योगी और अखिलेश के लिए बने प्रतिष्ठा का सवाल !

योगी और अखिलेश के लिए बने प्रतिष्ठा का सवाल !

उत्तर प्रदेश में  इस माह में होने जा रहे 9 विधानसभाओ के उपचुनाव के परिणामों का असर ना तो उत्तर प्रदेश की राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार पर पड़ने वाला है और ना ही लोकसभा की नरेन्द्र मोदी सरकार पर।फिर भी इन उपचुनाव को भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों ने ही अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। कारण भी है कि इन चुनावों में कांग्रेस मैदान में नहीं है और मुकाबला बीजेपी और सामाजवादी पार्टी में है। 13 नवंबर को जिन सीटों पर चुनाव होना हैं, वहां भाजपा ने 9 में से 8 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है जबकि एक सीट एनडीए की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को दी गयी है। इस मुकाबले में इस बार भाजपा के सामने कांग्रेस नहीं है और उसका मुकाबला समाजवादी पार्टी से ही हो रहा है l

दरसल लोकसभा 2024 के मुकाबले में समाजवादी पार्टी, इण्डिया गठबंधन के साथ मिल कर चुनाव लड़ी थी और अकेले 37 सीट जीतने वाली समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव इन विधानसभा के उपचुनाव को 2027 के चुनाव का ट्रायल मान कर मैदान में उतारे हैं। चूँकि गठबंधन के प्रमुख घटक दल कांग्रेस ने इन चुनावों में समाजवादी पार्टी का समर्थन किया है तो इन सीटों की जीत हार का सेहरा भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सिर ही बंधेंगा! ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव नहीं चाहते होंगे कि भविष्य में भाजपा के खिलाफ बनने वाले इंडिया गठबंधन में उनकी स्थिति (हरियाणा में हुई हार के बाद) भी कांग्रेस जैसी हो जाय। इस कारण ये उपचुनाव न उनकी प्रतिष्ठा का सवाल बने हुए है। दूसरी ओर लोकसभा चुनाव में राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के रहते गत लोकसभा से भी कम सीटों मिलने के दंश से उभरने के लिए ये उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के लिए एक अवसर के समान है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस अवसर को (इन चुनावों का परिणाम) अपने पक्ष में कर, अपना रसूख सरकार और पार्टी में बनाये रखने में कोई कसर छोड़ेंगे ऐसा लगता नहीं है। जिन 9 सीटों पर उप चुनाव हो रहे हैं उनमें 4 पर सपा, 5 एनडीए ने जीती थीl योगी आदित्यनाथ अपनी पांचो सीट जीतने के साथ ही समाजवादी पार्टी की 4 सीटें भी भाजपा की झोली में लाने के प्रयास में साम दाम दंड भेद का उपयोग करने से नहीं हिचकिचाएंगे। यदि योगी आदित्यनाथ ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो वे अपने विरोध में उठने वाले हर उस स्वर को दबा देंगे जो लोकसभा के चुनाव में आशा अनुरूप सफलता न मिलने पर उठे थे। 

इसके दूसरा असर योगी आदित्यनाथ की उस छवि को और अधिक निखार देगा, जो इन दिनों प्रखर हिंदूवादी, फायरब्रांड नेता की बन रही है और दबी जबान योगी को प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प बताया जा रहा है। क्योंकि अब योगी आदित्यनाथ केवल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं रहे वे अब भाजपा के राष्टीय प्रचारक होने के हिंदुत्व वादी राजनेता बन कर उभरे है जो यूपी के अलावा अन्य राज्यों में भी प्रचार कर रहे हैंl हाल ही में महाराष्ट्र चुनाव में उनका “कटेंगे तो बटेंगे” का बयान सियासी हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ हैl 

गौरतलब है कि लोकसभा में भाजपा से ज्यादा सीट समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ में जीती ली थी और ऐसे में अघोषित तौर पर योगी के खिलाफ एक वातावरण निर्मित किया गया था जिसमें दोनों उपमुख्यमंत्रियों के कंधे से योगी को निशाने पर लिया गया था। हालांकि पार्टी ने हार की समीक्षा ने कई कारण गिनाए थे और योगी सुरक्षित थे। 

यही कारण है कि भाजपा इन 9 विधानसभा सीटो को अपने लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाये हुए है और सामाजवादी पार्टी की परपरागत सीट करहल पर अखिलेश यादव के परिवार के सदस्य कोही उनके खिलाफ मैदान में उतार कर यादव वोटों को विभाजित करने और 22 साल से सपा के कब्जे वाली सीट पर दांव खेला हैl 

कुल मिला कर इन उपचुनाव में कांग्रेस के न होने का कितना फायदा समाजवादी पार्टी या भाजपा को मिलता है यह परिणाम के बाद ही पता चलेगा लेकिन इतना तो तय है ये उप चुनाव दोनों ही  दल और दोनों ही नेताओं योगी और अखिलेश के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने हुए है l


- श्याम यादव


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