समाजवादी पार्टी ने 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए एक बड़ा दांव चल दिया है। अखिलेश यादव ने विधायक दल की बैठक में यूपी विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष के तौर पर माता प्रसाद पांडेय के नाम पर मुहर लगा दी है। पीडीए यानी की पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक फॉर्मूले के कामयाबी के बाद अगड़ों को अपने पाले में लाने के लिए इसे अखिलेश का ब्राह्मण कार्ड माना जा रहा है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कमान अखिलेश यादव के पास थी। कन्नौज से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने करहल से सदस्यता और विधानसभा से नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खाली कर दी थी। इसके बाद इस पद के लिए नए चेहरे को लेकर तमाम कयास लग रहे थे। सबसे ज्यादा चर्चा दलित चेहरे के तौर पर इंद्रजीत सरोज को कमान जिए जाने की थी। लेकिन, अखिलेश ने सात बार के विधायक माता प्रसाद पांडेय पर भरोसा जताया।
पांडे ने अपना पहला चुनाव 1980 में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में इटवा से लड़ा। 1985 में उन्होंने यह सीट बरकरार रखी, लेकिन लोकदल के उम्मीदवार के रूप में और 1989 में उन्होंने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की। वह 2002 में पहली बार सपा के टिकट पर चुने गए और 2007 और 2012 में इटवा सीट बरकरार रखी। हालांकि, 2017 में वह भाजपा के एससी द्विवेदी से हार गए, जो राज्य मंत्री बने। पांडे ने 2022 में द्विवेदी को 1,662 वोटों के मामूली अंतर से हराकर सीट फिर से हासिल कर ली। विधानसभा में सर्वदलीय बैठक और कार्यमंत्रणा समिति में भाग लेने के बाद माता प्रसाद पांडे ने कहा, इस सरकार ने राज्य के लोगों को केवल समस्याएं दी हैं, इसलिए उठाने के लिए मुद्दों की कोई कमी नहीं है।
शीर्ष पर कानून-व्यवस्था की समस्या है, बेरोजगारी है, छात्रों की समस्या है, किसानों की समस्या है आदि। हम इन सभी मुद्दों के लिए लड़ेंगे और विधानसभा में उठाएंगे। पांडे को प्रकाश का स्तंभ बताते हुए, अखिलेश ने कहा कि अनुभवी नेता के पास विधानसभा में स्वस्थ परंपराओं को जानने, समझने और दूसरों का पालन करने का लंबा अनुभव है। पूर्व सीएम ने कहा कि पांडे का अनुभव न केवल सपा विधायकों बल्कि विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों और विधायकों को भी मदद करेगा।