यह ग्लेशियर की मौत की शोकसभा नहीं अपितु भावी संकट का है संकेत

यह ग्लेशियर की मौत की शोकसभा नहीं अपितु भावी संकट का है संकेत

अभी दो चार दिन पहले ही भारत, भूटान, नेपाल और चीन के चुनिंदा ग्लेशियलोजिस्टों ने समुद्र तल से करीब 5100 मीटर उंचे याला ग्लेशियर के मौत की अनोखी शोकसभा का आयोजन कर दुनिया के देषो को ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव के प्रति सावचेत करने का प्रयास किया है। हांलाकि किसी ग्लेशियर की मौत की विधिवत घोषणा और मातम सभा के आयोजन का यह कोई पहला मौका नहीं है। पिछले सात सालों में यह तीसरा मौका है जब ग्लेशियर की मौत की शोक सभा का आयोजन और उस स्थल पर पट्टिका लगाने का काम हुआ है। इससे पहले 2019 में आइसलैण्ड के ओक और 2021 में मैक्सिको के ओयोलोको ग्लेषियर के मौत की शोकसभा का आयोजन किया जा चुका है। ग्लोबल वार्मिंग दुनिया को किस दिशा में ले जा रही है और किस तरह के प्रभाव हमें पिछले सालों से लगातार देखने को मिल रहे हैं उनमें से ग्लेशियरों के नष्ट होना तो केवल और केवल एक पक्ष मात्र है। जबकि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियरों के पिघलने के बारे में विशेषज्ञ वैज्ञानिक लगातार सावचेत करते रहे हैं। जब कोई ग्लेशियर इस हालात में आ जाता है कि उसका मूवमेंट ही लगभग समाप्त हो जाता है तो वह ग्लेशियर मृत श्रेणी में आ जाता है। दुनियाभर में ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेज बढ़ती जा रहे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने के कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है। समुद्र के जल स्तर के बढ़ने के कारण समुद्र किनारे के कई शहरों के सामने डूबने का संकट दिखाई दे रहा है। यह तो केवल एक पहलू है। ग्लोबल वार्मिंग और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण सूखा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, तापमान में अत्यधिकता जैसे साल दर साल गर्मी में तेजी और असमय तेज गर्मी, तेज वर्षात और तेज सर्दी प्रभावित कर रही है। जंगलों में आग के कारण जिस तरह से जंगल और जंगल की जीव विविधता प्रभावित हो रही है और जंगल रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैं यह अपने आपमें गंभीर है। इसी तरह से मौसम में अनावश्यक बदलावों के कारण नई नई बीमारियों के साथ ही विलुप्त बीमारियां जैसे मलेरिया और वायरस जनित बीमारियों का बढ़ता प्रकोप, दवाओं की असरता कम होना और ना जाने इस तरह के क्या क्या परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं यह आज सारी दुनिया के सामने हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते सूखा और रेगिस्तान का विस्तार लगातार होता जा रहा है। पिछले सालों में दुनिया के देशों में चक्रवातों का चक्र तेजी से बदला है और तूफानों की तीव्रता और फ्रिक्वेंसी में तेजी आई है। इसके साथ ही भूकंपों की सक्रियता बढ़ रही है। अब तूफान और भूकंपों की फ्रिक्वेंसी तो इस कदर बढ़ गई है कि कब भूकंप आ जाये और कब समुद्र तट की और बढ़ते तूफान की घोषणा हो जाए यह आये दिन देखने को मिल रहा हे। दुनियाभर के देश ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों से प्रभावित है। जिस तरह के बडे बड़े सम्मेलनों में दुनिया के नेता ग्लोबलवार्मिंग को लेकर चिंतन मनन को जुट तो जाते हैं पर परिणाम अभी तक जो सामने दिखाई दे रहे हैं पह गंभीर संकट की और साफ इशारा समझने की आवश्यकता है। दरअसल जिस तरह का ग्लोबल वार्मिंग का असर देखा जा रहा है उससे यह माना जा रहा है कि लाख प्रयासों के बावजूद 9 लाख ट्रिलियन टन बर्फ के पिघलने की संभावना वैज्ञानिकों द्वारा बार बार की जा रही है। मौसम में हर दूसरे तीसरे दिन बदलाव और चरम मौसम के हालात गंभीर है। रेगिस्तान का विस्तार हो रहा है तो सूखे की संभावनाएं अधिक हो गई है। बीमारियों के नित नए वेरियंट सामने आ रहे हैं तो कीटाणुओं की सक्रियता और उनका असर साफ देखा जा सकता है। ऐसे में एक और दुनिया के देशों को ढुलमिल नीति त्यागकर ठोस प्रयास करने होंगे। गैरसरकारी संगठनों को भी आगे आना होगा। इसके साथ ही वैज्ञानिकों को भी एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि केवल आय बढ़ाने के लिए इस तरह के प्रयास नहीं करने चाहिए। गैरसरकारी संगठनों की ऐसें हालातों में और अधिक्र सक्रियता के साथ अभियान चलाने होंगे। ग्लेशियरों के पिघलने का संकट आने वाले समय में और अधिक गंभीर होगा क्योंकि जिस तरह से कांक्रिट के जंगल, अत्यधिक भू जल का दोहन पंखे कूलर के स्थान पर एयर कण्डीशरों का बढता प्रयोग, और इलेक्ट्रोनिक उत्पादों के कारण हालत दिन प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं। हालात यही रहे तो ग्लेशियरों की बर्फ पिघलेगी ही पिघलेगी साथ ही अनेक समस्याएं और अधिक नकारात्मक प्रभाव डालेगी। - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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