29 अक्टूबर 2025 का दिन भारतीय वायुसेना और पूरे राष्ट्र के लिए एक विशेष दिन के रूप में याद किया जाएगा। भारत की राष्ट्रपति और सशस्त्र बलों की सर्वोच्च कमांडर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने हरियाणा के अंबाला वायुसेना स्टेशन से राफेल लड़ाकू विमान में उड़ान भरकर इतिहास रच दिया। यह वही अंबाला एयरबेस है, जहां फ्रांस से आए राफेल विमानों की पहली खेप उतरी थी। लगभग 30 मिनट तक चली इस उड़ान में राष्ट्रपति ने करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय की, जो 15,000 फीट की ऊँचाई और लगभग 700 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पर संपन्न हुई। विमान को 17 स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर ग्रुप कैप्टन अमित गहाणी ने संचालित किया।
राष्ट्रपति ने उड़ान के बाद अपने विचार व्यक्त करते हुए आगंतुक पुस्तिका में लिखा— “राफेल विमान में उड़ान भरना मेरे लिए अविस्मरणीय अनुभव है। इससे मुझे राष्ट्र की रक्षा क्षमता पर गर्व की नई अनुभूति हुई है।” इस प्रकार, यह केवल एक प्रतीकात्मक उड़ान नहीं थी, बल्कि राष्ट्र के आत्मविश्वास, सामरिक शक्ति और नागरिक गर्व का सशक्त संदेश थी।
हम आपको बता दें कि राफेल भारत की सामरिक शक्ति का आधुनिक प्रतीक है। 4.5 पीढ़ी का यह मल्टीरोल लड़ाकू विमान वायुसेना की परिचालन क्षमता को कई गुना बढ़ाता है। राष्ट्रपति का राफेल में उड़ान भरना एक औपचारिक या औपचारिकता-भर कदम नहीं, बल्कि यह संकेत है कि राष्ट्र के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति देश की रक्षा तैयारियों पर पूर्ण विश्वास व्यक्त कर रहा है।
भारत की राष्ट्रपति, जो संवैधानिक रूप से सशस्त्र बलों की सर्वोच्च कमांडर हैं, उनका ऐसे लड़ाकू विमानों में उड़ान भरना सैन्य बलों के मनोबल को बढ़ाता है। साथ ही यह एक स्पष्ट संदेश है कि भारत अपने रक्षात्मक ढाँचे को लेकर न केवल सजग है, बल्कि उस पर गर्व भी करता है।
राफेल जैसे अत्याधुनिक विमान में राष्ट्रपति की उपस्थिति से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी यह संदेश जाता है कि भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा और वायु सामर्थ्य के मामले में किसी भी चुनौती से पीछे हटने वाला नहीं है।
इसके अलावा, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का व्यक्तित्व स्वयं में संघर्ष, सादगी और उपलब्धि का प्रतीक है। ओडिशा के एक छोटे आदिवासी परिवार से निकलकर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुँचना अपने आप में प्रेरक कथा है। जब वह सुखोई-30 एमकेआई (2023) के बाद अब राफेल जैसे उच्च तकनीकी लड़ाकू विमान में उड़ान भरती हैं, तो यह दृश्य करोड़ों महिलाओं और आदिवासी युवाओं के लिए आत्मबल और आत्मविश्वास का स्रोत बनता है।
विशेष रूप से महिलाओं के लिए यह संदेश अत्यंत सशक्त है कि राष्ट्र की सुरक्षा, तकनीकी शक्ति और निर्णय क्षमता के क्षेत्र में अब लैंगिक भेद की दीवारें टूट चुकी हैं। एक महिला राष्ट्रपति का अत्याधुनिक लड़ाकू विमान में उड़ान भरना इस बात का प्रमाण है कि महिलाएँ अब केवल ‘संवेदनशीलता’ का प्रतीक नहीं, बल्कि ‘साहस’ और ‘संकल्प’ की मिसाल भी हैं।
आदिवासी समाज के लिए यह गौरव का क्षण है। दशकों से समाज के हाशिए पर रहे तबकों के लिए यह दृश्य ‘राष्ट्रीय मुख्यधारा में समान भागीदारी’ की अभिव्यक्ति है। जब देश की सर्वोच्च नेता आदिवासी समुदाय से आती हैं और आधुनिकतम सैन्य तकनीक के बीच आत्मविश्वास से भरी दिखाई देती हैं, तो यह सामाजिक मनोविज्ञान को गहराई से प्रभावित करता है। इससे यह संदेश जाता है कि अब कोई भी पृष्ठभूमि प्रगति और नेतृत्व की राह में बाधा नहीं बन सकती।
इसके अलावा, राष्ट्रपति का यह कदम केवल सैन्य प्रतीक नहीं, बल्कि एक राष्ट्रनैतिक वक्तव्य भी है। यह भारत की आत्मनिर्भरता और तकनीकी प्रगति के मार्ग पर विश्वास का उद्घोष है। “नारी शक्ति” और “जनजातीय गौरव” को केंद्र में रखकर यह दृश्य भारत के बदलते समाज की नई कहानी कहता है— जहाँ संवैधानिक गरिमा, तकनीकी श्रेष्ठता और सामाजिक समावेशन का संगम दिखाई देता है।
साथ ही, भारतीय वायुसेना के लिए यह अवसर आत्मगौरव का भी है। एक राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू का राफेल में उड़ान भरना वायुसेना के प्रशिक्षण, अनुशासन और तकनीकी दक्षता पर सर्वोच्च विश्वास का प्रमाण है। यह संदेश सैन्य परंपरा की निरंतरता और आधुनिकता के मेल का है— जहाँ संवैधानिक संस्थाएँ और सशस्त्र बल एकजुट होकर राष्ट्र सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं।
राष्ट्रपति मुर्मू का यह कदम भारत के उन तमाम युवाओं को भी प्रेरित करेगा जो रक्षा सेवाओं में योगदान देने का सपना देखते हैं। जब देश की प्रथम नागरिक स्वयं युद्धक विमान में उड़ान भरती हैं, तो यह युवाओं के भीतर ‘कर्तव्य’, ‘साहस’ और ‘सेवा’ के आदर्श को पुनः जीवंत करता है।
बहरहाल, द्रौपदी मुर्मू का राफेल में उड़ान भरना मात्र एक प्रतीकात्मक घटना नहीं, बल्कि एक युगबोध है। यह उस भारत की कहानी है जो अपनी परंपरा को सम्मान देता है, आधुनिकता को अपनाता है और समावेशन को अपनी शक्ति बनाता है।
यह उड़ान एक संदेश है-
भारत की नारी अब आकाश की सीमा तक पहुँच चुकी है
आदिवासी समाज अब राष्ट्रीय गौरव की धारा में अग्रणी है
और भारत की सुरक्षा व संप्रभुता पर देश का सर्वोच्च नेतृत्व स्वयं प्रहरी बनकर खड़ा है।
यही है नई भारत की उड़ान— आत्मगौरव, समावेश और सामर्थ्य की उड़ान।

 
	
	

