यात्रा संस्मरण
घूमने फिरने जो लोग जाते आते हैं वो दो टाइप की थिंकिंग प्लस चाहत वाले लोग होते हैं , एक लकीर वाले फ़कीर जो वहीं जाना चाहते हैं जिनके बारे में उन्होंने अपने टिपिकल नातेदारों से सुना होता है लाइक नैनीताल , लाइक मसूरी , लाइक शिमला , लाईक मनाली । ये लोग बस इन्ही जगहों पर जाना रहना चाहते हैं , यहां भीड़ होती है , मार्किट होती है , हरियाली होती है । इसके अलावा भी पहाड़ होते हैं ये उनको नही मालूम होता और ना वो मालूम करना चाहते हैं । मैं इस कैटेगरी में कतई कम्फर्टेबल महसूस नही करता और ऐसी जगहें तलाश करता हूँ जहां लोग तो हों पर भीड़ नही ।
इस बार हम कुल 4 परिवार थे और बच्चे छोटे भी थे और बड़े भी । हमेशा की तरह नेता मुझे ही बनाया गया कि तलाशो । तलाशना कुछ ऐसा था कि बच्चों और महिलाओं को आनंद आये । अब पहाड़ पर छोटे बच्चे लोगों के लिए होता ही क्या है कि वो मजा ले पाए । राफ्टिंग , क्लिफिंग , बंजी , पैराग्लाइडिंग ये सब छोटे बच्चे तो कर नही सकते और महिलाएं भी हमारे यहां की घरेलू टिपिकल जैसी ही थीं जिन्हें इन सब एडवेंचर्स में पैसा खर्च करना भारी कष्ट दे देता ।
सो गहन विचार तलाश आदि के बाद देहरादून के आगे सहस्त्रधारा के भी आगे एक स्थान प्राप्त हुआ । नाम था कक्ष विला । खूबसूरत 4 कमरों की विला जिसमे पहाड़ फेसिंग स्विमिंग पूल है , पानी नेचुरल स्रोत से आता हुआ मने रनिंग वाटर वाला पूल । बाकी सहस्त्रधारा वाला झरना आदि तो था ही वहां । यहां एक आदमी रुको या 15 , लेनी पड़ेगी पूरी विला ही सो सम्पूर्ण निजता थी यहां । हमारे यहां की टिपिकल घरेलू महिलाओ की शर्म , झिझक हमने कम की और आखिर में उन्होंने भी स्विमिंग पूल में बच्चों बड़ों संग अपने उन पलों को जिया जो शायद घर के काम काजों और झंझटों में लुप्त हो गए थे ।
अब जहां मैं रहूं वहां कुछ अपने हिसाब का ऑफबीट न खोज पाउ ऐसा तो हो ही नही सकता। जो लोग सहस्त्रधारा के विषय मे जानते हैं उन्हें पता है कि ये गन्धक के पानी का एक स्रोत है जिसे स्थानीय स्तर पर एक पर्यटन केंद्र बना दिया गया है । खूब सारी भीड़ जैसे हमारे यहां वाटरपार्क में भीगती है वैसे ही । इसी लकीर वाले सहस्त्रधारा स्थल के 2 किलोमीटर आगे हम रह रहे थे और हमारे यहां से 1 आधा किलोमीटर आगे इस सहस्त्रधारा में जो धारा आकर मिलती है उसके उद्गम स्थल मौजूद थे । यहां लोग तो थे पर भीड़ न के बराबर थी चूंकि भीड़ तो वहीं तक पहुंचती थी जो वाटरपार्क टाइप वाला सहस्त्रधारा था ।
यहां भागीरथी की प्राकतिक धाराओं से एक अलग ही झरने , तालाब , पूल जैसे बना दिये थे यहां के ग्राम वासियों के द्वारा । इस जगह पर आस पास रुकने या टहलने वाले पर्यटक आते और इन गांव वालों से मैगी आदि खरीदते , ट्यूब लेकर भागीरथी की पारदर्शी धाराओं से अठखेलियां करते । हमने कई घण्टे बिताये उन धाराओं के बीच । इतना शीतल निर्मल जल की एक एक रोम खिल खिल सा रहा था । बच्चों ने तो जैसे भागीरथी सर पर ही उठा लिया था । खूब खेले सब , खूब भीगे , खूब सराबोर हुए ।
तो यहां हमे निजता मिली , झरने मिले , भागीरथी की धाराएं मिली , स्विमिंग पूल की मस्ती मिली , नयनाभिराम दर्शन मिले , हंसी मिली , खुशी मिली , गीत मिले , संगीत मिले , प्रज्ञा सिंह मिलीं, अपने मिले .....
अगला पड़ाव था देवदारों के बीच , एक ऐसी जगह जिसे मेरे साथ गए लोगों में से कोई भी नही जानता था और सुना था , ये लकीरी की नही फ़कीरी की जगह थी ...
क्रमशः ।
(अभिनव द्विवेदी )