यूपी की योगी सरकार आउटसोर्सिंग में आरक्षण की व्यवस्था लागू कर सकती है. बीजेपी के विधायकों और सांसदों की बैठकों में मिले सुझाव के बाद योगी सरकार इस फैसले का ऐलान कर सकती है. योगी सरकार जल्द ही विभागवार आउटसोर्सिंग में दिए गए आरक्षण का डेटा जारी कर सकती है. शुरुआत सूचना विभाग से हुई है. मायावती सरकार ने साल 2008 में ही ये व्यवस्था लागू की थी. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लेकर सहयोगी दलों के नेता संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल तक इसकी मांग कर चुके हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार के विभागों में आउटसोर्सिंग नियुक्तियों के संबंध में आंकड़े आने शुरू हो गए हैं. जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सूचना विभाग में 676 में से 512 आरक्षित वर्ग के आउटसोर्सिंग से कर्मचारी है. इसमें से 340 सिर्फ ओबीसी वर्ग के हैं. यह संख्या 75 फीसदी के आसपास है जबकि अभी आउटसोर्सिंग में आरक्षण का नियम नहीं लागू है. महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि आउटसोर्सिंग में नियुक्ति शासन के स्तर पर नहीं बल्कि विभाग के ही स्तर पर उसके द्वारा अधिकृत आउटसोर्सिंग एजेंसी करती है.
केशव ने मांगा था पूरा ब्यौरा
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने संविदा और आउटसोर्सिंग भर्तियों में आरक्षण का मुद्दा उठाया था और इसको लेकर योगी सरकार से सवाल पूछा था, जिसके बाद यह आंकड़ा जारी किया गया है. डिप्टी सीएम ने आरक्षण को लेकर सरकार को चिट्ठी लिखी थी और उन्होंने कार्मिक और नियुक्ति विभाग से पूरा ब्यौरा मांगा था. डिप्टी सीएम ने सीएम योगी के विभाग से पूछा था आउटसोर्सिंग में कितने लोगों को आरक्षण का फायदा मिला है? इसको लेकर उन्होंने 15 जुलाई को पत्र लिखा था. अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने भी इसकी मांग की थी.
‘सरकार से बड़ा संगठन है’
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में संगठन को सरकार से बड़ा बताया था. जिस दिन केशव ने ये बयान दिया था. उसके अगले केशव प्रसाद ने दो मुद्दे उठा दिए. पहला आउटसोर्सिंग के जरिए दी जाने वाली नौकरी में आरक्षण और दूसरा शिक्षक भर्ती का, जिसके लिए 2018 में विज्ञापन निकाला गया था. यूपी की योगी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि कॉन्ट्रैक्ट पर दी जाने वाली नौकरियों में आरक्षण की अनदेखी हो रही है. मतलब पिछड़े और दलित कोटे को रिजर्वेशन नहीं दिया जा रहा है.
आउटसोर्सिंग का क्या मतलब?
आउटसोर्सिंग का मतलब ये है कि इसमें आउटसोर्सिंग के माध्यम से विभागों में भर्तियां की जाती हैं. सभी भर्तियां थर्ड पार्टी के माध्यम से होती हैं. सरकार टेंडर निकालती हैं. मानक पूरा करने वाली कंपनी को ठेका देकर संबंधित या जरूरत के हिसाब कर्मचारियों की डिमांड करती है. वेतन का पैसा सरकार कंपनी को देती, कंपनी उन कर्मचारियों को देती है. सैलरी को लेकर सरकार और कर्मचारी के बीच सीधा संबंध नहीं होता है.