New Delhi: जल गंगा संवर्धन अभियान से प्रदेश होगा जल-समृद्ध

New Delhi: जल गंगा संवर्धन अभियान से प्रदेश होगा जल-समृद्ध

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपने अभिनव प्रयोगों से अपनी विशेष पहचान बना रहे हैं। मध्यप्रदेश में जल संरक्षण के लिए प्रारंभ हुआ ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ मुख्यमंत्री डॉ. यादव की दूरदर्शी पहल है। निकट भविष्य में हमें इसके सुखद परिणाम दिखायी देंगे। शुभ प्रसंग पर शुभ संकल्प के साथ जब कोई कार्य प्रारंभ किया जाता है, तब उसकी सफलता के लिए प्रकृति एवं ईश्वर भी सहयोग करते हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर मध्यप्रदेश सरकार ने गुड़ी पड़वा (30 मार्च) से 30 जून तक प्रदेश स्तरीय ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ चलाकर जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जो जनांदोलन में परिवर्तित हो गया। सरकार को भी विश्वास नहीं रहा होगा कि जल संरक्षण जैसे मुद्दे को जनता का इतना अधिक समर्थन मिलेगा कि सरकारी अभियान असरकारी बन जाएगा और समाज इस अभियान को अपनी जिम्मेदारी के तौर पर स्वीकार कर लेगा। ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ के अंतर्गत और इससे प्रेरित होकर प्रदेश में अनेक स्थानों पर जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया गया, उनको व्यवस्थिति किया गया और वर्षा जल को एकत्र करने की रचनाएं बनायी गईं। कहना होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल और प्रतिबद्धता ने  जल संरक्षण के इस अभियान को एक जनांदोलन का रूप दे दिया है, जिससे जल संरक्षण में अभूतपूर्व प्रगति हुई है।

जल गंगा संवर्धन अभियान को गति देने के लिए मनरेगा योजना के अंतर्गत खेत तालाबों, अमृत सरोवरों और कूप रिचार्ज पिट का निर्माण किया गया है। साथ ही पुरानी जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार भी किया गया है। इस अभियान में 2 लाख 39 हजार जलदूतों का सक्रिय सहयोग मिला, जिन्होंने जल संवर्धन के संदेश को घर-घर तक पहुँचाया। ये जलदूत जब गाँव-गाँव, नगर-नगर और घर-घर जल संरक्षण का संदेश लेकर पहुँचे तो एक सकारात्मक वातावरण भी बना और जल संरक्षण को लेकर समाज के भीतर एक जागरूकता भी आई। नि:संदेह, यदि यह जनजागरूकता स्थायी हो जाए तो जल गंगा संवर्धन अभियान की सबसे बड़ी सफलता होगी। अभियान को शुरू करते समय सरकार ने जो लक्ष्य तय किया था, उससे कहीं अधिक परिणाम धरातल पर प्राप्त हुआ है। जल संरक्षण के लिए 38 हजार नए खेत तालाबों का निर्माण किया गया है। खंडवा जिले में 254 करोड़ रुपये की लागत से 1 लाख से अधिक कुओं को रिचार्ज किया गया, जिसके लिए खंडवा को देश में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। इंदौर संभाग ने स्वच्छता और जल संरक्षण में नंबर-एक का स्थान हासिल किया है। ये दो प्रमुख उदाहरण हैं। प्रदेश के अन्य जिलों में भी उल्लेखनीय कार्य हुआ है। समूचे मध्यप्रदेश में 70 हजार कुओं, बावड़ियों, नदियों और तालाबों का संरक्षण किया गया, जो जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करनेवाले हैं। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रेरित हैं। याद हो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जल संरक्षण के लिए जनांदोलन चलाने का आह्वान किया था। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति से आग्रह किया कि वह अपने स्तर पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए प्रयास करे। प्रधानमंत्री मोदी की पहलकदमी पर भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय जल मिशन के अंतर्गत ‘कैच द रेन’ अभियान को शुरू किया है। इस अभियान का मुख्य लक्ष्य वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण को बढ़ावा देना है। यह अभियान व्यक्तियों, समुदायों और सभी हितधारकों को वर्षा जल संचयन संरचनाएं बनाने तथा जल संरक्षण की पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी इसी तर्ज पर ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ को जनता के बीच ले जाने का अनुकरणीय कार्य किया है। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. यादव, दोनों ही प्रकृति, पर्यावरण एवं समाज के प्रति गहरी संवेदनाएं रखते हैं। राजनीति से इतर वे इन सब विषयों पर बात रखते हैं और लोगों को इस दिशा में प्रेरित भी करते हैं। उल्लेखनीय है कि अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 120वें संस्करण में प्रधानमंत्री मोदी ने जल संरक्षण को देश के लिए अत्यंत आवश्यक बताया था। उन्होंने जल संचय जन-भागीदारी अभियान के महत्व पर भी जोर दिया और कहा कि यह हमारी जिम्मेदारी है कि “जो प्राकृतिक संसाधन हमें मिले हैं, उसे हमें अगली पीढ़ी तक सही सलामत पहुँचाना है”। कहना होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में चलाए गए जल गंगा संवर्धन अभियान ने प्रधानमंत्री के इस दृष्टिकोण को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

अकसर सरकारी अभियान विज्ञापनों एवं कागजों में दम तोड़ देते हैं या फिर उनकी सफलता सोशल मीडिया तक सीमित रह जाती है। यह आंदोलन अपने वांछित लक्ष्य से आगे निकल रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस अभियान को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया है। उनका मानना है कि जल ही हमारे जीवन के अस्तित्व का आधार है, इसलिए इसकी एक-एक बूंद बचाना अनिवार्य है। उनकी गहरी प्रतिबद्धता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने इस अभियान की देखरेख की जिम्मेदारी सभी जिलों के प्रभारी मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों को सौंपी है। लोग बड़ी संख्या में श्रमदान कर पानी को बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। जिला प्रशासन विशेष रूप से नदियों के किनारे देशी प्रजातियों के पौधे रोप रहा है। इससे जमीन के नीचे जल-स्तर बढ़ रहा है और मिट्टी को नुकसान से बचाया जा रहा है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य कर दिया गया है। स्कूल और कॉलेजों में जल-संरक्षण पर जन-जागरण अभियान, रैलियां, निबंध प्रतियोगिताएं, जल संवाद और ‘जल प्रहरी’ जैसी गतिविधियों को संचालित किया जा रहा है। अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल मॉनिटरिंग और मूल्यांकन प्रणाली की व्यवस्था की गई है, जिसमें सभी गतिविधियों की जीआईएस ट्रैकिंग और इंपैक्ट वैल्यूएशन किया जा रहा है। सरकार ड्रोन से सर्वेक्षण, वैज्ञानिक तरीके से जलग्रहण क्षेत्र की मैपिंग और भू-जल पुनर्भरण तकनीकों का उपयोग कर रही है। इन सब प्रबंधों से स्पष्ट तौर पर प्रतीत होता है कि प्रदेश सरकार का यह अभियान मुख्यमंत्री के सर्वोच्च प्राथमिकता वाले कार्यों में से एक है। इस अभियान का उद्देश्य केवल जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना ही नहीं, बल्कि उनकी निरंतर देखरेख और संरक्षण सुनिश्चित करना भी है। सरकार ने इन स्रोतों की सफाई, सीमांकन और पुनर्जीवन के लिए जनभागीदारी को प्रोत्साहित किया है। लोग बड़ी संख्या में श्रमदान कर जल संरक्षण में सहयोग कर रहे हैं।

इस अभियान के दूरगामी परिणाम अपेक्षित हैं। बारिश के मौसम में इसके और अधिक प्रभावी परिणाम दिखेंगे, जिससे भूजल स्तर में सुधार होगा, हरियाली बढ़ेगी और मिट्टी में नमी आएगी। इससे पूरे प्रदेश में जल संकट को दूर करने में सहायता मिलेगी। इसके अलावा, इस अभियान ने समाज की मनोवृत्ति पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है, जिससे जल संरक्षण एक सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में उभरा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में यह अभियान निश्चित रूप से मध्यप्रदेश को जल-समृद्ध राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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