कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर नजरिया बदलता जा रहा है। अब कांग्रेस और राहुल गांधी सपा प्रमुख अखिलेश यादव को वह अहमियत नहीं दे रही है जो उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव के समय दी थी। वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके चुनाव लड़ने वाली समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक-दूसरे के प्रति जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं उससे यही लगता है कि जल्द ही कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन का दौर खत्म हो सकता है। इतना ही नहीं पिछले कुछ समय से जिस तरह से अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती के बीच दूरियां बढ़ी हैं उससे भी अखिलेश यादव अपने आप को अकेला महसूस कर रहे हैं। यूपी की दस विधान सभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव में यदि समाजवादी पार्टी उम्मीद के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर पाई तो उसके लिये आगे के लिये अपनी साख बचाना मुश्किल हो जायेगा। वैसे भी मायावती ने उप चुनाव में बसपा के भी प्रत्याशी उतारने की बात कहकर अखिलेश की धड़कने बढ़ा ही रखी हैं। बात कांग्रेस और सपा के बीच बढ़ती खाई की कि जाये तो पिछले कुछ महीनों में राहुल गांधी एक परिपक्त नेता की तरह आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने अपना गोल निर्धारित कर लिया है उसी के अनुसार आगे बढ़ रहे हैं। जातीय जनगणना और मुस्लिमों को लुभाने में राहुल गांधी हिन्दुओं पर आक्रमक होने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं।जिसका उन्हें हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में फायदा होता भी दिख रहा है। उधर, पहले मध्य प्रदेश और अब हरियाणा में कांग्रेस ने सपा को एक भी सीट नहीं देकर यह संदेश दे दिया है कि उसके लिये समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश से बाहर मायने नहीं रखती है। ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में भी देखने को मिल रहा है। कांग्रेस की बैसाखी के सहारे सपा महाराष्ट्र मे अपनी ताकत बढ़ाने की जो कोशिश कर रही थी, उस पर भी पानी फिरता दिख रहा हैं। वैसे सपा की महाराष्ट्र यूनिट ने 12 सीटों पर प्रत्याशी तय कर दिए हैं। यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय, विधायक इंद्रजीत सरोज, तूफानी सरोज और प्रभारी बनाया गया है। कुल मिलाकर दूसरे प्रदेशों में अपनी जड़े मजबूत करने का सपना देख रहे अखिलेश यादव को कांग्रेस से लगातार झटके पर झटका ही मिल रहा है। महाराष्ट्र इस कड़ी का नया हिस्सा बन गया है। सपा के पास विकल्प की बात की जाये तो वह फिलहाल सिर्फ यूपी विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस को इसका जवाब दे सकती है। यूपी में सपा की स्थिति कांग्रेस से कहीं अधिक मजबूत है। दरअसल, लोकसभा चुनाव में यूपी में 37 सीटें जीतने वाली सपा दूसरे राज्यों की विधानसभाओं में खाता खोलकर राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त करना चाहती है। दूसरे राज्यों में सपा का संगठन उतना प्रभावी नहीं है, जितना उत्तर प्रदेश में है। ऐसे में सपा ने कांग्रेस के सहारे चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश कई बार की है। पहले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा, कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहती थी। उस चुनाव में कांग्रेस के सपा से गठबंधन न करने पर सपा ने अपने दम पर 22 प्रत्याशी उतारे थे। सपा का खाता तो नहीं खुला, लेकिन कांग्रेस को कुछ सीटों पर नुकसान जरूर हुआ। इसी तरह से हरियाणा की मुस्लिम और यादव बहुल 12 विधानसभा सीटों पर सपा ने कांग्रेस से गठबंधन करने का प्रयास किया था। बात पांच और फिर तीन सीट पर आकर टिक गई थी। कांग्रेस ने अपनी सूची जारी की तो एक भी सीट सपा के लिए नहीं छोड़ा। हालांकि, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘बात सीट की नहीं, जीत की है’ कहकर गठबंधन धर्म निभाने के लिए त्याग करने के संकेत दे दिए हैं। हरियाणा के सपा प्रदेश अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह भाटी भी कहते हैं कि तीन सीटों को लेकर कांग्रेस आलाकमान ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को संदेश भेजा था। संगठन ने पूरी तैयारी की, लेकिन कांग्रेस इससे पीछे हट गई। वहीं, दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर की 20 सीटों पर सपा ने कांग्रेस गठबंधन नहीं होने पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और सपा आमने-आमने है। अखिलेश के जम्मू-कश्मीर में प्रचार के लिए भी जाने की तैयारी है। यहां भी अखिलेश को यूपी की तरह मुस्लिम वोट सपा को मुस्लिम वोट मिलने की उम्मीद है।