अक्‍सर रात में मारने वाला आदमी नशा उतरते ही प्‍यार भी बरसाता है लाड़ भी द‍िखाता है. बस रात के जख्‍मों को अक्‍सर द‍िन में ऐसे ही भर द‍िया जाता है और औरत फ‍िर रात में नए जख्‍मों को उस द‍िन की उम्‍मीद में सालों तक सहती है जब सब ठीक हो जाएगा डार्लिंग्‍स इस मायने में काफी खास है.


न‍िर्देशक जसमीत के. रीन ने इस भाव को बखूबी पर्दे पर उतारा है. हालांकि इस डार्क कॉमेडी में जहां परफॉर्मेंस चमक रहे हैं वहीं कॉमेडी उतनी पकड़ नहीं बना पाती. दरअसल कहानी के भारीभरकम सीन्‍स में भी अगर कुछ नयापन लेकर आती हैं तो वह हैं शेफाली शाह. आल‍िया और शेफाली स्‍क्रीन पर साथ में शानदार केम‍िस्‍ट्री लेकर आती हैं. वहीं व‍िजय वर्मा ने ज‍िस तरह के पति की भूम‍िका न‍िभाई है वह काब‍िले तारीफ है. उनका ग्रे-शेड स्‍क्रीन पर साफ देखा जा सकता है.


2 घंटे 14 म‍िनट की इस फिल्‍म में शुरुआत में सीक्वेंस बहुत ज्‍यादा नहीं बदलते हैं लेकिन आख‍िरी ह‍िस्‍से में कुछ मजेदार ट्व‍िस्‍ट हैं. हालांकि ये एक मास्‍टरपीस नहीं कही जा सकती लेकिन डार्लिंग्‍स एक मजेदार कहानी को सही सलीके से कहती हुई फिल्‍म है. मेरी तरफ से इस फ‍िल्‍म को 3.5 स्‍टार.

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