आज वाराणसी में गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई जा रही है। तुलसीघाट जहां वह निवास करते थें आज वहा पर विधिवत पूजा-पाठ कर श्रीरामचरितमानस का पाठ और रामायण आरती की गई। गोस्वामी तुलसीदास वाराणसी में वह 25 साल से ज्यादा समय तक रहे। 40 से ज्यादा ग्रंथों की रचना की। यहां के तुलसीघाट स्थित पीपल के पेड़ के नीचे मानस का पूरा किष्किंधा कांड लिखा था।
यहीं उन्हें बजरंग बली का साक्षात्कार भी हुआ जहां संकट मोचन मंदिर बना। गोस्वामी तुलसीदास ने 1680 में अस्सी नदी और गंगा के किनारे अपना शरीर त्यागा था। आज अस्सी नदी नहीं बल्कि नाला है। उनके देह त्याग पर एक चौपाई भी लिखी हुई है संवत सोलह सौ असी असि गंग के तीर श्रावण शुक्ल सप्तमी तुलसी तज्यो सरीर। बाद में उस जगह का नाम तुलसीघाट पड़ गया।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सोशल साइंस के पूर्व डीन प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्रा बताते हैं कि उनके प्रभाव को सुनकर स्वयं बादशाह अकबर 1594 ई. में काशी आए। अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल भी मौजूद थे। अकबर ने उसी भेट के बाद 1604 में रामसिया नाम से एक सोने का सिक्का छपवाया। इस सिक्के में एक तरफ भगवान राम और सीता का चित्र तो दूसरी ओर नागरी लिपि में राम-सिय अंकित कराया गया है। भगवान राम इस सिक्के पर हाथ में धनुष लिए हैं और माता सीता फूल। बताया जाता है कि श्रीरामचरितमानस की मूल प्रति तुलसीदास ने राजा टोडरमल को भेंट की थी। इस समय काशीराज के सरस्वती भंडार कक्ष के लॉकर में रखी हुई है।
श्रीरामचरित मानस लेखन की शुरुआत अयोध्या में विक्रम संवत 1639 यानी कि 1547 ई. को रामनवमी पर हुई। मानस को पूरा करने में 2 साल 7 महीने और 26 दिन लगे थे। उन्होंने इसे संवत् 1633 यानी कि 1576 ई. में मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष पर राम विवाह के दिन पूर्ण किया।
शिव द्रोही मम दास कहावा
प्रो. मिश्रा बताते हैं कि तुलसी दास ने कहा शिव की नगरी काशी में उन्होंने शैव शाक्त और वैष्णव को एक सूत्र में बांधा। उस समय इन मतों के अनुयायियों के बीच काफी मतभेद थे। राम भक्त कई बार शिव की पूजा का विरोध करते थे। यह देख तुलसीदास ने रचा शिव द्रोही मम दास कहावा। सो जन मेहि सपनेहु नहि भावा। यानी जो रामभक्त शिव से शत्रुता रखता है वह मुझे फूटी आंख भी नहीं सुहाता है।
गोस्वामी की यादें आज भी सुरक्षित
काशी में आज भी तुलसीदास की यादें सहेज कर रखीं गईं हैं। यहां उनकी चौकी जिस पर वह आराम करते थे। जिस नाव से गंगा पार करते थे उसका टूकड़ा खड़ाऊं और उनके द्वारा स्थापित बाल हनुमान की प्रतिमा। यहां आज भी दोनों पहर विधिवत पूजा-पाठ होती है। भक्त और पर्यटक दूर-दूर से दर्शन-पूजन को आते हैं।
40 ग्रंथों की रचना की
तुलसीदास ने कुल 40 ग्रंथों की रचना की है। हिंदी साहित्य के पुरोधा आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसमें से 12 ग्रंथों को प्रामाणिक माना है। इसमें दोहावली कवितावली कृष्ण गीतावली गीतावली रामचरित मानस पार्वती मंगल जानकी मंगल रामाझाप्रश्न नुमान बाहुक विनय पत्रिका वैराग्य संदीपनी और रामलला नहछू।
शौच करने जाते थे काशी से बाहर
प्रो. मिश्रा ने बताया कि तुलसीदास काशी को इतना पवित्र मानते थे कि कभी भी शौच और लघु शंका यहां नहीं करते थे। वह नाव से नदी पारकर जाते थे।