एक अक्टूबर को ईरान की तरफ से इजरायल पर 150 से भी ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलों से हमले किए जाने के बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि इजरायली सेना (आईडीएफ) इसका बदला शीघ्र लेगी? गौरतलब है कि ईरान के मिसाइल हमलों के तुरंत बाद ही आईडीएफ और पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा भी था कि ईरान को सही समय पर सही तरीके से जवाब दिया जाएगा और हाल के दिनों में इजरायल से जुड़ी मीडिया की कुछ खबरों से ये संकेत भी मिलने लगे थे कि इजरायल ने ईरान पर प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करने की तैयारी पूरी कर ली है। 14−15 अक्तूबर को इससे संबद्ध आई खबरों के मुताबिक इजरायली सेना ने कथित तौर पर ईरान के उन ठिकानों की सूची भी तैयार कर ली थी, जिन पर वह तेहरान के बैलिस्टिक मिसाइल हमलों के जवाब में हमले करना चाहता था। फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट में यह दावा चैनल 12 न्यूज के हवाले से किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार इजरायली सेना ने ईरान पर हमले की अपनी तैयारियों के बारे में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री योव गैलेंट को लक्ष्यों की एक सूची सौंपी थी। साथ ही उसने यह स्वीकार भी किया था कि आईडीएफ के लक्ष्य बिल्कुल साफ एवं स्पष्ट हैं और अब वह कभी भी जवाबी हमला कर सकता है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि इजरायल ने ईरान पर हमले की योजना के बारे में अपने सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी अमेरिका को भी बता दिया है, लेकिन अमेरिका को हमले के विशिष्ट लक्ष्यों पर कोई अपडेट नहीं दिया है। रिपोर्ट में इसकी वजह ये बताई गई थी कि यह मुद्दा बेहद संवेदनशील होने के कारण इजरायल अंतिम समय में भी अपना लक्ष्य बदल सकता है। इस मामले में आई ताजा खबरों के अनुसार इजरायल ईरानी परमाणु तथा ऊर्जा स्थलों पर हमले करने से बचेगा। ऐसा माना जाता है कि इजरायल ने अमेरिकी विरोध के बाद अपनी योजना बदल दी, अन्यथा पहले उसकी मंशा तेहरान में परमाणु साइट तथा ऊर्जा स्थलों और बुनियादी ढांचों पर हमला करने की थी। हालांकि इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के कार्यालय की ओर से यह कहा गया है कि वे अमेरिका की सलाह तो सुनेंगे, लेकिन अंतिम निर्णय स्वयं करेंगे। इन सारी बातों को लेकर अभी दुनिया भर में ऊहापोह की स्थित किायम थी। मीडिया कर्मियों, राजनीतिक विश्लेषकों, रक्षा विशेषज्ञों एवं मध्य−पूर्व से जुड़े मुद्दों पर राय रखने वाले तमाम विशेषज्ञों द्वारा तरह−तरह के कयास लगाए जा रहे थे और तभी अचानक इजरायल की ईरान पर हमले की उस योजना से जुड़ा दस्तावेज लीक हो गया, जिसके बाद दुनिया भर में इजरायल की बड़ी फजीहत हुई।
गौरतलब है कि लीक हुए दस्तावेज 15 एवं 16 अक्तूबर की तारीख वाले हैं, जिन पर टॉप सीक्रेट की मुहर लगी हुई है। खबरों के अनुसार 18 अक्तूबर को मैसेजिंग प्लेटफॉर्म टेलीग्राम के मिडिल ईस्ट स्पेक्टेटर नामक अकाउंट पर इन्हें शेयर किया गया था। हालांकि इन दस्तावेजों के लीक होने के बाद शुरूआती दौर में ऐसा लगा था कि यह सारा मामला फर्जी पर है, परंतु इसी बीच एक अमेरिकी अधिकारी ने एसोसिएटेड प्रेस को दस्तावेजों की प्रामाणिकता की पुष्टि कर दी। फिर जब यह खबर आई कि अमेरिका इजराइल की ईरान पर हमले की योजनाओं से संबंधित बेहद गोपनीय जानकारी के लीक की जांच कर रहा है, तो शीघ्र ही मामला बिल्कुल साफ हो गया। वहीं, एक अमेरिकी अधिकारी ने सीएनएन को बताया कि यह लीक गंभीर चिंता का विषय है। सचमुच, यह बेहद गंभीर मामला है, क्योंकि इन दस्तावेजों में इजराइल द्वारा ईरान के खिलाफ हमले किए जाने को लेकर इजरायली सेना तथा खुफिया विभाग से जुड़ी तमाम महत्वपूर्ण जानकारियां शामिल हैं। इनमें से कथित रूप से राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी वाला दस्तावेज यह बताता है कि इजराइल हथियारों को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जा रहा है, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी से संबंधित कथित दस्तावेज में इजराइली वायु सेना द्वारा किए जा रहे अभ्यासों का विवरण मौजूद है, जिसमें सतह पर मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल करते हुए बताया गया है।
मामले की संवेदनशीलता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि लीक हुए दस्तावेजों में से एक में यह भी संकेत दिया गया है कि इजरायल के पास परमाणु हथियार मौजूद हैं। गौरतलब है कि इजरायल स्वयं इसे आज तक सार्वजनिक रूप से पुष्टि करने से हमेशा बचता रहा है। इनके अतिरिक्त इन दस्तावेजों में यह भी बताया गया है कि अमेरिका को इस प्रकार का कोई संकेत नहीं मिला है कि इजरायल ईरान के विरूद्ध परमाणु हथियारों का उपयोग करने की योजना बना रहा है या नहीं। आश्चर्य होता है कि इतने संवेदनशील दस्तावेज आखिर लीक कैसे हो गए, जिनकी पहुंच फाइव आइज खुफिया गठबंधन तक ही सीमित थी। बता दें कि इस खुफिया गठबंधन में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, अॉस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस लीक प्रकरण के बाद इजरायल और अमेरिका के संबंधों में खटास आ सकती है। वैसे यह तो सभी को पता ही है कि इजरायल और अमेरिका अच्छे दोस्त रहे हैं। अमेरिका इजरायल को संकट के समय मदद करने वाला एक विश्वासी सहयोगी के रूप में जाना जाता रहा है, लेकिन देखा जाए तो हाल के दिनों में इजरायल और अमेरिका के संबंधों में थोड़ी दूरियां महसूस की जाती रही हैं।
गौरतलब है कि कुछ सप्ताह पूर्व अमेरिका द्वारा इजरायल को गाजापट्टी में सीज−फायर के दिए गए प्रस्ताव को इजरायली प्रधानमंत्री ने सिरे से खारिज करते हुए अपने हमले को न केवल जारी रखा था, बल्कि हमास के खात्मे तक हमले जारी रखने के अपने संकल्प को दोहराया भी था। बिल्कुल वैसे ही ईरान के मिसाइल हमले के जवाब में प्रस्तावित इजरायली हमले के संदर्भ में इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के कार्यालय की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया है कि वे अमेरिका की सलाह तो सुनेंगे, लेकिन अंतिम निर्णय स्वयं करेंगे। इजरायली प्रधानमंत्री के ये बयान यह बताने के लिए काफी हैं कि अमेरिका और इजरायल के बीच में दूरियां बढ़ी हैं और इस बार इजरायली सेना और खुफिया विभाग से जुड़े बेहद संवेदनशील दस्तावेजों के लीक हो जाने के बाद संभव है कि ये दूरियां और बढ़ जाएं। बता दें कि यह लीक प्रकरण ऐसे महत्वपूर्ण समय पर आया है, जब अमेरिका इजरायल से हमास नेता याह्या सिनवार की मौत का लाभ उठाने की बात तो कह ही रहा है, साथ ही वह गाजा में युद्धविराम पर एक बार फिर इजरायल से विचार करने का आग्रह भी कर रहा है। इसे अन्य प्रकार से कहा जाए तो यह लीक अमेरिका और इजरायल के संबंधों के बेहद नाजुक दौर में हुआ है, जो कि इजरायल को बेहद नाराज करने वाला है।
अब इजरायल की समस्या यह है कि आखिर वह भरोसा किस पर करे... किसके भरोसे चारों तरफ से घेरे बैठे शत्रुओं का सामना करे। मध्य−पूर्व एशिया के लिए अमेरिका में पूर्व डिप्टी असिस्टेंट डिफेंस सेक्रेटरी के पद पर कार्य कर चुके तथा सेवानिवृत सीआईए अधिकारी मिक मुलरोय के अनुसार इस लीक ने इजरायल की सुरक्षा स्थित किो और जटिल बना दिया है और इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है। सेवानिवृत सीआईए अधिकारी मिक ने इस मामले में अपनी प्रतिकि्रया व्यक्त करते हुए कहा− यदि यह सच है कि ईरान के हमले के जवाब में इजराइल की रणनीतिक योजनाएं लीक हुई हैं, तो यह एक गंभीर चूक है। बहरहाल, इस लीक प्रकरण के बाद अब सारा दारोमदार इजरायल के कंधे पर है। इसलिए सबकी निगाहें उसके अगले कदम पर टिकी हैं। जाहिर है कि उसकी अगली चालों से ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि भविष्य में अमेरिका और इजरायल के बीच के संबंध कैसे रहने वाले हैं और साथ ही यह भी मालूम हो पाएगा कि इजरायल अपनी सुरक्षा स्थित किो और जटिल होने से बचा पाएगा अथवा अमेरिकी मोहरा बनकर उसके ईशारों पर नाचता रहेगा।