चुनाव चौबीस : नतीजे में दो सौ चालीस
देश का संसदीय लोकतंत्र 25 साल एक पार्टी के बहुमत के बिना चला। यह दौर गठबंधन की सरकारों के तौर पर याद किया जाता है। गठबंन्धन कि सरकारों के कटु और मधुर दोनों प्रकार के अनुभव रहे।
2014 में देश के मतदाताओं ने 25 साल बाद एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिया। 2019 में भी इसे दोहराया। पर 2024 में मतदाताओं ने फिर एक पार्टी को बहुमत नहीं दिया है। संदेश साफ है कि गठबंधन की सरकार बनाओ और चलाओ।
2014 में भाजपा को अकेले ही बहुमत प्राप्त हुआ। इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को गया। जाना भी चाहिये था क्योंकि चुनाव उनके चेहरे पर ही लड़ा गया। वे इसे 2019 में भी दोहराने में कामयाब हुए। 2014 के सामान्य बहुमत को थोड़ा और ऊपर ले जाने में सफल रहे।
नरेंद्र मोदी को गठबंन्धन की सरकार चलाने का कोई अनुभव नही है। 14 साल गुजरात के मुख्यमंत्री और 10 साल देश के प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी पार्टी भाजपा को स्पष्ट बहुमत प्राप्त रहा। बीते 10 साल NDA नाम का ही रहा, काम का नही। इस बार NDA नाम का नही काम का है।
नरेंद्र मोदी ने 14 साल के अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में और 10 साल के अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह औऱ किसी को स्पेस नही दिया। पार्टी ज भीतर भी औऱ बाहर भी अपने विरोधियों को ठिकाने लगा दिया। एकछत्र राज चलाया।
अब स्थिति भिन्न हो चुकी है। NDA में भले ही वे नेता चुन लिये गये हो, इसके लिये भले ही वह घटक दलों खासकर चंद्रा बाबू नायडू औऱ नीतीश कुमार की माँग और शर्तों के सामने झुक गये हो। मगर अभी उन्हें अपनी पार्टी भाजपा के संसदीय दल में नेता चुना जाना है। मुझे नही पता कि वहाँ उन्हें कोई चुनौती मिलेगी या नहीं। पर सब कुछ आसान नही होगा।
नरेंद्र मोदी को जितना देखा और जाना है। उनके लिये गठबंधन की सरकार चलाना आसान नही होगा। ख़ास कर नायडू औऱ नीतेश जैसे नेताओं के साथ, जो राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी है और जानते है कि सत्ता की चाभी वह ही हैं।
मैं देखना चाहूँगा, नरेंद्र मोदी को, अपनी पार्टी के स्पष्ट बहुमत के लिये 32 की कम संख्या के साथ नायडू और नीतीश के रहमोकरम पर सरकार चलाते हुए। आसमान की बुलंदियों पर पहुँचते नरेंद्र मोदी को जमीन पर खड़े देखना एक नया अनुभव होगा। बहुत से सवालों के जबाब चाहिए, देखते है क्या जबाब मिलता है।
राकेश पांडेय
(लेखक एक मुखर राजनैतिक / सामाजिक समालोचक हैं)