परीक्षा में धांधली कोई नई बात नहीं है, लेकिन आये दिन इसका बदलता स्वरूप उन मेधावी, मेहनती व गरीब छात्रों के लिए चिंता का सबब बन चुका है जिनका सियासत और प्रशासन में कोई गॉड फादर नहीं होता, जो उन्हें घर बैठे सब कुछ सुलभ करवाता रहे! इसलिए जब भी कोई पेपर लीक होता है और परीक्षा रद्द हो जाती है तो सबसे ज्यादा आर्थिक मार इन्हीं कमजोर छात्रों पर पड़ती है। वहीं सर्वाधिक मानसिक पीड़ा ऐसे ही छात्रों को भुगतनी पड़ती है, क्योंकि इस पूरे घटनाक्रम से इनके ही सुनहरे सपने प्रभावित होते हैं।
अब देखिए न, नीट-यूजी में गड़बड़ी का मामला अभी निपटा भी नहीं है कि यूजीसी नेट परीक्षा में धांधली का एक और नया मामला प्रकाश में आया है। इसके बाद आनन-फानन में शिक्षा मंत्रालय ने यूजीसी की पवित्रता बचाने के लिए पूरी परीक्षा ही रद्द कर दी है। साथ ही बताया गया है कि जल्द ही नई तारीख का ऐलान किया जाएगा। यही नहीं, परीक्षा में गड़बड़ी की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर जब परीक्षा में धांधली हो ही रही है, तो फिर नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के गठन का औचित्य क्या है?
खास बात यह है कि यूजीसी-नेट की यह परीक्षा एक रोज पूर्व यानी 18 जून को ही देश भर में आयोजित की गई थी। तब परीक्षा आयोजित कराने वाली संस्था नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने इसके सफलता पूर्वक संपन्न होने का दावा किया था। हालांकि, शिक्षा मंत्रालय ने यूजीसी-नेट को रद्द करने का यह फैसला गृह मंत्रालय से मिले उस इनपुट के आधार पर लिया है, जिसमें पेपर लीक होने समेत बड़े स्तर पर गड़बड़ी की सूचना मिली थी।
बताया जाता है कि गृह मंत्रालय को भी परीक्षा में गड़बड़ी की यह सूचना साइबर क्राइम यूनिट से मिली थी। इसलिए प्राथमिक स्तर पर गड़बड़ी प्रमाणित होने के बाद ही यह पूरा फैसला लिया गया है। वहीं, मंत्रालय का यह भी कहना है कि परीक्षा में गड़बड़ी की शिकायतें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को भी मिली थी। जबकि गृह मंत्रालय को भी परीक्षा में गड़बड़ी की यह सूचना साइबर क्राइम यूनिट से मिली थी।
उल्लेखनीय है कि यूजीसी-नेट का जिम्मा भी नीट-यूजी परीक्षा आयोजित कराने वाली एनटीए के पास ही था। यूजीसी नेट 18 जून को देशभर के 317 शहरों में 1205 परीक्षा केंद्रों पर आयोजित कराया गया था, जिसमें 11 लाख से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया था। ऐसे में सुलगता हुआ सवाल है कि आखिर में जिस हेराफेरी से बचने के लिए केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार द्वारा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी बनाई गई, जब वह जारी ही है तो फिर इसकी जरूरत क्या है?
क्योंकि नीट-यूजी पेपर लीक प्रकरण पर यदि गौर किया जाए तो प्रथमदृष्टया यही प्रतीत होता है कि नेताओं और अधिकारियों का कोई गुप्त गठजोड़ काम कर रहा है, जिनका मकसद प्रतिभाओं का गलाघोंट कर अपने संपर्क में आने वाले छात्रों को मोटी रकम ले-देकर उपकृत करना है। इस प्रकरण में बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के एक निजी सचिव और उसके सम्पर्क में रहने वाले एक सरकारी अभियंता का नाम जिस तरह से उछला है, उससे पूरे प्रकरण की गम्भीरता को समझा जा सकता है।
चाहे बिहार हो या उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश हो या राजस्थान, या फिर इनसे कटकर अलग हुए छोटे-छोटे राज्य, परीक्षाओं में गड़बड़ियां आम बात बन चुकी हैं। वहीं, आंकड़े बताते हैं कि इन परीक्षा धांधली से जुड़े अधिकांश प्रकरणों में जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ अमूमन कोई कड़ी नजीरी कार्रवाई अबतक नहीं की गई है और न ही उसके लिए कभी कोई कड़े नियम कानून बनाये गए हैं, जिसके चलते ऐसे घाघ लोग प्रायः बच निकलते हैं।
इसलिए यह राष्ट्रीय विमर्श का विषय है कि जब अयोग्य छात्र जुगाड़ तंत्र के सहारे अच्छे और तकनीकी ओहदे तक पहुंच जाएंगे तो फिर वह क्या करेंगे, अनुमान लगाना कठिन नहीं है। कहीं बहते नवनिर्मित पुल तो कहीं इलाज के दौरान मरता आदमी, इसी बात की तो चुगली करता आया है। आप चाहे जिस भी क्षेत्र में चले जाएं, आरक्षण से नौकरी पाने वाली जमात की अकर्मण्यता की चर्चा वहां खुलकर देखने-सुनने को मिल जाएगी। उसी तरह से आरक्षण के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए प्रोत्साहित किये जा रहे निजीकरण के नाम पर भी तमाम उलटबांसी करते लोग मिल जाएंगे, जिनकी करतूतों से यह संवैधानिक तंत्र कराहने लगा है!
बताया जाता है कि इस देश में सामाजिक न्याय के नाम पर अव्वल प्रतिभाओं के साथ जो सुनियोजित अन्याय हुआ, उससे न केवल ब्रेन ड्रेन के मामले बढ़े, बल्कि अमेरिका, रूस, चीन, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान आदि ने इन्हीं प्रतिभाओं का सदुपयोग करके वैश्विक दुनियादारी में अपनी अव्वल जगह बना ली और भारत निरंतर पिछड़ता चला गया। यह ठीक है कि मोदी सरकार ने इस स्थिति को बदलने के लिए एक हद तक जद्दोजहद की, लेकिन फलसफा यह निकला कि महज 10 साल में ही सियासी और संवैधानिक बेड़ियों ने उसे भी जकड़ लिया और लगातार दो बार मिले पूर्ण बहुमत की जगह अब यह सरकार भी अल्पमत में आकर गठबंधन सरकार चलाने के लिए अभिशप्त कर दी गई।
सवाल है कि जब पूरी शिक्षा व्यवस्था काफी महंगी और आम आदमी की पहुंच के बाहर हो चली है, तब शिक्षा पात्रता परीक्षा में धांधली और पक्षपात के बीच आम आदमी के घर से निकला प्रतिभाशाली छात्र आखिर किधर जाएगा।यदि ऐसा सुनियोजित भ्रष्टाचार आम छात्रों को कतिपय महत्वपूर्ण अवसरों से दूर कर देगा तो फिर वो आगे क्या करेंगे, अनुमान लगाना कठिन नहीं है। उसी तरह से सरकारी नौकरियों की प्राप्ति में हो रही धांधली और निजी क्षेत्र में नौकरी की उटपटांग व्यवस्था व सेवा शर्तों के बीच पीस रहे आम नौनिहालों के भविष्य के बारे में यदि हम-आप नहीं सोचेंगे, तो सोचेगा कौन? यक्ष प्रश्न है।
इसलिए सरकार और प्रशासन का यह दायित्व है कि वह शिक्षा प्राप्ति से लेकर नौकरी प्राप्ति तक, या फिर कारोबारी दरवाजे खुलने तक पूरे देश में एक समान शिक्षा व परीक्षा प्रणाली लागू करे, जो पारदर्शी और भेदभाव रहित हो। इसकी सफलता से न केवल राष्ट्रीय एकता की भावना मजबूत होगी, बल्कि देश भी विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर मजबूत होगा। वहीं, शिक्षा, शैक्षणिक पात्रता परीक्षा व नौकरी पात्रता परीक्षा को केंद्रीकृत किये जाने के बजाय उन्हें विकेंद्रीकृत किया जाए, ताकि पूरे देश के लोग समान रूप से उससे लाभान्वित हो सकें।