मुस्लिम वोटों के लिए विपक्षी नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं। विपक्षी दलों को लगना चाहिए कि हितेषी बनने का दिखावा करने मात्र से मुस्लिम वोटों को बटोरा जा सकता है। इसके बाद इन दलों मे आपस में ही सच्चा हितेषी साबित करने की प्रतिस्पर्धा हो जाती है। वोटों की खातिर मुस्लिमों के प्रति इस अंधश्रद्धा का ही परिणाम है कि इसके प्रतिक्रियास्वरूप भाजपा ने न सिर्फ राष्ट्रीय पर संगठन की मजबूत पकड़ बना ली, बल्कि लगातार तीसरी बार केंद्र में सत्ता में भी आ गई। हालांकि इसमें काफी हद तक केंद्र सरकार के विकास कार्य भी शामिल हैं।
मुस्लिमों का हितेषी बनने का नया मामला बांग्लादेश का है। पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि हिंसा प्रभावित बांग्लादेश के संकटग्रस्त लोगों के लिए पश्चिम बंगाल के दरवाजे खुले रखेंगी और उन्हें आश्रय देंगी। आश्चर्य की बात यह है कि यह मुद्दा मुख्यमंत्री ममता के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। यह विदेश मंत्रालय के अधीन आता है। विदेश मंत्रालय केंद्र सरकार के अधीन काम करता है। यह जानते हुए भी ममता ने मुस्लिम वोट बैंक पर पकड़ बनाए रखने के लिए ऐसा बयान दिया। इससे पहले भी ममता बनर्जी सरेआम मुस्लिमों का पक्ष लेती रही हैं। इसके लिए बेशक कानून की मंजूरी हो या नहीं। बर्मा के रोहिंग्या शरणार्थियों का मसला भी केंद्र सरकार के अधीन था। केंद्र सरकार ही तय कर सकती है कि भारत में किसे शरण देनी और किसे नहीं।
रोहिंग्या शरणार्थी संकट पर केंद्र के दृष्टिकोण का विरोध करते हुए ममता ने कहा था कि सभी आम लोग आतंकवादी नहीं हैं और उन्होंने समुदाय का समर्थन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 40,000 रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने की योजना बनाई थी। ममता बनर्जी की शह पाकर कई मुस्लिम संगठनों से जुड़े हजारों प्रदर्शनकारियों ने कोलकाता में रैली निकाली और प्रधानमंत्री मोदी की निर्वासन योजना का विरोध किया तथा रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए भारत में आश्रय की मांग की। यह मुद्दा मुस्लिमों के वोट बैंक से जुड़ा हुआ था। इसमें दूसरे विपक्षी दल भी कूद गए। मुस्लिमों के मामले में सभी विपक्षी दलों को लगता है कि कहीं दूसरा दल वोट बैंक का ज्यादा हिस्सा नहीं ले जाए, इसी वजह मुद्दा चाहे राज्यों का हो या फिर केंद्र सरकार से जुड़ा हो, बहती गंगा में हाथ धोने से कोई पीछे नहीं रहना चाहता।
मुस्लिम वोट की खातिर ममता किसी भी हद से गुजरने को तैयार रहती हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के इमाम और मुआज्जिम को लेकर बुलाई कॉन्फ्रेंस पर भी राजनीतिक घमासान छिड़ गया था। विरोधी पार्टियों ने इस कॉन्फ्रेंस के मद्देनजर ममता पर खुलकर तुष्टिकरण और वोट की राजनीति का आरोप लगा दिए। समूचे बंगाल के इमाम और मुआज्जिम इसमें शामिल होने के लिए हजारों की संख्या में कोलकाता पहुंचे थे। गठबंधन की सहभागी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी पर जमकर हमला बोलते हुए ममता से मुसलमानों के समग्र विकास के लिए श्वेतपत्र जारी करने की मांग कर दी। कांग्रेस नेता ने मुख्यमंत्री ममता से सवाल पूछते हुए कहा कि ममता बनर्जी को श्वेत पत्र देकर बताना चाहिए कि वक्फ संपत्ति को बेचकर कितने प्रमोटर करोड़पति हो गए और इनमें से कितने आपकी पार्टी के हैं। मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति में ममता बनर्जी कानून को भी ठेंगा दिखाने में पीछे नहीं रही। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने तृणमूल कांग्रेस शासन के तहत 2011 से बंगाल में जारी किए गए अन्य पिछड़ा वर्ग के सभी प्रमाण-पत्रों को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया। इसमें 80 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम समुदाय को इस आरक्षण का फायदा मिल रहा था। न्यायालय के इस निर्णय पर ममता बुरी तरह भड़क गई। उच्च न्यायालय के विशिष्ट न्यायाधीशों पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री ने यहां तक कह डाला था कि एक न्यायाधीश कह रहा है मैं आरएसएस का व्यक्ति हूं, दूसरा भाजपा में शामिल हो गया... आप इस तरह से न्यायाधीश कैसे हो सकते हैं और अदालतों की अध्यक्षता कैसे कर सकते हैं? इतना ही नहीं ममता सरकार को संदेशखाली में महिलाओं के यौन शोषण और जमीन हथियाने व राशन घोटाले से जुड़े सभी मामलों में अभियुक्तों को बचाने के लिए पुरजोर पैरवी की।
सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सरकार किसी शख्स को बचाने की कोशिश क्यों कर रही है। गौरतलब है कि ईडी अधिकारी तृणमूल कांग्रेस के निलंबित नेता शाहजहां शेख के यहां छापा मारने गए थे, जहां उन पर हमला किया गया था। ममता बनर्जी ही नहीं मुस्लिम वोट बैंक की खातिर अपराधी, आतंकी और देश विरोधी बयान देने वालों को गले लगाने के लिए राजनीतिक न सिर्फ आतुर रहते हैं बल्कि आपस में प्रतिस्पर्धा भी करते हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान मुस्लिम माफियाओं ओर अपराधियों को भरपूर संरक्षण दिया गया। माफिया अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी की मौत पर सपा अध्यक्ष ने खूब घडियाली आसू बहाए थे। दरअसल भाजपा के बढ़ते प्रभाव के कारण क्षेत्रीय दलों के पास वोट बैंक बनाने के अवसर सीमित हो गए हैं। यही वजह है कि मुस्लिम वोट बैंक में ज्यादा हिस्सा बटोरने के लिए सही-गलत की विवेचना किए बगैर विपक्षी दल मुस्लिमों के समर्थन के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने से बाज नहीं आते।