इस तरह के वाकये पूरी दुनिया में देखने को मिल रहे हैं कि जेलों में बंद कट्टरपंथी दूसरे कैदियों का भी ब्रेन वॉश करके उन्हें गलत राह पर धकेल देते हैं। देखा जाये तो जेलों में कैदियों को कट्टरपंथी बनाये जाने की घटनाएं अब गंभीर चुनौती बन चुकी हैं। यह प्रवृत्ति आंतरिक सुरक्षा के लिए तेजी से बड़ा खतरा बन रही है इसलिए संकट की गंभीरता को समझते हुए भारत सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस दिशा में तुरंत प्रभावी कदम उठाने का आग्रह किया है। हम आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के गृह सचिवों को जारी एक परामर्श में कहा गया है कि कारागारों में बंद कमजोर मानसिकता वाले व्यक्तियों में उग्र विचारधारा के प्रसार को रोकना तथा ऐसे कैदियों को मुख्यधारा में लौटाने के लिए ‘डि-रेडिकलाइजेशन’ की प्रक्रिया अपनाना अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी सहायक सिद्ध होगा।
देखा जाये तो कारागार एक सीमित व नियंत्रित वातावरण होता है जहाँ सामाजिक अलगाव, समूह मनोवृत्ति तथा निगरानी की सीमितता जैसी परिस्थितियाँ अतिवादी विचारों के पनपने के लिए उपजाऊ भूमि बन जाती हैं। कई बंदी, जो पहले से ही हताशा, समाज से कटाव या हिंसात्मक प्रवृत्तियों से ग्रस्त होते हैं, ऐसे माहौल में उग्रपंथी विचारधाराओं के प्रभाव में आ जाते हैं। इसलिए गृह मंत्रालय ने चेताया है कि कुछ मामलों में कट्टरपंथी बंदी हिंसात्मक गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं— चाहे वह जेल के स्टाफ पर हमला हो, अन्य बंदियों को नुकसान पहुँचाना हो या फिर बाहरी नेटवर्क के साथ मिलकर देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना हो।
गृह मंत्रालय ने ‘मॉडल प्रिजन मैनुअल 2016’ और ‘मॉडल प्रिज़न्स एंड करेक्शनल सर्विसेज एक्ट, 2023’ का हवाला देते हुए बताया कि इन मॉडल दस्तावेजों में उच्च-जोखिम कैदियों, उग्रवादियों आदि को अन्य कैदियों से पृथक रखने के लिए विशेष सुरक्षा वाले कारागारों की व्यवस्था की संस्तुति दी गई है। पूर्व में जारी की गई सलाहों को दोहराते हुए गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों से अपेक्षा जताई है कि वे कठोर प्रवृत्ति के बंदियों की पहचान, निगरानी और परामर्श की प्रभावी व्यवस्था करें।
गृह मंत्रालय ने यह सुझाव भी दिया है कि जो बंदी उग्र विचारधाराओं का प्रचार कर अन्य कैदियों को प्रभावित कर सकते हैं, उन्हें सामान्य कैदियों से अलग रखा जाए। साथ ही राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र हाई सिक्योरिटी प्रिजन कॉम्प्लेक्स स्थापित करने पर विचार करना चाहिए ताकि आतंकवादियों व कट्टरपंथियों को अलग रखकर उनके प्रभाव को सीमित किया जा सके। परामर्श में कहा गया है कि इन बंदियों पर निगरानी उपकरणों और खुफिया तंत्र की सहायता से कड़ी निगरानी की जाए और भीतर चल रहे किसी भी उग्रवादी नेटवर्क की पहचान कर उसे समय रहते खत्म किया जाए।
मोदी सरकार का यह भी मानना है कि बंदियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण, शिक्षा और पुनर्वास कार्यक्रमों में जोड़कर उनकी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा दी जा सकती है। साथ ही, परिवार से निरंतर संपर्क बनाए रखने की सुविधा से उनकी भावनात्मक स्थिरता को भी बल मिलेगा, जिससे पुनः समाज में सफल पुनर्वास संभव हो सकेगा।
बहरहाल, कैदियों के सुधार की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम समयानुकूल और आवश्यक है। अब राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इन दिशा-निर्देशों को गंभीरता से लागू कर कारागारों को केवल सजा के केंद्र न बनाकर, सुधार और पुनर्वास के स्थलों में रूपांतरित करें।