मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरू करवा कर इतिहास रचने जा रही है शिवराज सरकार

मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरू करवा कर इतिहास रचने जा रही है शिवराज सरकार

आजादी के 75वें साल में मैकाले की गुलामगिरी वाली शिक्षा पद्धति बदलने की शुरुआत अब मध्य प्रदेश से हो रही है। इसका श्रेय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग को है। मैंने पिछले साठ साल में म.प्र. के हर मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि मेडिकल और कानून की पढ़ाई वे हिंदी में शुरू करवाएं लेकिन मप्र की वर्तमान सरकार भारत की ऐसी पहली सरकार है भारत की शिक्षा के इतिहास में जिसका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।

भारत के प्रधानमंत्री शिक्षा मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री म.प्र. से प्रेरणा ग्रहण करें और समस्त विषयों की उच्चतम पढ़ाई का माध्यम भारतीय भाषाओं को करवा दें तो भारत को अगले एक दशक में ही विश्व की महाशक्ति बनने से कोई ताकत रोक नहीं सकती है। विश्व की जितनी भी महाशक्तियाँ हैं उनमें उच्चतम अध्ययन और अध्यापन स्वभाषा में होता है। डॉक्टरी की पढ़ाई मप्र में हिंदी माध्यम से होने के कई फायदे हैं। पहला तो यही कि फेल होने वालों की संख्या एकदम घटेगी। दूसरा छात्रों की दक्षता बढ़ेगी। 70-80 प्रतिशत छात्र हिंदी माध्यम से पढ़कर ही मेडिकल कॉलेजों में भर्ती होते हैं। इन्हें चिकित्सा-पद्धति को समझने में आसानी होगी। तीसरा मरीज़ों की ठगाई कम होगी। चिकित्सा जादू-टोना नहीं बनी रहेगी। चौथा मरीज़ों और डॉक्टरों की बीच संवाद आसान हो जाएगा। पांचवां सबसे ज्यादा फायदा उन गरीबों पिछड़ों अनुसूचितों के बच्चों को होगा जो अंग्रेजी के चलते डॉक्टर नहीं बन पातें।

मप्र सरकार के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने मेडिकल शिक्षा की किताबें हिंदी में तैयार करवाने के लिए जो कमेटी बनाई है उससे मेरा सतत संपर्क बना रहता है। कुछ पुस्तकें मूल रूप से हिंदी में तैयार हो गई हैं और कुछ के अनुवाद भी हो गए हैं। सितंबर के आखिर में शुरू होने वाले नए सत्र से छात्रों को हिंदी माध्यम की छूट मिल जाएगी। हिंदी की पुस्तकों में अंग्रेजी मूल तकनीकी शब्दों से परहेज नहीं किया जाएगा। जो छात्र अंग्रेजी माध्यम से पढ़ना चाहेंगे उन्हें छूट रहेगी। मप्र के चार हजार मेडिकल छात्रों में से अब लगभग सभी स्वभाषा के माध्यम से पढ़ना चाहेंगे। यदि ऐसा होगा तो हिंदी में कई नए-नए मौलिक ग्रंथ भी हर साल प्रकाशित होते रहेंगे। यदि इस मेडिकल की पढ़ाई को और भी अधिक उपयोगी बनाना हो तो मेरा सुझाव यह भी है कि एक ऐसी नई चिकित्सा-उपाधि तैयार की जाए जिसमें एलोपेथी आयुर्वेद हकीमी होमियोपेथी और प्राकृतिक चिकित्सा के पाठ्यक्रम मिले-जुले हों ताकि मरीजों का यदि एक दवा से इलाज न हो तो दूसरी दवा से होने लगे।

यदि हमारी चिकित्सा में ऐसा कोई क्रांतिकारी परिवर्तन मध्य प्रदेश की सरकार करवा सके तो अन्य प्रदेशों की सरकारें और केंद्र सरकार भी पीछे नहीं रहेंगी। यह विश्व को भारत की अनुपम देन होगी। यह चिकित्सा पद्धति इतनी सुलभ और सस्ती होगी कि भारत और पड़ोसी देशों के गरीब से गरीब लोग इसका लाभ उठा सकेंगे। एक बार फिर दुनिया भर के छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए भारत आने लगेंगे जैसे कि वे सदियों पहले विदेशों से आया करते थे

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