कांग्रेस की गलत नीतियों का परिणाम है देश में आतंकवाद

कांग्रेस की गलत नीतियों का परिणाम है देश में आतंकवाद

सुरक्षा बलों ने 4 अक्टूबर को नारायणपुर दंतेवाड़ा जिलों की सीमा पर 31 नक्सलियों को मार गिराया। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के 24 साल बाद से किसी एक अभियान में माओवादियों आतंकियों की यह सर्वाधिक मौतों की संख्या है। इस घटना ने देश में आतंकवाद के घाव फिर से हरे कर दिए। देश में हर तरह की आतंकी वारदातें कांग्रेस के केंद्र और राज्यों में सत्ता में रहने के दौरान शुरु हुई। कांग्रेस की गलत नीतियों से ऐसी रक्तरंजित घटनाओं का परिणाम अभी तक देश भुगत रहा है। आतंकवाद चाहे जम्मू-कश्मीर का हो, नक्सलियों का, पूर्वोत्तर में या फिर पंजाब में खालिस्तान का रहा हो, देश ने कांग्रेस की गलतियों की भारी कीमत चुकाई है। इसी तरह दशकों तक तीन राज्यों में व्याप्त रहा चंबल की बीहड़ों में डकैतों के अपराधों का काला इतिहास भी कांग्रेस के शासन के दौरान लिखा गया। सर्वाधिक आश्चर्य यह है कि कांग्रेस ने इन गलतियों से सबक नहीं लिया। आतंकवाद चाहे जम्मू-कश्मीर में हो या फिर नक्सलियों का हो कांग्रेस ने कभी भी केंद्र की मोदी सरकार की तरह सख्ती नहीं दिखाई। इसके विपरीत कांग्रेस का रवैया वोट बैंक की राजनीति के कारण आतंक समर्थकों के प्रति सहानुभूति का रहा है। लापरवाही और उपेक्षापूर्ण नीतियों के साथ ही राजनीतिक फायदे के लिए की गई आतंकवाद की अवहेलना की कीमत कांग्रेस ने भी चुकाई है। 25 मई 2013 को, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नक्सली विद्रोहियों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में दरभा घाटी के झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला किया। इस हमले में कम से कम 27 लोगों की मौत हो गई, जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्या चरण शुक्ला, पूर्व राज्य मंत्री महेंद्र कर्मा और छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल की मौत हो गई।   

कांग्रेस के केंद्र और राज्यों में शासन के दौरान ही तीनों तरह का आतंक पनपा है। इसमें चंबल में डकैतों का काफी हद तक सफाया हो गया। जम्मू-कश्मीर में पाक परस्त और देश के कुछ राज्यों में नक्सली आतंक अब तेजी सीमिट रहा है। केंद्र की भाजपा सरकार दोनों तरह के आतंकियों पर काफी हद तक लगाम लगाने में कामयाब रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ समीक्षा बैठक में कहा कि 2026 नक्सलवाद को खत्म कर देंगे। शाह ने कहा कि 30 साल के बाद पहली बार वामपंथी उग्रवाद से मरने वाले लोगों की संख्या 100 से कम रही है। हिंसा की घटनाओं में करीब 53 फीसद की कमी आई है। नक्सली हिंसा से प्रभावित जिलों की संख्या 96 की जगह 42 जिले तक सीमित रह गई हैं। इन 42 जिलों में से 21 जिले नए बने हैं। इनमें से करीब 16 जिले ही नक्सल हिंसा से प्रभावित हैं।

देश की सुरक्षा से संबंधित कांग्रेस की गलत नीतियों का परिणाम सिर्फ देश की आम अवाम को नहीं बल्कि केंद्र की भाजपा सरकार को भी भुगतना पड़ रहा है। केंद्र सरकार को आतंकियों से निपटने के लिए न सिर्फ करोड़ों रुपए बहाने पड़ रह हैं, बल्कि पुलिस और सुरक्षा बलों को काफी मानवीय क्षति उठानी पड़ी है। नक्सल आतंकवाद का उदय पश्चिमी बंगाल से कांग्रेस शासन के दौरान ही हुआ था। यह फैलते हुए देश के करीब आठ राज्यों में तक पहुंच गया। इनमें से ज्यादातर राज्यों और केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही। कांग्रेस की तत्कालीन सरकारें नक्सलियों की रोकथाम करने में विफल रही। केंद्र और राज्य मिलकर काम नहीं कर सके। नक्सली देश के लिए नासूर बन गए। मौजूदा केंद्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने खून-खराबा करने वाले नक्सलियों को जड़ से उखाडऩे की ठान ली है।   

नक्सली प्रभावित राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर भी आतंकवाद की आग में अभी तक सुलग रहा है। इस अशांत केंद्रशासित प्रदेश में आजादी के बाद से ही नेशनल कांफे्रंस और कांग्रेस का शासन रहा है। केंद्र की कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर की सरकार आतंकियों को सबक सिखाने में पूरी तरह नाकाम रही।  पाकिस्तान की शय पर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद ने सिर उठाया। नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और दूसरी क्षेत्रीय दल आतंकियों के प्रति नरम रवैया रखते रहे। आतंकियों के समर्थन में पत्थरबाजी की घटनाओं ने सुरक्षा बलों नुकसान पहुंचाया। धारा 370 और 35 ए के कारण विशेष दर्जा प्राप्त इस प्रदेश में यह कानून आंतकियों की ढाल बनता रहा है। आतंकी वारदातों के बावजूद कांग्रेस ने कभी भी इस कानून को खत्म करने का प्रयास नहीं किया। इसके विपरीत मुस्लिम वोटों के कारण कांग्रेस कभी भी भाजपा जैसी सख्ती नहीं दिखा पाई।   

नौबत यह आ गई कि पाकपरस्त आतंकी संगठनों ने केंद्र में कांग्रेस के शासन के दौरान देश में बम-धमाके करके कानून-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। केंद्र की कांग्रेस सरकार की नाकामी और ढुलमुल सुरक्षा नीति के कारण देश की सुरक्षा व्यवस्था लगभग चौपट हो गई। पाकपरस्त आतंकियों के हौसले इतने बढ़ गए कि 13 दिसंबर, 2001 को दिल्ली के संसद भवन पर हुए आतंकी हमले में नौ लोगों की मौत हो गई। इसी तरह 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमलों में कम से कम 174 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें 20 सुरक्षा बल कर्मी और 26 विदेशी नागरिक शामिल थे। डेढ़ दशक पहले तक आतंकियों ने कहर बरपा रखा था। कांग्रेस केंद्र और ज्यादतर राज्यों में सत्ता में रहने के बावजूद आतंकियों का खात्मा नहीं कर सकी।   

देश में आतंक का यह हाल था कि 2006 में देश के 608 जिलों में से कम से कम 232 जिले विभिन्न तीव्रता स्तर के विभिन्न विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से त्रस्त थे। अगस्त 2008 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन का कहना था कि देश में 800 से अधिक आतंकवादी गुट सक्रिय हैं। 1980 के दशक में पंजाब में उग्रवाद ने जोर पकड़ लिया। केंद्र की कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों के कारण लंबे अर्से तक पंजाब आतंकवाद की आग में धधकता रहा। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप न सिर्फ हजारों निर्दोष लोग मारे गए बल्कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी को जान से हाथ धोना पड़ा। पंजाब में दर्जनों कांग्रेस के नेताओं को भी अपनी जान गंवा कर खालिस्तानी आतंकवाद की कीमत चुकानी पड़ी।   

पंजाब की तरह पूर्वोत्तर को संभालने में केंद्र की कांग्रेस सरकार विफल रही। इन राज्यों की समस्याओं का समाधान कांग्रेस नहीं कर सकी। दशकों तक पूर्वोत्तर क्षेत्रीय आतंकियों की मार झेलता रहा। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड, इसाक मुइवा ने एक स्वतंत्र नगालैंड की मांग करते हुए क्षेत्र में भारतीय सेना के ठिकानों पर कई हमले किए। सरकारी अधिकारियों के अनुसार 1992 से 2000 के बीच 599 नागरिकों, 235 सुरक्षाबलों और 862 आतंकवादियों ने अपनी जान गंवाई।   

आतंकियों की इन करतूतों से साबित है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार हालात पर नियंत्रण नहीं पा सकी। भाजपा ने केंद्र में दस पहले सत्ता संभालते ही देश के किसी भी हिस्से में मौजूद आतंकवाद के खात्मे को प्राथमिकता पर रखा। केंद्र की आंतरिक सुरक्षा नीतियों की बदौलत पूर्वोत्तर में आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लग सका। भाजपा सरकार की सख्त सुरक्षा नीतियों के कारण पाकपरस्त आतंकियों के हौसले पस्त हो गए। जम्मू-कश्मीर में कुछ आतंकी वारदातों के सिवाए देश में कहीं भी बम धमाके नहीं हुए। इसमें महत्वपूर्ण सफलता धारा 370 हटने के बाद मिली, जिससे पत्थरबाजी खत्म होने के साथ विकास की नई इबारत लिखी गई। सवाल यही है क्या कांग्रेस आतंकवाद और कानून-व्यवस्था को लेकर इतिहास से कोई सबक सीखेगी। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ सत्ता में आई कांग्रेस के लिए इस प्रदेश में शांति कायम रखना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। देखना यह है कि कांग्रेस इस परीक्षा में सफल हो पाती है या नहीं।


- योगेन्द्र योगी

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