उच्चतम न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके तहत गुरुग्राम की डीएलएफ सिटी में अनधिकृत एवं अवैध निर्माण को हटाने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि यह निर्देश उन संपत्ति मालिकों को सुनवाई का अवसर दिए बिना जारी किया गया था, जिन्हें मुकदमों में पक्षकार नहीं बनाया गया था।
पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में, उच्च न्यायालय की ओर से जारी निर्देश, चाहे वह दीवानी अदालत के अधिकार क्षेत्र के संबंध में हो या निर्माणों को हटाने के, याचिकाकर्ताओं को रिट याचिका में पक्षकार बनाए बिना दिया गया प्रतीत होता है। उसने कहा, “यह कहने की जरूरत नहीं है कि निष्पक्ष रूप से न्याय सुनिश्चित करने के लिए सुनवाई का अवसर दिया जाना अनिवार्य है और अदालत को किसी भी ऐसे पक्ष के अधिकारों पर फैसला नहीं देना चाहिए, जिनका पक्ष नहीं सुना गया हो।”
हालांकि, पीठ ने 28 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा कि आवासीय संपत्ति पर वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए मानदंडों, नियमों और विनियमों के विपरीत निर्मित अनधिकृत या अवैध निर्माण को संरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
उसने कहा, “हम स्पष्ट करते हैं कि अगर कोई भी प्रभावित व्यक्ति निर्दिष्ट समय के भीतर उच्च न्यायालय में आवेदन करता है, तो उसे भी (सुनवाई में) शामिल होने की अनुमति दी जाएगी।
राज्य के प्राधिकारी प्रभावित व्यक्तियों को जनहित याचिका में शामिल करने के लिए इस आदेश का व्यापक प्रचार करने के लिए स्वतंत्र हैं।” पीठ ने कहा कि अगर प्रभावित व्यक्ति दो हफ्ते में सुनवाई में शामिल होने के लिए आवेदन नहीं करते हैं, तो उच्च न्यायालय इस मुद्दे पर विचार करने और निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।
उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को हरियाणा शहरी क्षेत्र विकास एवं विनियमन अधिनियम 1975 की धारा-15 के तहत दो महीने के भीतर कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के समक्ष मामले का विस्तृत सार पेश किया था, जिसमें गुरुग्राम क्षेत्र के विभिन्न निवासियों के निर्माण में कई उल्लंघन करने का संकेत दिया गया था।
