प्राचीन काल में अनेकों हिंदू राजाओं ने अपने राज्य की सीमाओं के भीतर विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। जिनमें से बहुत से प्राचीन मंदिर वर्तमान दौर में भी मौजूद हैं। ऐसा ही एक महाभारतकालीन प्राचीन मंदिर भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर में स्थित है जो माता सरस्वती को समर्पित है। 1971 की जंग के अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच हर जंग की शुरुआत छलावे से हुई। चाहे वो आजादी के बाद कश्मीर हड़पने की साजिश हो या 1965 में स्थानीय बगावत छेड़ने की कोशिश। या फिर कारगिल का ऑपरेशन विजय। लेकिन 1948 के कबायिली हमले में भारत ने एक ऐसी धरोहर गंवाई है जिसका दुख हमेशा रहेगा। उस धरोहर का नाम शारदा शक्तिपीठ है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान के बाद ये मंदिर एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। मां शारदा का ये मंदिर उस दौर में कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आस्था का केंद्र था। राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि अमरनाथ भारत में और मां शारदा पीठ पीओके में कैसे हो सकता है? ये बयान अपने आप में बेहद ही महत्वपूर्ण है क्योंकि राजनाथ सिंह उस सरकार के मंत्री हैं जो एक नहीं बल्कि दो-दो बार पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक कर चुकी है। ये वो सरकार है जो संसद में चिल्लाकर कहती है कि हम पीओके को कभी नहीं भूल सकते हैं। ऐसे में अब चर्चा ये तेज हो चली है कि क्या अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत में शामिल करने का वक्त आ गया है।
राजनाथ सिंह ने किस शारदा पीठ का जिक्र किया?
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भारत का हिस्सा बताते हुए शारदा पीठ जहां हिंदू देवी सरस्वती के मंदिर के अवशेष हैं उसका जिक्र किया। उन्होंने कहा कि शिव स्वरूप जम्मू कश्मीर के इस तरफ रहें और पीओजेके की तरफ शक्ति स्वरूप रहें ये कैसे हो सकता है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बताते हुए उन्होंने कहा कि ये इस देश का हिस्सा बना रहेगा। बता दें कि शारदा का प्राचीन मंदिर (जिसे शारदा या शारदा भी कहा जाता है) 18 महा शक्ति पीठों में से एक है और इसे हिंदू देवी सरस्वती का निवास माना जाता है। मंदिर को कभी वैदिक कार्यों शास्त्रों के उच्च शिक्षा के प्रमुख केंद्रों में से एक माना जाता था। ये मान्यता है कि इसी स्थान पर देवी सती का दाहिना हाथ गिरा था। इसलिए ये स्थान 18 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां पर देवी के सरस्वती स्वरूप की पूजा होती है। शारदा मंदिर और यहां का विश्वविद्यालय किसी जमाने में वेदों के अध्यन का सबसे बड़ा केंद्र हुआ करता था। इसकी मान्यता नालंदा और तक्षशिला दोनों के समान थी। कश्मीरी पंडितों द्वारा पूजनीय प्रतिष्ठित तीर्थ विभाजन के बाद से अलग हो गया। ये और शारदा विश्वविद्यालय के निकटवर्ती खंडहर मुजफ्फराबाद से 160 किमी दूर नीलम घाटी में स्थित हैं। द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार ये एक छोटे से गाँ शारदी या सरडी में नियंत्रण रेखा के ठीक सामने स्थित है जहाँ नीलम (किशनगंगा) नदी मधुमती और सरगुन धाराओं के साथ मिलती है।
क्य है मंदिर के पीछे की कहानी?
शारदा पीठ की नींव के पीछे की कहानी उस समय की है जब कश्मीरी पंडितों ने अपनी प्राकृतिक सुंदरता की भूमि को एक बौद्धिक केंद्र में बदल दिया जिसे शारदा पीठ या सर्वज्ञानपीठ के नाम से जाना जाता है। देवी शारदा को कश्मीरा-पुरवासनी भी कहा जाता था। 1947 में विभाजन के बाद से मंदिर पूरी तरह से वीरान हो गया है। देवी शारदा को कश्मीरा-पुरवासनी भी कहा जाता है। शिक्षाविदों के बीच ये भी माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 723 ई में राजा ललितादित्य ने किया था क्योंकि इसकी वास्तुकला डिजाइन और निर्माण शैली में अनंतनाग में मार्तंड मंदिर जैसी दिखती है। उत्तरार्द्ध भी ललितादित्य द्वारा नियुक्त किया गया था।
धीरे-धीरे जर्जर होता गया मंदिर
मंदिर के पास दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक के खंडहर पाए जा सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि शारदा विश्वविद्यालय की अपनी लिपि थी जिसे शारदा के नाम से जाना जाता था और इसमें 5000 से अधिक विद्वान और सबसे बड़ा पुस्तकालय था। 14वीं शताब्दी तक इस मंदिर ने प्राकृतिक आपदाओं की वजह से काफी नुकसान झेला। जिसमें बाद में विदेशी आंक्राताओं ने भी अपना योगदान दिया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भारत में मुस्लिम शासन के दौरान शारदा पीठ को लगातार नजरअंदाज किया गया और मंदिर के विकास कार्यों को दबाने की भी कोशिश हुई। जिसकी वजह से ये धीरे-धीरे जर्जर होता गया। 2005 में पीओके के हिस्से में आए भूकंप की वजह से भी इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था।
शारदा मंदिर को फिर से स्थापित करने का प्रयास
कश्मीरी पंडित लंबे समय से करतारपुर जैसा कॉरिडोर बनाने की मांग कर रहे हैं। पिछले साल एलओसी से 500 मीटर दूर टिटवाल गांव के निवासियों ने मंदिर निर्माण के लिए सेव शारदा कमेटी को जमीन का एक टुकड़ा सौंपा था। ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार प्राचीन स्थल से लगभग 136 किमी दूर इस भूमि पर एक मंदिर एक मस्जिद और एक गुरुद्वारा का निर्माण किया जा रहा है। 1947 तक प्राचीन मंदिर स्थल के लिए एक वार्षिक तीर्थयात्रा हुआ करती थी। हालांकि इस क्षेत्र पर पाकिस्तान के कब्जे के बाद यह बंद हो गया। साल 2007 में देश के पूर्व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी ने पाकिस्तान सरकार से शारदा पीठ के जीर्णोद्धार की मांग की थी। -अभिनय आकाश