बिहार में कुछ ही दिनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारी में जुटी हुए हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच होना है। हालांकि दोनों ही गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर अभी भी फाइनल बातचीत नहीं हो सकी है। बात एनडीए की करें तो उसके लिए चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही है। दावा किया जा रहा है की सीट बंटवारे को लेकर केंद्रीय मंत्री और लोजपा (रामविलास) प्रमुख चिराग पासवान अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।
माना जा रहा है कि चिराग पासवान पिछले साल लोकसभा चुनाव में बिहार में अपनी पार्टी के 5/5 के प्रदर्शन के बाद इस बार अच्छी-खासी सीटें जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। एनडीए के बड़े दलों, भाजपा और जदयू पर दबाव बनाए रखने के अपने प्रयास के तहत, पासवान ने राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार सरकार की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है। सूत्रों के अनुसार पासवान ने सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान अपनी पार्टी के लिए 40 विधानसभा सीटों की माँग की है। भाजपा ने उन्हें अधिकतम 25 सीटों की पेशकश की है, लेकिन युवा नेता कड़ी मोलभाव कर रहे हैं।
लोजपा (रामविलास) प्रमुख नरेंद्र मोदी सरकार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हैं और भविष्य में अपनी पार्टी को और अधिक लोकप्रियता दिलाने के लिए केंद्र में बड़ी भूमिका की मांग कर सकते हैं। भाजपा इस बात से भी अवगत है कि चिराग पासवान की पार्टी को बहुत अधिक रियायतें देने से उसके अन्य सहयोगी, खासकर जदयू, नाराज़ हो सकती हैं। चिराग पासवान का नीतीश कुमार के साथ तीखे तेवर अपनाने का इतिहास रहा है, और भाजपा, जिसे केंद्र में जदयू का समर्थन प्राप्त है, अपने प्रमुख को नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठा सकती।
रामविलास पासवान के निधन के ठीक बाद हुए 2020 के बिहार चुनाव में, अविभाजित लोजपा ने अकेले चुनाव लड़ा। उसने एक सीट जीती, लेकिन नौ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही, जिससे उसे 5.6 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिले और एनडीए को नुकसान हुआ। भाजपा जानती है कि चिराग पासवान इस बार और भी ज़्यादा नुकसान पहुँचा सकते हैं, और वह संकेत दे रहे हैं कि अगर उनकी सीट-बंटवारे की माँगें पूरी नहीं हुईं, तो वह अकेले चुनाव लड़ सकते हैं।
हालाँकि चिराग पासवान ने सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री पद की इच्छा व्यक्त नहीं की है, लेकिन वे भविष्य में खुद को शीर्ष पद के दावेदार के रूप में पेश कर रहे हैं। बिहार पहले, बिहारी पहले जैसे अभियानों और चिराग का चौपाल जैसे जनसंपर्क कार्यक्रमों के माध्यम से, वे यह संदेश दे रहे हैं कि वे केवल एनडीए के सदस्य नहीं हैं, बल्कि अपने आप में एक मज़बूत राजनीतिक ताकत हैं। भाजपा के सामने अब चिराग पासवान की उम्मीदों पर खरा उतरने और एनडीए में जेडीयू व अन्य दलों को नाराज़ न करने की कठिन चुनौती है।