किसका सिक्का चला और कौन चलता बना, एग्जिट पोल के अनुमान पर एक नज़र

किसका सिक्का चला और कौन चलता बना, एग्जिट पोल के अनुमान पर एक नज़र

पैदाइश बिहार की और जमाना 90 के दशक का जहां बिजली का आना खबर होता था। शाम के वक्त स्कूल से छुट्टी के वक्त बत्ती नहीं तो  बहाना ये कि पढाई कैसे करें? वक्त तो इफ़रात में है तो गाना शुरू होता था, जिसकी एक पंक्ति शायद आपको भी याद होगी- समय बिताने के लिए करना है कुछ काम। नतीजे 4 जून को आने है। पता चलेगा कि देश ने अपना मुकद्दर अगले पांच बरस के लिए किसके हाथ सौंप दिया है। लेकिन आज तो तारीख 1 ही है। ऐसे में 1 से 4 के बीच चर्चा और रौनक बनी रही इसके लिए एग्जिट पोल होते हैं। अर्थात मतदाता वोट डालकर निकला। कुछ भाई साहब और बहनजी ने उसका सर्वे किया और उसके आधार पर ये भविष्यवाणी की जाती है कि कौन जीत रहा है। भारत की हर गली और नुक्कड़ पर बैठे चुनावी चाणक्य और उनकी भविष्यवाणी हम रोज सुन रहे हैं। लेकिन कुछ लोग और संस्थान ऐसे भी हैं जो डाटा और रिसर्च के बल पर चुनाव परिणाम बताने का दावा करते हैं। इंग्लिश में इनकी सिफोलॉजिस्ट और हिंदी में चुनाव विश्लेषक कहा जाता है। ये विश्लेषक एग्जिट पोल के जरिए बताते हैं कि चुनाव में आखिर किसका सिक्का चला और कौन चलता बना। भारत के चुनावी इतिहास में इन चुनावी चाणक्यों की भूमिका कब से शुरू हुई। उनकी भविष्यवाणियां कितनी सच हुई। उनकी भविष्यवाणियों से लोकतंत्र के पर्व चुनाव में भंग पड़ने का भी खतरा होता है क्या?

कब हुआ था सबसे पहला एग्जिट पोल

सबसे पहला एग्जिट पोल 1957 के चुनाव में भारतीय जनमत संस्थान ने करवाया था। जनमत संस्थान के प्रमुख एरिक डी कोस्टा को भारत में एग्जिट पोल का जनक कहा जाता है। 90 के दशक में सैटेलाइट टीवी के जरिए एग्जिट पोल लोगों के घरों में पहुंचा। दूरदर्शन ने  दिल्ली में मौजूद सेंटर फॉर द डेवलपिंग सोसाइटीज को पूरे देश में चुनावी सर्वे करने के लिए कहा। ये एग्जिट पोल का भारतीय चुनाव और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ रिश्ते की शुरुआत थी। 

इतिहास के झरोखे से एग्जिट पोल के अनुमान पर एक नज़र- कितने सही कितने गलत

लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का चुनाव जैसे जैसे समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। एक्जिट पोल बस आने को तैयार हैं। सीटों की संख्या को लेकर सभी के अपने-अपने दावें रहेंगे। इस दावों और आकंड़ों के खेल की शुरूआत 1 मई की शाम से शुरू होकर 4 जून के नतीजे आने तक यह मान्य रहेंगे। उसके बाद यह एक्सपायर हो जाएंगे। वैसे चुनावी पोल की शुरूआत तो मतदान कि तिथि घोषित होने से पहले से लेकर सातों चरणों के दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से हो या जुबानी अनुमान तक जारी रही। ऐसे में आपको वर्तमान की ऊंगली पकड़कर इतिहास में थोड़ा पीछे लिए चलते हैं जब वास्तविक परिणाम एग्जिट पोल के नतीजे बिल्कुल उलट रहे थे और जनता के मि़ज़ाज को भांपने में एग्जिट पोल वाले पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए थे।

साल 2004 में गलत साबित हुए थे दावे

साल था 2004 का  दिल्‍ली का आसमान बिल्कुल साफ था लेकिन फिजाओं ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया था और भगवे रंग की फिजां छटने लगाी थी। सुबह के पहले पहर तक यह साफ हो गया था कि सत्‍ता का केंद्र भारत के तीन धरोहर अटल- आडवाणी और मुरली मनोहर के प्रभाव से मु्क्त होकर जनमानस के दवाब में नई सरकार के आगमन के रुप में आकार ले रहा था। शाम होते-होते जब 14वीं लोकसभा के परिणाम पर चुनाव आयोग की मुहर लगी तब तक तो भाजपा के स्वर्णिम काल की इबादत पर विराम लग गया था। उस वक्त भी तमाम एग्जिट पोल ने भाजपा गठबंधन की सरकार बनवाई थी। साल 2004 में एनडीटीवी-एसी निल्सन ने राजग को 230-250 सीट दी थी वहीं कांग्रेस को 190-205 जबकि अन्य के खाते में 100-120 दी गई थी। आज तक ओआरजी-मार्ग ने तब राजग को 248 सीट दिए थे जबकि कांग्रेस को 190 व अन्य को 105 सीट। स्टार न्यूज-सी वोटर ने तब राजग को 263-275 सीट जबकि कांग्रेस को 174-186 व अन्य को 86-98 सीट दी थी। लेकिन मतगणना के दिन राजग 200 का आंकड़ा भी छूने में कामयाब नहीं हो पाया और 189 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। भाजपा को 138 सीटों हासिल हुई थी। जबकि इसी चुनाव में संप्रग को 222 सीटें मिली थी।

साल 2009 में रहा था मिला-जुला रिजल्ट

साल 2009 पर नजर डालें तो सीएनएन-आईबीएन व दैनिक भास्कर ने संप्रग को 185-205 सीटें दिए थे वहीं राजग को 165-185 सीटें वहीं तीसरे मोर्चे को 110-130 व चौथे मोर्चे को 25-35 सीटें दी गई थी। स्टार-नेल्सन ने संप्रग को 199 सीटें दी थी और राजग को 196 व तीसरे और चौथे मोर्चे को क्रमश: 100 और 36 सीटें। इंडिया टीवी- सी वोटर के अनुसार संप्रग को 189-201 सीटें राजग को 183-195 सीटों और तीसरे मोर्चे को 105-121 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। लेकिन जब परिणाम आए तो संप्रग ने 262 सीटें हासिल की थीं। वहीं राजग 159 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। 

एग्जिट पोल का स्वर्णिम काल साल 2014

बात करते हैं 2014 की तारीख थी 16 मई, यह साफ दिख रहा है कि राजग जोरदार वापसी कर रही है। एग्जिट पोल्स ने जहां एनडीए की जीत का अंदाजा लगाया था भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत के आंकड़े से 10 सीटें ज्यादा लाकर 282 सीटों पर जीत दर्ज की थी। सत्ता तो भाजपा को अटल और आडवाणी के युग में भी हासिल हुई थी लेकिन अपने दम पर 200 पार का आंकड़ा छू पाना हमेशा से ही उनके लिए मुश्किल रहा था। सीएनएन-आईबीएन- सीएसडीएस-लोकनीति ने राजग को 276 तो संप्रग को 97 और अन्य को 148 सीट दी थी। इंडिया टुडे-सीसरो ने राजग को 272, संप्रग को 115 और अन्य के खाते में 156 सीटें आई थी। न्यूज 24 चाणक्य ने राजग को 340 सीटें दी थी तो संप्रग को 70 और अन्य 133 सीटें। टाइम्स नाऊ-ओआरजी ने राजग को 249 सीटें दिए थे, वहीं संप्रग को 148 औऱ अन्य को 146 सीटें। एबीपी न्यूज-निल्सन ने राजग को 274, संप्रग को 97 और अन्य को 165 सीटें दी थी। राजग ने 336 सीटें हासि की वहीं संप्रग 66 सीटों पर सिमट गई और अन्य के खाते में 147 सीट आई। 

बिहार और  दिल्ली में फेल साबित हुए थे पोल

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल सटीक नहीं बैठे पाए थे। सभी एग्जिट पोल्स में भाजपा गठबंधन को जदयू-राजद गठबंधन पर बढ़त बताई गई थी, लेकिन नतीजे ठीक उलट आए थे। भाजपा गठबंधन 58 सीटों पर सिमट गई, जबकि जदयू-राजद गठबंधन ने 178 सीटों के साथ सत्ता की कुर्सी पर बैठी थी। ऐसा ही कुछ  दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था। 2015 में हुए विधान सभा चुनाव के एग्जि‍ट पोल में आम आदमी पार्टी को 31 से लेकर 53 सीटें तक मिलने का अनुमान जाहिर किया गया था। भाजपा को 17-35 सीटें दी थीं। जबकि नतीजों में सिर्फ और सिर्फ आप ही दिखाई दी थी और उन्हें 70 में से 67 सीटें मिलीं। भाजापा को सिर्फ 3 सीटें और कांग्रेस का सफाया हो गया था।

2019 के एग्जिट पोल

आखिरी लोकसभा चुनाव यानी साल 2019 की। पिछले लोकसभा चुनाव में 13 एग्जिट पोल के औसत पर नजर डालें तो 306 सीटें दी थीं। जबकि यूपीए के खाते में 120 सीटें गई थीं। 2019 में एनडीए को 353 सीटें मिलीं। जिसमें अकेले बीजेपी को 300 सीटें मिली थीं। यूपीए के खाते में बस 93 सीटें आई थीं। इसमें कांग्रेस को सिर्फ 52 सीटें मिली थीं।

एग्जिट पोल, ओपिनियन पोल और प्री पोल निकालने के तरीकों पर एक नजर डालते हैं-

एग्जिट पोल किसे कहते हैं?

एग्जिट पोल हमेशा वोटिंग के दिन होता है। एग्जिट पोल में मतदान देने के तुरंत बाद जब वोटर पोलिंग बूथ से बाहर निकलता है तो उससे कुछ सवाल करके उसका मन टटोला जाता है। फिर उसका विश्लेषण किया जाता है। इसे एग्जिट पोल कहते हैं। इसका डाटा वोटिंग वाले दिन जमा किया जाता है फिर आखिरी वोटिंग के दिन शाम को एग्जिट पोल दिखाया जाता है।

क्या होता है ओपिनियन पोल?

ओपिनियन पोल सीधे वोटर से जुड़ा होता है। इसमें जनता की राय को समझने के लिए अलग-अलग तरीके से आंकड़े जमा किए जाते हैं। यानी लोगों से बात करने, उनकी राय जानने के तरीके अलग-अलग अपनाएं जाते हैं। प्री पोल, एग्जिट पोल और पोस्ट पोल ओपिनियन पोल की 3 शाखाएं हैं। पर ज्यादातर लोग एग्जिट पोल और पोस्ट पोल को एक ही समझ लेते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। ये दोनों एक-दूसरे बिल्कुल अलग होते हैं।

प्री पोल क्या होता है?

किसी भी चुनाव की घोषणा और वोटिंग से पहले जो सर्वे आप टीवी में देखते हैं या अखबारों में पढ़ते हैं कि अगर आज चुनाव हुए तो किस पार्टी की सरकार बनेगी, यह प्री पोल होता है। जैसे मान लीजिए कि लोकसभा चुनाव 2024 , 19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरणों में हैं। टीवी चैनल या अखबारों ने बताया कि आज चुनाव हुए तो किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी। यह प्री पोल से ही तय होता है।

पोस्ट पोल में क्या तय होता है?

पोस्ट पोल के परिणाम ज्यादा सटीक होते हैं। एग्जिट पोल में सर्वे एजेंसी मतदान के तुरंत बाद मतदाता से राय जानकर मोटा-मोटा हिसाब लगा लेती हैं। जबकि पोस्ट पोल हमेशा मतदान के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद होते हैं। जैसे मान लीजिए छठे चरण की वोटिंग 25 मई को हुई थी। तो सर्वे करने वाली एजेंसी मतदाताओं से 22, 23, या 24 मई तक उनकी राय जान ली होगी, इसे पोस्ट पोल कहा जाता है।

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