भगवान शंकर के प्रिय माह सावन की शुरूआत 11 जुलाई से है। सावन की शुरुआत के साथ ही कांवड़ यात्रा का शुभारंभ हो जाएगा। कांवड़ यात्रा में शिवभक्त नंगे पांव हाथ में कांवड़ लेकर लंबी दूरी तय करके शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग में जाते हैं और पवित्र नदियों के जल से उनका अभिषेक करते हैं।
उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर कांवड़ यात्रा निकालने की परंपरा है। कांवड़ यात्रा का विराट रूप पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दिखता है। हरिद्वार से कांवड़ लेकर निकलने वाले कांवड़ यात्री इस मार्ग से निकलते हैं। इस मार्ग में भगवान शिव के कई बड़े प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर हैं। यहां पर श्रद्वालु भगवान का जलाभिषेक करते हैं। मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ से लेकर गाजियाबाद, हापुड़ तक के शिव मंदिरों में इस मार्ग से गंगाजल लेकर भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं। लेकिन कांवड़ यात्रा शुरू होने से पहले ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर तनाव बढ़ गया है।
असल में, मुजफ्फरनगर जिले के बघरा गांव में योग साधना आश्रम के संचालक और सनातन धर्म के प्रचारक स्वामी यशवीर महाराज पिछले कुछ वर्षों से कांवड़ मार्ग पर दुकानों और ढाबों पर नेम प्लेट लगाने की मांग करते रहे हैं। उनका कहना है कि कांवड़ मार्ग पर कुछ लोग हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर ढाबे और दुकानें चलाकर शिव भक्तों को धोखा दे रहे हैं। पहचान छुपाकर धोखा देने वाले कई मामले सामने आने के बाद पिछले साल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों ने आदेश जारी किए कि कांवड़-यात्रा के मार्ग के ढाबे, होटल, रेस्तरां, दुकानदार, खोमचेवाले स्पष्ट नाम पट्टिका लगाएंगे। सरकार का मंतव्य है कि कांवडिय़ों की आस्था और श्रद्धा खंडित न हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश इस पर रोक लगा दी थी। हालांकि, इस साल भी उप्र और उत्तराखंड की सरकारों ने पिछले साल की भांति आदेश जारी किए हैं।
ताजा प्रकरण यह है कि, स्वामी यशवीर महाराज और हिंदूवादी संगठन के कार्यकर्ता कांवड़ मार्ग स्थित दिल्ली-दून हाईवे स्थित पंडित वैष्णो ढाबा पर पहुंचे। वास्तव में, ढाबा मुस्लिम का था, लेकिन बोर्ड पर लिखा था-‘पंडित का शुद्ध वैष्णो ढाबा।’ यानी पहचान छिपाने का अपराध किया गया था। पंडित वैष्णो ढाबे को सनव्वर नाम का एक मुस्लिम व्यक्ति चलाता है। इस ढाबे में उसका बेटा आदिल और जुबैर समेत दो अन्य लोग भी काम करते हैं।
कहा जा रहा है कि यशवीर महाराज और अन्य ने ढाबे के मालिक और कर्मचारियों की धार्मिक पहचान जांचने के लिए पैंट उतरवाई। विवाद यहीं से भडक़ा। आग में घी डालते हुए समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद एसटी हसन ने पहचान वाले मामले को पहलगाम आतंकी हमले से जोड़ने का काम किया। हसन ने कहा कि, मैं पूछना चाहता हूं कि क्या आम नागरिकों को अधिकार है कि वह किसी दुकानदार की पैंट उतरवाकर चेक कर सकते हैं? क्या पहलगाम में आतंकियों ने पैंट नहीं उतरवाई थी? ऐसा करने वाले और पहलगाम के आतंकवादियों में क्या अंतर रह गया?
उस ढाबे पर यह घटना हुई अथवा नहीं, पुलिस इसकी जांच कर रही है। लेकिन प्रकरण को ‘सांप्रदायिक मोड़’ दे दिया गया। पहलगाम एक सुनियोजित आतंकी कृत्य था। इन दोनों घटनाओं की तुलना करना न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि यह समाज में धार्मिक आधार पर तनाव पैदा करने का प्रयास भी है।
और जहां तक बात पहचान छुपाने या धोखा देने की है तो यह धंधा लंबे समय से चल रहा है। जुलाई, 2021 में गाजियाबाद में दो ऐसे मुसलमान दुकानदारों का पता चला था, जो हिंदू नाम से दुकान चला रहे थे। इनमें एक दुकान पुरानी सब्जी मंडी में है, जिसका नाम है न्यू अग्रवाल पनीर भंडार। इस दुकान का मालिक है मंजूर अली। दूसरी दुकान लालाजी पनीर भंडार के नाम से है। इसका मालिक ताहिर हुसैन है। इन दोनों का कहना था कि हिंदू नाम रखने से ग्राहक कम पूछताछ करते हैं और धंधा अच्छा चलता है। यानी ये धंधे के लिए हिंदुओं के साथ धोखा कर रहे थे। इनकी पोल तब खुली जब कुछ लोगों को पता चला कि इनका जीएसटी नंबर इनके असली नाम से है। स्थानीय दुकानदारों ने इनका विरोध किया तो इन लोगों ने अपनी दुकानों के नाम बदल लिए हैं।
पिछले साल कांवड़ यात्रा के समय जब नेम प्लेट लगाने के आदेश जारी हुए थे, तो खूब हंगामा मचा था। उस समय सोशल मीडिया से लेकर अखबारों और समाचार चैनलों तक में इस बात की बड़ी चर्चा थी कि कैसे एक आदेश के चलते रातों रात मुजफ्फरनगर का संगम शुद्ध शाकाहारी होटल बन गया सलीम ढाबा। मां भवानी जूस कार्नर का नाम हो गया फहीम जूस केंद्र। टी प्वाइंट का नाम हो गया अहमद टी स्टाल। ऐसे ही नीलम स्वीट्स का मालिक निकला मोहम्मद फजल अहमद। अनमोल कोल्ड ड्रिंक्स का मालिक है मोहम्मद कमर आलम। खतौली के चीतल ग्रैंड के बाहर एक बोर्ड लग गया है, जिस पर लिखा गया है- शारिक राणा डायरेक्टर। सहारनपुर में चल रहे जनता वैष्णो ढाबा का मालिक है मोहम्मद अनस सिद्दीकी। मुजफ्फरनगर के बझेड़ी गांव निवासी वसीम अहमद ने पिछले साल पहचान जाहिर होने के बाद अपना गणपति ढाबा बेच दिया।
एक रिपोर्ट के अनुसार देहरादून-नैनीताल राजमार्ग पर 20 से अधिक ढाबे ऐसे हैं, जो हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर हैं, लेकिन इन्हें चलाने वाले मुसलमान हैं। हरिद्वार नजीबाबाद रोड पर चिडियापुर और समीरपुर गंग नहर रोड पर भी ऐसे हिंदू नामधारी ढाबे हैं, जिनके मालिक मुसलमान हैं। मेरठ, गजरौला, गढ़मुक्तेश्वर, मुंडा पांडे हाईवे पर भी दर्जनों ऐसे ढाबे चल रहे हैं, जिनके मालिक मुसलमान हैं।
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, धोखा देने के लिए ये लोग होटल के अंदर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र भी रखते हैं, ताकि हिंदू यात्रियों को लगे कि वे किसी हिंदू होटल में ही खाना खा रहे हैं। लेकिन जब कोई ग्राहक ऑनलाइन पैसा देता है, तब पता चलता है मालिक मुसलमान है। इन ढाबों और होटलों में काम करने वाले लोगों के नाम राजू, विक्की, गुड्डू, सोनू जैसे होते हैं। ये लोग तिलक भी लगाते हैं और कलावा भी बांधते हैं। यह धोखा नहीं तो क्या है? मुजफ्फरनगर के पंडित वैष्णो ढाबे पर काम करने वाले तजमुल ने खुद को गोपाल बताया था। हरिद्वार में गुप्ता चाट भंडार में स्कैनर से पेमेंट गुलफाम नाम के अकाउंट में जाने का मामला बीते दिनों प्रकाश में आया है।
अहम सवाल यह है कि पहचान छुपाकर व्यापार करने के पीछे कोई मज़बूरी है या षडयंत्र? मुस्लिम व्यक्ति को अपने नाम से दुकान या ढाबा खोलने में क्या दिक्कत है? अपने-अपने धर्म के हिसाब से नाम लिखकर लोग दुकान खोलेंगे या व्यापार करेंगे तो ग्राहक अपनी मर्ज़ी से दुकान पर जाएगा और जिसे जहां से जो खरीदना होगा, वो वहां से ख़रीदेगा। लेकिन पहचान छुपाकर व्यापार या कोई अन्य कार्य करना कानून और नैतिक तौर पर गलत और अपराध है। ऐसी घटनाएं और प्रकरण प्रकाश में आने के बाद संदेह और अविश्वास का माहौल बनता है। जो सामाजिक, राजनीतिक और कानून व्यवस्था के मोर्चे पर दिक्कतें पैदा करता है।
बात जब खाने पीने की हो तो मामला गंभीर और संवेदनशील हो जाता है। खानपान के पीछे व्यक्तिगत रूचि, संस्कार, धर्म-कर्म और आस्था की पृष्ठभूमि और भूमिका होती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि शासन-प्रशासन के नेम प्लेट के आदेश से किसी की भावनाएं आहत नहीं होतीं। खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2006 में स्पष्ट प्रावधान है कि खानपान के दुकानदारों को अपना फूड लाइसेंस ऐसी जगह लगाना होगा, जहां आसानी से उसे देखा जा सके।
वैसे भी ये मसला हिंदू-मुस्लिम, धार्मिक भेदभाव या किसी की आजीविका की बजाय सीधे तौर भावनाओं और ग्राहक के अधिकार से जुड़ा है। जो करोड़ों की संख्या में कांवड़िए हरिद्वार से गंगा जल लेकर अपने गंतव्य की ओर जाते हैं, उन सबको रास्ते में भोजन कैसा मिले? कैसा भोजन वो खाएं? ये उनकी स्वतंत्रता है। जब मुसलमान हलाल प्रमाणपत्र देखकर ही कोई सामान खरीदता है, तब हिंदू भी ऐसा क्यों नहीं कर सकता है!