मोदी सरकार के इजरायल को समर्थन को लेकर सियासत गर्म हो गई है। विपक्ष इजरायल पर मोदी सरकार के रुख से सहमत नहीं है और अपनी आपत्ति लगातार दर्ज करा रहा है। लेकिन अब ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में एक याचिका भी दाखिल हो गई है। देश के पूर्व राजनयिकों, नौकरशाहों ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल करते हुए बड़ी मांग की है। याचिका में कोर्ट से केंद्र सरकार को ये निर्देश देने की मांग की गई है कि वो इजरायल को हथियार और अन्य सैन्य उपकरण उपलब्ध करने वाली भारतीय कंपनियों के लाइसेंस रद्द करे और उन्हें नए लाइसेंस भी न दे। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि गाजा युद्ध के लिए इजरायल को निर्यात किए जा रहे युद्ध सामग्रियों पर तुरंत रोक लगाने का निर्देश दिया जाए। भारत को गाजा में इजरायल को युद्ध सहायता तुरंत निलंबित कर देनी चाहिए। याचिका में क्या कहा गया याचिका में कहा गया है कि भारत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों से बंधा हुआ है जो भारत को युद्ध अपराधों के दोषी राज्यों को सैन्य हथियारों की आपूर्ति नहीं करने के लिए बाध्य करता है। भारत 1948 के नरसंहार कन्वेंशन (जिस पर भारत ने हस्ताक्षर और पुष्टि की है) के तहत नरसंहार को रोकने के लिए अपनी शक्ति के भीतर सभी उपाय करने के लिए बाध्य है। नरसंहार कन्वेंशन का अनुच्छेद III नरसंहार में राज्यों की संलिप्तता को दंडनीय अपराध बनाता है। संभवतः युद्ध अपराधों के दोषी राज्यों को हथियारों की आपूर्ति न करने का दायित्व सीधे तौर पर जिनेवा कन्वेंशन के सामान्य अनुच्छेद 1 पर आधारित दायित्व है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर और अनुसमर्थन किया है। इन सम्मेलनों में सन्निहित सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनिवार्य मानदंड हैं। भारत का निर्यात फिलिस्तीनियों की मौत में सहायता और बढ़ावा देता है याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 21 गैर-नागरिकों के लिए उपलब्ध है और हथियार और गोला-बारूद निर्यात करने की राज्य की कार्रवाई सीधे तौर पर इजरायल के साथ चल रहे युद्ध के दौरान फिलिस्तीनियों की मौत में मदद और उकसा सकती है और यह सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है। याचिका में कहा गया है कि भारत ने दिसंबर 2023 में गाजा में तत्काल युद्धविराम पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था। लेकिन अप्रैल 2024 में युद्धविराम और इज़राइल पर हथियार प्रतिबंध के प्रस्ताव पर मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना, भारत की मिलीभगत के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। विपक्ष ने की थी फिलिस्तिनी प्रतिनिधियों संग मुलाकात कुछ दिन पहले ही फिलिस्तीन के प्रतिनिधियों संग विपक्ष के नेताओं के साथ बैठक की थी। जिसमें जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी भी शामिल थे। उन्होंने संयुक्त बयान भी जारी किया था जिसमें लिखा था कि फिलिस्तीन में युद्ध अपराधों में भारत की भागीदारी नहीं हो सकती है। उनके इस बयान को लेकर काफी विवाद हुआ था। लेकिन ये मांग यहीं नहीं रुकी और मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है व मामले में 9 सितंबर को सुनवाई हो सकती है।