स्थान: बलिया जेल, तारीख: 19 अगस्त, समय: सुबह के 8:30 बजे. जेल के अंदर और बाहर भारी संख्या में पुलिस फोर्स होगी. पैरा मिलिट्री फोर्स भी रहेगी. खुद डीएम और एसपी मौजूद रहेंगे. बावजूद इसके आजादी के दीवाने कुंवर सिंह चौराहे की तरफ से भारत माता के जयकारे लगाते हुए आएंगे और जेल के बाहर नारे लगाएंगे और बड़े दरवाजे का ताला तोड़ देंगे. इसी के साथ जेल में बंद कैदी आजाद हो जाएंगे और फिर सभी लोग आजादी के तराने गाते हुए बलिया कलक्ट्रेट तक पहुंचेगे.
जी हां, ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा है. पहली बार तो 19 अगस्त 1942 को हुआ था. उस समय 24 घंटे के लिए ही सही, बलिया आजाद हो गया था. उसी समय से बरतानिया हुकूमत के प्रतीक के तौर पर हर साल जेल के ताले टूटते हैं. यह सबकुछ होते हुए पुलिस और प्रशासन के लोग देखते हैं, लेकिन तमाशबीन बने रहते हैं. शायद आप सोच रहे होंगे कि ऐसा भी कहीं होता है क्या? लेकिन ऐसा ही होता है और 1947 के बाद से हर साल होता है. इससे जानने के लिए आइए 82 साल पीछे चलते हैं.
गांधी जी की गिरफ्तारी से आया उबाल
मुंबई में महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को करो या मरो का नारा दिया था. बलिया के लोग इस नारे का मतलब समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि करें क्या और मरें क्यों? इतने में खबर आई कि मुंबई में अंग्रेजों ने गांधी जी के साथ सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू समेत करीब दर्जन भर नेताओं को अरेस्ट कर लिया है. इस खबर से बलिया में इस कदर उबाल आ गया कि लोग हंसिया, हथौड़ा और लाठी डंडे लेकर अंग्रेजों से भिड़ने के लिए निकल पड़े.
बेलन चिमटा लेकर निकल पड़ी थी महिलाएं
बलिया के पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर महिलाएं भी हाथ में बेलन, चिमटा और झाडू लेकर चल पड़ी थीं. जनाक्रोश चरम पर था. थाने जलाए जा रहे थे, सरकारी दफ्तरों को लूटा जा रहा था. कई जगह रेल की पटरियां उखाड़ दी गई. अंग्रेजों ने जनाक्रोश को कुचलने के लिए नेता टाइप के लोगों को जेल में बंद कर दिया, लेकिन उस समय बलिया में बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी नेता थे. सभी अगुवाई कर रहे थे. देखते ही देखते चारो दिशाओं से आजादी के दीवानों की टोली कलक्ट्रेट पहुंच गई.
डीएम बलिया के बेटे भी क्रांतिकारियों के साथ
उस समय के डीएम जगदीश्वर निगम ने पहले तो आक्रोश को कुचलने की कोशिश की, लेकिन बलिया वालों की हिम्मत देखकर खुद उनकी हालत खराब हो गई. उन्होंने तत्काल वॉयसराय को मैसेज किया कि अब बलिया को आजाद होने से कोई रोक नहीं सकता. अगले दिन डीएम बलिया जगदीश्वर निगम के बेटे शैलेश निगम भी क्रांतिकारियों की टोली में शामिल हो गए. हालांकि इस बीच पुलिस ने 30 छात्रों को उठा लिया और उन्हें नंगा कर यातानाएं दी. इसकी खबर बाकी लोगों को मिली तो छात्रों रेलवे स्टेशन, महिलाओं ने कचहरी और जवानों ने टाउन हाल पर कब्जा कर अंग्रेजी झंडे को उखाड़ फेंका.
बैरिया में 20 क्रांतिकारियों पर चली थी गोली
फिर आई 18 अगस्त की वो दोपहरी, जिसमें बैरिया में खूनी संघर्ष हुआ था. अंग्रेजों ने 20 क्रांतिकारियों को गोली से उड़ा दिया था. इसके बाद बलिया के लोगों ने भी थाने को घेर लिया और कोतवाल समेत सभी पुलिसकर्मियों को लॉकअप में बंद कर दिया. वहीं बैरिया थाने पर ही तय किया गया कि अब रोज रोज की झंझट खत्म करनी होगी. इसके बाद 19 अगस्त की सुबह लोग आर पार की लड़ाई के लिए निकले. पहले जेल के ताले तोड़ कर सभी क्रांतिकारियों को आजाद कराया और फिर कलक्ट्रेट पर धावा बोल दिया.
घटना को याद कर जश्न मनाते हैं लोग
इसकी खबर जैसे ही डीएम जगदीश्वर निगम को मिली, कहा जाता है कि उनकी पैंट गिली हो गई थी. उन्होंने कुर्सी छोड़ दी. क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे चित्तू पांडेय से आग्रह किया कि वह बलिया की कमान संभालें. इतने में क्रांतिकारियों ने कलक्ट्रेट पर तिरंगा फहरा दिया और इसी के साथ चित्तू पांडेय ने डीएम बलिया की कुर्सी पर बैठकर बलिया की आजादी का ऐलान कर दिया. यह ऐतिहासिक घटना बलिया के लोगों के जेहन में आज भी ताजा है और हर साल 19 अगस्त को बलिदान दिवस के रूप में इस घटना को याद कर बलिया के लोग जश्न मनाते हैं.