राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद के सुराना गांव में बीते 832 सालों से रक्षाबंधन नहीं मना. इस त्योहार पर आज भी बहनों की आंखों में पानी भर जाता है. यहां के लोग इस त्योहार पर खुश नहीं होते, बल्कि इसे अपशकुन मानते हैं. ऐसा हो भी क्यों नहीं, इसके पीछे 832 साल पुरानी कहानी है. उस समय दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान की हत्या के बाद मुहम्मद गोरी के सैनिकों ने पूरे गांव को घेर लिया था और खोज खोज कर गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की हत्या कर दी गई थी.
यहां से सैनिकों के जाने के बाद गांव में एक भी भाई जिंदा नहीं बचा था. इस प्रसंग में हम आज उसी कहानी को बताने की कोशिश करेंगे. यह घटना साल 1192 का है. तराइन का युद्ध खत्म हो चुका था. इस युद्ध में मुहम्मद गोरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान मारे गए थे. इसी के साथ भारत में आधिकारिक तौर पर मुस्लिम आक्रांताओं की एंट्री हो गई. इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की ओर से यदुवंशी वीर भी लड़े थे, लेकिन पराजय के बाद इन वीरों ने गाजियाबाद के मोदीनगर से लगते गांव सुराना में शरण ले ली.
गोरी ने गांव में कराया था कत्लेआम
इधर, गोरी को इसकी खबर मिली तो उसने पूरी सैनिक टुकड़ी भेज कर इस गांव को घेर लिया. इसके बाद बच्चे से बूढ़े तक गांव में मिले हरेक पुरुष का कत्लेआम करा दिया था. गोरी के सैनिकों के बाद इस गांव में एक भी पुरूष जिंदा नहीं बचा था. वह दिन रक्षाबंधन का ही था. उसी समय इस गांव में रक्षाबंधन को अपशकुन माना जाने लगा. उस घटना को याद कर आज भी इस गांव की रहने वाली कोई बहन किसी भाई को राखी नहीं बांधती.
भाईदूज पर पूरी होती राखी की कसर
भले ही रक्षाबंधन के दिन गांव में मातम जैसी स्थिति रहती है, लेकिन भाई दूज के पर्व पर जश्न देखते बनता है. भाई-बहनों का त्योहार भाईदूज यहां के भाई और बहनें बड़े जोश खरोश के साथ मनाती हैं. भाई अपने बहनों के लिए दिल और तिजोरी सब खोल देते हैं. उसी दिन बहनें भी भाई की सलामती की दुआ करते हुए भाइयों की आरती उतारती हैं और खुद की रक्षा करने का शपथ भी दिलाती हैं.
ये है गांव का इतिहास
मोदी नगर का सुराना गांव छाबड़िया गोत्र के यदुवंशियों का है. यहां बसे अहीर समाज के लोग मूल रूप से अलवर के रहने वाले हैं. स्वभाव से ही सैनिक ये लोग 11वीं शदी की शुरुआत में अलवर से चलकर गाजियाबाद शहर से करीब 35 किमी दूर हिंडन के किनारे आकर बस गए. चूंकि ये सभी लोग सौ से अधिक युद्ध कर चुके थे और सभी युद्धों में इन्हें विजय मिली थी. इसलिए उन्होंने इस स्थान को सौ-राणा राखा. यह नाम बाद में अपभ्रंस होते होते सुराना हो गया. आज इस गांव को सुराना के ही नाम से जाना जाता है.