पिछले दिनों में मप्र की मोहन यादव सरकार ने दो निर्णय लिए हैं और दोनों ही से वे अपार लोकप्रियता प्राप्त करने जा रहे हैं। प्रदेश की किशोरी छात्राओं हेतु लिए गए एक निर्णय की तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा व प्रसंशा हो रही है। एक निर्णय की अंतर्राष्ट्रीय एक योजना जहां प्रदेश के किसानों हेतु शुभसमाचार है वहीं दूसरी योजना प्रदेश की स्कूली बालिकाओं के लिए प्रसन्न कर देने वाली है। बालिकाओं को निःशुल्क सैनिटरी पेड देने वाली इस योजना की प्रशंसा संयुक्त राष्ट्र संघ, के संगठन यूनिसेफ़ ने भी मुक्त कंठ से की है। देश के कुछ प्रदेशों में छात्राओं को निःशुल्क सैनिटरी नैपकिन दिये जाते रहे हैं किंतु इस संदर्भ में बालिकाओं को नगद राशि देने वाला प्रथम राज्य मप्र बन गया है। इस प्रकार नगद राशि से बालिकाऐं अपनी पसंद व आवश्यकतानुसार सामग्री स्वयं क्रय सकेंगी। मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव की सैनिटेशन एवं हाईजीन योजना को यूनिसेफ़ ने एक उत्कृष्ट योजना बताया है। यूनिसेफ़ ने एक्स (ट्विटर) पर अपने एकाउंट में लिखा कि यह एक अनूठा नवाचार है और प्रसंशा करते हुए इस योजना को शुभकामनाएँ दे है। डॉ. मोहन यादव ने भी अपने X अकाउंट पर UNICEF को इस योजना की प्रसंशा करने हेतु धन्यवाद देते हुए कहा है- “मध्य प्रदेश के किशोरों और बच्चों के लिए काम करने की हमारी प्रतिबद्धता को विश्व स्तर पर मान्यता देने के लिए @UNICEFIndia को हार्दिक धन्यवाद।
यूनिसेफ पूर्व से ही (UNICEF) की भारतीय इकाई भारत सरकार के साथ मिलकर स्कूल हाईजीन और मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य जागरुकता (Menstrual Health Awareness) की दिशा में अभियान चलाये हुए है।
विगत सप्ताह मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने छात्राओं के सम्मान व उनसे संवाद के एक कार्यक्रम में समग्र शिक्षा अभियान के अंर्तगत प्रदेश की उन्नीस लाख छात्राओं के खाते में सत्तावन करोड़ अट्ठारह लाख रू. की राशि सैनिटरी नैपकिन हेतु ट्रांसफ़र कर दी थी। यह राशि कक्षा सातवीं से बारहवीं तक की छात्राओं को दी जाएगी जिससे वे स्वयं नैपकिन क्रय कर सकेंगी। इस योजना से उन्हें एक वर्ष हेतु तीन सौ रु. मिलेंगे। इस योजना के अंर्तगत समग्र शिक्षा अभियान में विद्यालयों व महाविद्यालयों की छात्राओं को मासिक धर्म के समय स्वच्छता की महत्व और महत्व को भी बताया जाना है। प्रदेश में पूर्व से ही महिला एवं बाल विकास की एक उदिता योजना भी कार्यरत है जिसमें अट्ठारह से उन पचास आयु वर्ग की महिलाओं आंगनवाड़ी के कार्यकर्ताओं द्वारा लाभ दिया जाता है।
चर्चा में आई कृषक व श्रीअन्न आधारित दूसरी योजना भी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय होने जा रही है। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के किसानों हेतु रानी दुर्गावती श्रीअन्न प्रोत्साहन योजना लागू की है। कृषक जगत हेतु महत्वपूर्ण इस योजना में श्रीअन्न जैसे कोदो, कुटकी, रागी, ज्वार, बाजरा, कंगनी, सांवा आदि को उपजाने वाले कृषक बंधुओं को प्रति किलो 10 रुपये दिए जाएंगे। कृषकों को दस रू. प्रति किलोग्राम दस रुपये देने की योजना जहां देश के लिए बड़ी मात्रा में श्रीअन्न उपजाने हेतु प्रेरणा व आर्थिक संबल देगी वहीं कृषकों, विशेषतः जनजातीय कृषकों हेतु वरदान सिद्ध हो सकती है। हमारे प्रदेश के जनजातीय पूर्व से ही इन मोटे अनाजों को उपजाते व खाते रहें हैं किंतु अब इस योजना से वे श्रीअन्न का उत्पादन बढ़ायेंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत की पहल पर वर्ष 2023 को श्रीअन्न वर्ष घोषित किया था। प्रधानमंत्री जी, नरेंद्र मोदी भी श्रीअन्न को अपने भाषणों व कथनों में स्थान देते रहते हैं जिससे देश में मोटा अनाज खाने का एक सुदृढ़ वातावरण बन गया है। इस स्थिति में इन अनाजों हेतु बाज़ार बढ़ना ही है। अब इस योजना से मप्र के कृषक विशेषतः जनजातीय कृषक विषे तौर पर लाभान्वित होंगे।
कृषकों को उनकी प्रोत्साहन राशि सीधे उनके खाते में अंतरित की जाएगी। ये अनाज प्रमुख रूप से मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, शहडोल, अनूपपुर, बैतूल, छिंदवाड़ा, सीधी और सिंगरौली जैसे जनजातीय बहुल जिलों में उगाए जाते हैं। प्रदेश में मोटे अनाजों के उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन पर केंद्रित एक सम्मेलन का आयोजन भी पूर्व में हो चुका है। प्रदेश के डिंडोरी ज़िले में श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान केंद्र के निर्माण की भी घोषणा हो चुकी है। यद्दपि वर्तमान में मप्र, देश के मोटे अनाज के उत्पादन में केवल 3.5 प्रतिशत का योगदान देता है वहीं राजस्थान में देश का 33 प्रतिशत व कर्नाटक में 23 प्रतिशत रकबे में इसकी कृषि की जाती है। मोटे अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी व लाभप्रद होते हैं। इनमें खनिज, मिनरल्स व प्रोटीन्स की मात्रा अत्यधिक होती है। इन सभी गुणों के कारण श्रीअन्न को कई बीमारियों के निदान हेतु भी उपयोग किया जाने लगा है।
वर्तमान समय में मप्र में छः लाख बीस हजार हेक्टेयर भूमि पर मोटा अनाज उत्पादित किया जा रहा है जबकि वर्ष 2021-22 में यह पांच लाख पचपन हजार हेक्टेयर पर ही श्रीअन्न उपजाया जाता था। मप्र देश में मोटे अनाजों के उत्पादन में पाँचवें न. पर है। वर्ष 2023-24 में प्रदेश में 12.68 लाख टन मोटे अनाजों का उत्पादन हुआ, जो 2019-20 में 8.96 लाख टन था। प्रदेश में सबसे अधिक लगभग 60 प्रतिशत बाजरा उगाया जा रहा है।
प्रदेश के कृषकों को दस रुपये प्रति किलोग्राम की प्रोत्साहन राशि व शालेय किशोरियों को सैनिटरी नैपकिन देने की योजना से निश्चित ही मप्र की मोहन सरकार देश भर में अग्रणीं होने जा रही है।
- मप्र के महाकोशल के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट आदि जिलों में श्रीअन्न का ज्यादा उत्पादन होता है।
- उत्पादन क्षेत्र नहीं बढ़ने की बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश में इसकी बड़ी खाद्य प्रसंस्करण इकाई नहीं हैं।
- देशभर में कुल खाद्यान्न उत्पादन के 10 प्रतिशत हिस्से में मोटा अनाज उगाया जा रहा है।
- राजस्थान में सर्वाधिक 33 और कर्नाटक में कुल खाद्यान्न 23 प्रतिशत क्षेत्र में श्रीअन्न का उत्पादन किया मप्र के महाकोशल के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट आदि जिलों में श्रीअन्न का ज्यादा उत्पादन होता है।
- उत्पादन क्षेत्र नहीं बढ़ने की बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश में इसकी बड़ी खाद्य प्रसंस्करण इकाई नहीं हैं।
- देशभर में कुल खाद्यान्न उत्पादन के 10 प्रतिशत हिस्से में मोटा अनाज उगाया जा रहा है।
- राजस्थान में सर्वाधिक 33 और कर्नाटक में कुल खाद्यान्न 23 प्रतिशत क्षेत्र में श्रीअन्न का उत्पादन किया जा रहा है। ऐसी ही प्रोत्साहन योजनाओं व कृषकोंको मिल रही नियोजित मार्केटिंग की योजनाओं व अच्छे मूल्यों के प्राप्त होने के चलते ही मप्र में जहां वर्ष 2019-20 में आठ लाख छ्यानवे हज़ार मेट्रिक टन का उत्पादन होता था वहीं 2023-24 में मोटे अनाज का यह उत्पादन बारह लाख अड़सठ हज़ार टन का हो गया है।
-प्रवीण गुगनानी