उत्तर प्रदेश भाजपा में क्यों नहीं उभर रही है दलित लीडरशिप

उत्तर प्रदेश भाजपा में क्यों नहीं उभर रही है दलित लीडरशिप

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से जो झटका मिला है, उससे बीजेपी आलाकमान अभी तक उबर नहीं पाया है। हार की कई स्तरों पर लगातार समीक्षा हो रही है। बीजेपी प्रत्याशियों की हार और वोट प्रतिशत में गिरावट के लिये फिलहाल कई छोटे-छोटे के अलावा दो-तीन बढ़े कारण नजर आ रहे हैं। इसमें प्रत्याशियों के प्रति जनता की नाराजगी के अलावा ओबीसी और दलित वोट बैंक के खिसकने को सबसे बड़ी वजह समझा जा रहा है। इसी के चलते पार्टी के सजातीय मंत्रियों और पदाधिकारियों की लगाम कसने के साथ अब इस वोट बैंक को वापस भाजपा की तरफ लाने की जिम्मेदारी भी सजातीय नेताओं को सौंपी गई है। भाजपा आलाकमान दलित मंत्रियों के साथ ही अनुसूचित मोर्चा के पदाधिकारियों के साथ लगातार बैठकें कर रहा है, लेकिन कुछ पहलू ऐसे भी हैं जिसकी ओर अभी तक ना तो बीजेपी आलकमान और ना ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ध्यान दिया है। इसमें सबसे बड़ा कारण पार्टी और सरकार के स्तर पर कार्यकर्ताओं की अनदेखी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पूरी सरकार को अपने पास केन्द्रित कर लेना है। स्थिति यह हो गई थी कि यूपी में योगी ही सब कुछ हो गये थे, यहां तक की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक यूपी प्लस योगी बहुत हैं उपयोगी जैसे जुमले बोलने लगे थे।

स्थिति यह हो गई थी कि जो वोटर अपने जनप्रतिनिधि से सीधे सम्पर्क में रहता है उसी जनप्रतिनिधि के अधिकारों को सीज कर दिया गया था,कई मौकों पर वह (विधायक/सांसद) अपने वोटरों को चाह कर भी इंसाफ नहीं दिला पाते थे, क्योंकि उनकी न तो सरकार में सुनवाई हो रही थी, न ही अधिकारी अथवा पुलिस उनकी सुनती थी। क्योंकि ऊपर से आदेश पास हुआ था कि कोई बीजेपी का नेता किसी सरकारी अधिकारी अथवा थाना-चौकी पर नहीं जायेगा। ऐसे में कोई नेता या जनप्रतिनिधि थाने-चौकी पर जाने की हिमाकत कर लेता था तो उसको बेइज्जत होना पड़ता था। नतीजा यह होता जनप्रतिनिधि अपने ही मतदाताओं की नजरों में उतर जाता। वह वोटरों से कटने लगता, जिसकी परिणिति लोकसभा चुनाव में हार के रूप में बीजेपी को चुकानी पड़ी।

अब जब बीजेपी के नेताओं कार्यकर्ताओं की सुनी जा रही है तो वह अपना दर्द बयां कर रहे हैं। उनके द्वारा दलितों और ओबीसी समाज में भाजपा को लेकर नाराजगी की वजहें गिनाई जा रही हैं। सूत्रों की माने तो कई मंत्रीं और नेता बेरोजगारी के अलावा पार्टी में जातीय कार्यकर्ताओं को तवज्जों न मिलना हार का एक बड़ा कारण बता रहे हैं।कहा यह भी जा रहा है कि उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष किसी दलित को बनाया जाये, जिससे दलित वोटरों में अच्छा मैसेज जायेगा। कुछ लोगों ने तो यह भी आरोप लगाये कि दलित अधिकारियों को थानेदारों और तहसीलदारों की नौकरियां तो मिलती हैं लेकिन उन्हें पोस्टिंग में दरकिनार रखा जाता है। पार्टी नेताओं ने आउटसोर्सिंग और कॉन्ट्रेक्ट की नौकरी में दलित-ओबीसी समाज के लिए आरक्षण नहीं होने को राज्य में पार्टी की हार की बड़ी वजह बताया है। सरकार और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज नेताओं ने कहा कि यह चिंतनीय है कि आखिर सरकार के बेहतर काम के बावजूद लोकसभा चुनाव में आश्चर्यजनक तरीके से पहली बार बसपा से कट कर दलित वोट सपा और कांग्रेस की ओर चला गया, ऐसा आखिर क्यों हुआ ? इसका कारण बताते हुए नाराज नेताओं ने दलित नेतृत्व को आगे न बढ़ाने की बात रखी।

खैर, बीजेपी आलाकमान ने एहतियात के तौर पर जो कदम उठाये हैं उसमें लोकसभा चुनाव के परिणाम से सीख लेते हुए भाजपा ने दलितों में नए सिरे से पैठ बढ़ाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए सरकार व संगठन में दलितों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी। यूपी भाजपा का नया अध्यक्ष भी कोई दलित चेहरा हो सकता है। इस पर भी विचार हो रहा है कि उप्र की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव में सिफारिश की बजाय जीतने वाले उम्मीदवारों को ही चुनावी मैदान में उतारा जाए। उप चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। साथ ही तय किया गया कि टिकट वितरण से पहले स्थानीय नेताओं की राय जरूर ली जाएगी। इसके साथ ही हिदायत दी गई है कि सभी भाजपा नेताओं को अहंकार से दूरी बना कर चलना होगा। सभी को पद नहीं दिए जा सकते हैं, लेकिन समर्पित होकर चलने से समय आने पर पार्टी आगे आने का मौका भी देती है।

बहरहाल, हार के कारणों का पता लगाने की कोशिशों के साथ पार्टी आलाकमान ने दलित व ओबीसी नेताओं को फिलहाल दस विधानसभा के लिए होने वाले उप चुनाव पर फोकस करने को कहा है। सभी लोग मिलकर सभी 10 सीटों पर चुनाव जीतने की कोशिश में जुटें। नेताओं को आपसी मतभेद भूलकर हर सीट जीतने की रणनीति बनाकर काम करना होगा।

इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश भाजपा की मीडिया टीम की भूमिका की भी समीक्षा कर रहे हैं। संतोष ने मीडिया के पदाधिकारियों को अपने तेवर और कलेवर को और अधिक दुरूस्त करने के साथ ही सोशल मीडिया पर सरकार और संगठन का पक्ष आक्रमकता से रखने के भी निर्देश दिए हैं। इस दौरान उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार की वजहों को भी जाना और उन कमियों के बारे में भी पूछा, जिनकी वजह से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। संतोष ने लोकसभा चुनाव में विपक्ष द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर दलितों और ओबीसी के बीच फैलाए गए बातों का असर कम करने के लिए अभी से जुटने के भी निर्देश दिए।

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