8 जुलाई 2024 को रूस की राजधानी मॉस्को में दोपहर के वक्त आसमान में पंछी जैसी सफेद चीज नजर आई। जैसे-जैसे वो चीज करीब पहुंची उसका आकार बढ़ता गया। कुछ मिनटों के बाद एक विशालकाय विमान वेणुकोवो-II इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आकर खड़ी हो गई। इस विमान पर सुनहरे अक्षरों में भारत लिखा था। इस राजकीय विमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गॉर्ड ऑफ ऑर्नर और सलामियों के दौर के बीच रूस की धरती पर अपना कदम रखा। पूरे पांच बरस बाद मोदी रूस की यात्रा पर हैं। कुछ समय पहले ही पीएम मोदी का तीसरा और रूस के राष्ट्रपति पुतिन का पांचवा कार्यकाल शुरू हुआ है। इस बीच रूस यूक्रेन के बीच की जंग तीसरे साल में पहुंच चुकी है। रूस की चीन के साथ नजदीकी बढ़ गई है। पिछले कुछ सालों में रूस की निर्भरता चीन पर बढ़ी हैं। बैलेस्टिक मिसाइलें हो या हथियारों के कलपुर्जे चीन पश्चिमी प्रतिबंधों की परवाह किये बिना इसकी सप्लाई कर रहा है। चीन रूस का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार भी बन गया है। ऐसी स्थिति में ये सवाल बड़ा है कि रूस किसका पक्का दोस्त है, भारत या फिर चीन?
रूस के पास गिने चुने दोस्त
चीन और भारत दो ऐसे देश जिनका अभी भी सरहद पर गतिरोध टूटा नहीं है। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर अभी भी दोनों देशों की सेनाएं खड़ी हैं। ऐसे में भारत के लिए भी क्या इस समय इस बात पर भरोसा कर पाना कि रूस भारत से अपनी दोस्ती अलग रखता है और चीन के साथ वो ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे भारत का भरोसा टूटे। वैसे इतिहास में रूस ने ऐसा कभी किया नहीं है। लेकिन वर्तमान दौर में रूस के पास गिने चुने दोस्त हैं। ऐसे में पीएम मोदी का मॉस्को दौरा काफी अहम नजर आता है। भारत पश्चिमी देशों के ज्यादा करीब नजर आता है तो चीन की तरफ से सीमा पर हरकतें ज्यादा बढ़ने का खतरा रहता है। लेकिन रूस और भारत के रिश्ते अच्छे हैं। भारत रूस की इकोनॉमी में भी मददगार है। रूस भी चीन की आक्रमकता को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है। हालांकि कई जानकार बताते हैं कि भारत के लिए रूस कभी चीन के खिलाफ नहीं जाएगा।
चीन रूस की दोस्ती सर्वश्रेष्ठ दौर में है
18 मई 2024 में जब व्लदीमिर पुतिन बीजिंग के दौरे पर पहुंचे। पति ने अपने पांचवें कार्यकाल के पहले विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना। वही जिनपिंग ने उन्हें गले लगा करके दिखाया कि रूस के साथ चीन के रिश्ते सबसे सुनहरे दौड़ में पहुंच गए हैं। सवाल ये है कि पुतिन और जिनपिंग की बढ़ती करीबी भारत के लिए क्या मायने रखती है। 22 मार्च 2023 यानी कि ठीक 1 साल पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मास्को के दौरे पर पहुंचे थे। इस दौरान वतन वापसी से पहले जिनपिंग बहुत बड़ी बात कहते हैं। जिनपिंग उस समय रूस की यात्रा की कुछ वक्त पहले ही अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायलय ने युद्ध अपराधों के लिए पुतिन के खिलाफ वारंट जारी किया था। दोनों नेताओं ने इसे बिना किसी सीमा वाली साझेदारी को बढ़ाने वाली यात्रा बताया।
चीन के समर्थन में खुलकर खड़ा था रूस
रूस जिससे करीबी बढ़ा रहा है, इसकी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले पांच साल से भारत के खिलाफ सैन्य सामान लेकर बैठी है। भारत और रूस के बीच केवल तेल और रक्षा हथियारों का व्यापार होता है लेकिन चीन के साथ व्यापार का स्तर काफी व्यापक है। वैसे भारत रूस रिश्तों में चीन के फैक्टर को समझने के लिए हमें इतिहास में जाना पड़ेगा। एक वक्त ऐसा भी आया था जब भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर धर्मसंकट में फंस गया था। 1962 के भारत चीन युद्ध के वक्त प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को उम्मीद थी कि उसका आजमाया हुआ दोस्त सोवियत संघ साथ देगा। लेकिन तत्कालीन सोवियत यूनियन के राष्ट्रपति निकिता खुश्चेव उसी दौरान क्यूबा मिसाइल संकट में फंसे थे। कहा जाता है कि खुश्चेव ने उस वक्त नेहरू से दो टूक कहा था कि वो सीमा समझौता कर लें क्योंकि उन्हें चीन के समर्थन की जरूरत है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रूस ने कहा था कि भारत अगर इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में लेकर जाता है तो रूस चीन के साथ खड़ा रहेगा। रूस ने भारत-चीन युद्ध में अपनी तटस्थता दिखाने के लिए भारत को सैन्य विमानों की बिक्री भी निलंबित कर दी। हालांकि, जल्द ही भारत-रूस के संबंध सामान्य हो गए थे।
भारत और रूस के बीच व्यापार घाटा बना बड़ा मुद्दा
भारत के प्रधानमंत्री मॉस्को में हैं। पुतिन और मोदी के बीच विभिन्य मुद्दों पर बात होगी। भारत और रूस बहुत ही नजदीकी साझेदार रहे हैं। सामरिक तौर पर रूस ने हमेशा भारत का साथ दिया है। लेकिन आज विश्व की परिस्थितियां बदली हैं। कारोबार का तराजू इस वक्त रूस के पक्ष में है जिसे संतुलित करने के लिए भारत का जोर रहेगा। 2023-2024 के बीच भारत और रूस के बीच 54 लाख करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था। भारत ने 45.4 लाख करोड़ रुपये का कच्चा तेल खरीदा। वहीं करीब 3.3 लाख करोड़ का भारत ने निर्यात किया। इस तरह से व्यापार घाटा रूस संग रिश्तों में बड़ा मुद्दा बन चुका है। कोविड के दौरान और उसके बाद भी भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदा। जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी फायदा पहुंचा। अब रूस से कोयला लेकर दो ट्रेनें भारत आ रही है। ये जिस रूट का इस्तेमाल करेगी उसका नाम इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रासपोर्ट कॉरिडोर यानी आईएनएसटीसी है।
क्या है इस रास्ते का महत्व
आईएनएसटीसी करीब 7200 किलोमीटर लंबा मल्टी मोड नेटवर्क है। इसमें रेल, रोड और समुद्री रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है। ये भारत को सेंट्रल एशिया होते हुए सीधे रूस से कनेक्ट करता है। रूस से चली ट्रेनें ईरान के चाबहार बंदरगाह से समुद्री रास्ते से होते हुए मुंबई पहुंचेगी। यानी जहां रेलवे ट्रैक होगा वहां ट्रेन चलेगी। जहां समुद्री रास्ता होगा वहां समुद्री जहाजों के जरिए माल पहुंचाया जाएगा। आईएनएसटीसी ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से रूस को भारत से जोड़ता है। ये भारत के व्यापार के लिए बहुत मायने रखता है। यूक्रेन युद्ध के कारण रूस को समुद्री व्यापार पर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में इस गलियारे का आर्थिक और रणनीतिक महत्व और बढ़ जाता है। भारत इसे चीन के महत्वकांक्षी बेल्ट रोड इनिसिएटिव के विकल्प के रूप में देखता है।