अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी कैसे शांतिदूत बनकर उभरे हैं?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पीएम मोदी कैसे शांतिदूत बनकर उभरे हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना 74वां जन्मदिन मना रहे हैं, उन्होंने 10 साल पहले देश की सत्ता की कमान संभाली. इन बीते 10 सालों में वह न केवल मजबूत वैश्विक नेता के तौर पर उभरे हैं बल्कि मौजूद समय में वह सबसे बड़े संघर्ष के समाप्ति की उम्मीद भी हैं. ढाई साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के खात्मे को लेकर पश्चिमी देश भी अब भारत और पीएम मोदी की ओर उम्मीद लगाकर देख रहे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है युद्ध में शामिल दोनों पक्षों का भारत पर भरोसा. प्रधानमंत्री एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने युद्ध के दौरान रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों का दौरा किया. रूस और यूक्रेन दोनों ने जताया भरोसा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पीएम मोदी को अपना अच्छा दोस्त मानते हैं और यही वजह है कि उन्होंने यूक्रेन के साथ चल रहे संघर्ष को लेकर साफ कर दिया है कि उन्हें शांति समझौते को लेकर भारत की मध्यस्थता मंजूर है. वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी पीएम मोदी की यात्रा के बाद कहा था कि अगली शांति वार्ता भारत में आयोजित होनी चाहिए. तटस्थ नहीं अब ‘मध्यस्थ’ भारत ! यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की को भरोसा है कि अगर भारत शांति शिखर सम्मेलन का आयोजन करता है तो यह युद्ध रुक सकता है. पीएम मोदी ने जेलेंस्की से बातचीत में एक बड़ा बयान दिया था पीएम ने कहा था कि भारत तटस्थ नहीं है बल्कि वह शांति के पक्ष में खड़ा है. यह संदेश न केवल रूस-यूक्रेन के लिए था बल्कि यह पूरी दुनिया को यह बताने के लिए है कि नए वर्ल्ड ऑर्डर में भारत की भूमिका क्या होगी? अमेरिका और पश्चिमी देशों को भी उम्मीद रूस-यूक्रेन के अलावा अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों को भी रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत से बड़ी उम्मीदें हैं. यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी जब यूक्रेन-पोलैंड यात्रा से लौटे तो 26 अगस्त को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फोन पर उनसे बात की. इससे पहले भी प्रधानमंत्री मोदी और जो बाइडेन के बीच रूस-यूक्रेन संघर्ष को लेकर चर्चा हो चुकी है. अमेरिका को अच्छी तरह मालूम है कि भारत और रूस के बीच संबंध कितने मजबूत हैं, पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत ने इस संघर्ष की शुरुआत से लेकर अब तक मजबूती से रूस का साथ निभाया है, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी लगातार शांति की अपील भी करते रहे हैं. यहां तक कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के सामने साफ-साफ कहा कि यह समय युद्ध का नहीं है. शांतिदूत बनकर उभरे पीएम मोदी पिछले हफ्ते रूस दौरे पर गए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के दौरे को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत युद्ध रुकवाने के प्लान पर अब तेज़ी से जुट गया है. माना जा रहा था कि डोभाल, राष्ट्रपति पुतिन के साथ पीएम मोदी का ‘पीस प्लान’ साझा कर सकते हैं. वहीं अगर पुतिन की ओर से सहमति बन जाती है तो फिर आने वाले दिनों में इसे लेकर कोई बड़ी कवायद शुरू होती नजर आ सकती है. खास बात यह है कि पीएम मोदी अक्टूबर में होने वाली ब्रिक्स समिट के लिए मॉस्को जा सकते हैं. NSA अजित डोभाल से मुलाकात के दौरान पुतिन ने पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता का प्रस्ताव भी रखा है, लिहाजा सब कुछ ठीक रहा तो पीएम मोदी वाकई इस जंग को रुकवाने में बड़ी और सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं. मिडिल ईस्ट में भी शांति ला सकता है भारत? रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा भारत मिडिल ईस्ट में शांति के प्रयासों में भी अहम भूमिका निभा सकता है. मिडिल ईस्ट के कई इस्लामिक मुल्कों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं. UAE, कतर, सऊदी अरब और ईरान जैसे इस्लामिक मुल्क हों या इजराइल सभी के साथ भारत के रिश्ते समय के साथ बेहतर और मजबूत होते जा रहे हैं. पिछले साल नवंबर में दिल्ली पहुंचे अरब देशों के राजदूतों ने मिडिल ईस्ट में शांति बहाली के लिए भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण माना था, तो वहीं सोमवार को इजराइल के नए राजदूत रिवेन अज़ार ने बड़ा बयान दिया है, निजी अखबार से बात करते हुए उन्होंने कहा है कि यह भारत पर निर्भर करता है कि वह गाजा युद्ध के समाधान के लिए किस हद तक शामिल होना चाहता है. फिलिस्तीन-इजराइल दोनों के साथ अच्छे संबंध दरअसल 7 अक्टूबर को जब हमास ने इजराइल पर हमला किया, तो भारत उन देशों में शामिल था जिसने सबसे पहले इस आतंकी हमले की निंदा की थी. हमले के ठीक 3 दिन बाद 10 अक्टूबर को इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पीएम मोदी को फोन किया था. इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इजराइल के लिए भारत कितना अहम है. वहीं पिछले महीने नेतन्याहू के साथ फोन पर हुई बातचीत में पीएम मोदी ने संघर्ष को खत्म करने लिए बातचीत और कूटनीतिक रास्ता अपनाने की अपील की. फिलिस्तीन के नजरिए से देखा जाए तो भारत ने फिलिस्तीन-इजराइल विवाद में हमेशा से ‘टू स्टेट’ समाधान का समर्थन किया है. भारत आजाद फिलिस्तीन का समर्थक रहा है और वर्षों से इसके फिलिस्तीन के साथ राजनयिक संबंध हैं. करीब एक हफ्ते पहले भारत में फिलिस्तीन के राजदूत अबू अल-हैजा ने भी शांति के लिए भारत पर भरोसा जताया, उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन भी मध्यस्थता के लिए भारत जैसे दोस्त की तलाश में है. दुनिया में भारत की ‘विश्वबंधु’ वाली छवि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की विदेश नीति में काफी बदलाव आया है. पीएम ने इन 10 सालों में कई ऐसे देशों की यात्रा की जहां कभी कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया था, इससे एक ओर भारत के उन देशों के साथ रिश्ते मजबूत हुए तो वहीं दूसरी ओर विश्व पटल पर भारत की छवि विश्वबंधु वाली बनकर उभरी है. पिछले साल अगस्त में Pew रिसर्च ने भारत को लेकर 23 देशों में सर्वे किया. भारत को लेकर इन देशों का रुख सकारात्मक रहा है. अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल समेत 9 देशों में 50 फीसदी से ज्यादा लोग भारत को लेकर अनुकूल दृष्टिकोण रखते हैं.

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