भारतीय वायुसेना का विमान मिग-21 एक बार फिर चर्चा में है। बहादुरी के कई कारनामे दिखा चुका यह विमान हाल के वर्षों में हमारे कई बहादुर पायलटों की जान ले चुका है। इसलिए मांग की जा रही है कि इसे वायुसेना के बेडे से तत्काल हटाया जाये। मिग-21 में अक्सर प्रशिक्षण उड़ानें संचालित होती हैं और अक्सर ही ये विमान हादसे का शिकार हो जाता है जिससे हमारे युवा पायलटों की जान चली जाती है। इस बात को लेकर उन परिवारों में आक्रोश भी है जिन्होंने अपने बच्चों को खोया है। मिग-21 की उड़ता ताबूत वाली छवि पुख्ता होते देख अब भारतीय वायुसेना ने भी निर्णय लिया है कि वह अपने बेड़े में बचे चार मिग-21 लड़ाकू स्क्वाड्रन को चरणबद्ध तरीके से हटा देगी। वायुसेना ने इसके लिए अगले तीन वर्षों यानि 2025 तक की समयसीमा तय की है। बताया जा रहा है कि इनमें से एक स्क्वाड्रन को इसी साल सितंबर में हटाए जाने की उम्मीद है। यही नहीं वायुसेना अगले पांच वर्षों में मिग-29 लड़ाकू विमानों के तीन स्क्वाड्रन को भी चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना बना रही है। हम आपको बता दें कि वायुसेना सूत्रों का कहना है कि सोवियत मूल के विमान बेड़े को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना वायुसेना के आधुनिकीकरण अभियान का हिस्सा है और इस कदम का राजस्थान के बाड़मेर में हुई मिग-21 की दुर्घटना से कोई संबंध नहीं है।
बताया जा रहा है कि श्रीनगर स्थित स्क्वाड्रन नंबर 51 के लिये 30 सितंबर की नंबर प्लेट तैयार होगी। नंबर प्लेट का संदर्भ एक स्क्वाड्रन को हटाए जाने से होता है। एक स्क्वाड्रन में आम तौर पर 17-20 विमान होते हैं। इस स्क्वाड्रन को सोर्डआर्म्स के तौर पर भी जाना जाता है। भारतीय वायुसेना के बेड़े में मिग विमान 1963 से हैं और फिलहाल करीब 70 मिग-21 लड़ाकू विमान और 50 मिग-29 विमान हमारी वायुसेना के पास हैं। मिग-21 लंबे समय तक भारतीय वायुसेना के मुख्य लड़ाकू विमान रहे हैं। हालांकि इस विमान का हाल का सुरक्षा रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है। मिग-21 के क्रैश रिकॉर्ड को देखते हुए इसे फ्लाइंग कॉफिन यानि उड़ता ताबूत नाम भी दिया गया है। इस विमान की खासियतों की बात करें तो रिपोर्टों के मुताबिक सन् 1959 में बना मिग-21 विमान अपने समय में सबसे तेज गति से उड़ान भरने वाले पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में शुमार था। इसकी तेज गति के कारण ही अमेरिका भी इससे डरता था। हम आपको बता दें कि मिग-21 इकलौता ऐसा विमान है जिसका प्रयोग दुनियाभर के करीब 60 देशों ने किया है।
जहां तक मिग-21 के विमान के भारत के लिए किये गये बड़े कारनामों की बात है तो आपको बता दें कि इसकी स्क्वाड्रन 1999 के करगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन सफेद सागर के अलावा भारत द्वारा किये गये बालाकोट हवाई हमले के एक दिन बाद पाकिस्तान की तरफ से 27 फरवरी 2019 को की गई जवाबी कार्रवाई के खिलाफ अभियान में भी शामिल थी। विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान स्क्वाड्रन नंबर 51 से ही थे और उन्होंने हवाई झड़प के दौरान दुश्मन के एक लड़ाकू विमान को मार गिराया था। तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने इसके लिये उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया था।
मिग-21 के पराक्रम की चर्चा तो खूब रही लेकिन जिस प्रकार इस सप्ताह राजस्थान के बाडमेर में एक और हादसे में दो पायलटों- हिमाचल प्रदेश के रहने वाले विंग कमांडर एम राणा और जम्मू के रहने वाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट अद्वितीय बल की जान चली गयी उसको देखते हुए पुराने हो चुके मिग विमान एक बार फिर से आलोचनाओं के घेरे में हैं। फ्लाइट लेफ्टिनेंट अद्वितीय बल के परिजन विमान हादसे में उनकी मौत को लेकर गहरे सदमे में हैं लेकिन उन्हें इस बात का इससे ज्यादा अफसोस है कि अद्वितीय दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद होने के बजाय एक पुराने विमान को उड़ाते हुए मारे गये। अद्वितीय बल के परिजनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से आग्रह किया है कि पुराने पड़ चुके मिग-21 जेट विमानों के पूरे बेड़े को तत्काल सेवामुक्त कर दिया जाए ताकि और युवाओं की जान न जाए।
कई राजनेता भी समय-समय पर मिग-21 को भारतीय वायुसेना के बेडे से हटाने की मांग करते रहे हैं। बाडमेर की घटना के बाद भाजपा सांसद वरुण गांधी ने एक ट्वीट में कहा बाड़मेर में हुई घटना से पूरा देश स्तब्ध व शोकाकुल है! कुछ वर्षों से मिग-21 लगातार हादसों का शिकार हो रहा है। यह अकेला लगभग 200 पायलटों की जान ले चुका है। आखिर यह उड़ता ताबूत कब हमारे बेड़े से हटेगा? उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा देश की संसद को सोचना होगा कि क्या हम अपने बच्चों को यह विमान उड़ाने देंगे?
बहरहाल यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इसी साल मार्च में रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने राज्यसभा में कहा था कि पिछले पांच वर्षों के दौरान तीनों सेनाओं में विमान और हेलीकॉप्टर दुर्घटना में 42 रक्षाकर्मियों की मौत हो चुकी है। उन्होंने बताया था कि गत पांच वर्षों में वायु दुर्घटनाओं की कुल संख्या 45 थी जिसमें से 29 में वायुसेना के कर्मी शामिल थे।