कभी हजार बागों के शहर रहे हजारीबाग की सियासी हवा क्या 21 साल बाद बदल जाएगी. इस बार भाजपा को अपने ही गढ़ में शिकस्त मिलेगी या हजारीबाग में लगातार चौथी बार भी कमल खिलेगा. ये सवाल इसलिए जोर-शोर से उठ रहा है क्योंकि हजारीबाग के भाजपा उम्मीदवार मनीष जायसवाल को टक्कर दे रहे पूर्व भाजपा विधायक और कांग्रेस उम्मीदवार जेपी पटेल को पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने न सिर्फ समर्थन देने का ऐलान किया बल्कि वह उनके चुनाव प्रचार में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. पर भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है.
भाजपा का गढ़ रहा है हजारीबाग
हजारीबाग को भाजपा का गढ़ माना जाता है. यहां पिछले 25 सालों से भाजपा का राज है. सिर्फ साल 1991 और 2004 को छोड़कर. तब सीपीआई ने इस सीट पर कब्जा जमाया था. जबकि सात बार भाजपा की जीत हुई. इसमें से तीन बार यशवंत सिन्हा और दो बार उनके बेटे जयंत सिन्हा भाजपा के टिकट पर जीते थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में जयंत सिन्हा को 67.9 फीसदी यानी 7,28,798 वोट मिले थे. तब दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार गोपाल साहू को सिर्फ 23.22 फीसदी वोट मिले थे और भाजपा उम्मीदवार जयंत सिन्हा ने कांग्रेस को 4,79,548 वोट के बड़े अंतर से पराजित किया था.
जयंत सिन्हा का टिकट कटा
हजारीबाग के भाजपा सांसद जयंत सिन्हा जीत की हैट्रिक लगाने के लिए फरवरी से ही ताबड़तोड़ चुनावी बैठकें कर रहे थे. भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ कई कार्यक्रम तय हो गया था. इसी क्रम में हजारीबाग में राम मंदिर के निर्माण का अभियान भी शुरू हुआ था. उनकी चुनावी तैयारी धीरे-धीरे जोर पकड़ने वाली थी. पर अगले ही महीने दो मार्च की सुबह जयंत सिन्हा ने सोशल मीडिया अकाउंट X पर ये बात लिख कर सबको चौंका दिया कि वो संसदीय राजनीति से दूर होना चाहते हैं. किसी को इसकी उम्मीद नहीं थी. पर उसी शाम जैसे ही भाजपा ने 195 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की.
जयंत सिन्हा के X पोस्ट के पीछे की वजह सामने आ गई. दरअसल इस लिस्ट में जयंत सिन्हा का नाम काट कर हजारीबाग के भाजपा विधायक मनीष जायसवाल को लोकसभा का टिकट थमा दिया गया था. कहा जा रहा है कि जयंत सिन्हा को उसी दिन टिकट कटने का पता चला. इसी दौरान उन्होंने X पोस्ट में संसदीय राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान किया. इसके बाद से वो कहीं नहीं दिखे. न भाजपा की किसी बैठक में और न ही किसी चुनावी सभा में. पर उनके बेटे आशीर सिन्हा जरूर हजारीबाग में कांग्रेस की सभा में दिखे और कांग्रेस उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार भी किया.
भाजपा को पूर्व भाजपाई से चुनौती
मार्च माह में ही हजारीबाग की सियासत में एक और उलटफेर हुआ. हजारीबाग की मांडू सीट से भाजपा विधायक और विधानसभा में भाजपा के सचेतक जेपी पटेल अचानक भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए. उनके भी भाजपा छोड़ने की किसी को उम्मीद नहीं थी. पर भाजपा को उसके गढ़ में पस्त करने के लिए कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से भाजपा के घर में सेंधमारी की. इसके साथ ही जेपी पटेल भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में आ गए. भाजपा छोड़ने का इनाम उन्हें लोकसभा टिकट के रूप में मिला. कांग्रेस में शामिल होते ही उन्हें पार्टी ने हजारीबाग से लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया. जहां उनका मुकाबला पुराने मित्र और भाजपा उम्मीदवार मनीष जायसवाल से है.
दोनों 2011 में भी एक-दूसरे से भिड़ चुके हैं. उस समय मांडू के विधानसभा उपचुनाव में जेपी पटेल जेएमएम और मनीष जायसवाल जेवीएम उम्मीदवार थे. पर तब जीत जेपी पटेल की हुई थी. पटेल के पिता टेकलाल महतो जेएमएम के कद्दावर नेता रहे हैं. वो मांडू से पांट बार विधायक और गिरिडीह से एक बार जेएमएम के सांसद भी रहे हैं. पिता की सीट से जेपी पटेल जेएमएम के टिकट पर विधायक चुने गए थे. पर बाद में भाजपा में चले गए और 2019 में भाजपा के टिकट पर विधायक बने. लेकिन लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए भाजपा भी छोड़ दिया और कांग्रेस में चले गए.
ऐसे में हजारीबाग में भाजपा उम्मीदवार मनीष जायसवाल के सामने कांग्रेस उम्मीदवार जेपी पटेल की चुनौती ने मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना दिया है. कहा जा रहा है कि जेपी पटेल के जरिए कांग्रेस ने हजारीबाग के साथ-साथ झारखंड के कोयरी, कुर्मी और कुशवाहा वोटर को साधने की कोशिश की है. ये तीनों समुदाय साथ आ गए और मुस्लिम वोटर ने भी सपोर्ट कर दिया तो इसका फायदा हजारीबाग ही नहीं, कुर्मी बहुल कुछ और सीट पर भी कांग्रेस को मिल सकता है.
यशवंत सिन्हा की शरण में कांग्रेस
भाजपा से जिस तरह से बेटे जयंत सिन्हा की सियासी विदाई हुई. उससे पिता यशवंत सिन्हा बेहद आहत हैं और उन्होंने खुल कर कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान किया है. इसके साथ ही वो कांग्रेस उम्मीदवार जेपी पटेल के कई चुनावी कार्यक्रम में दिखे और हजारीबाग की जनता से कांग्रेस को वोट देने की अपील भी की. यशवंत सिन्हा का हजारीबाग में अच्छा खासा प्रभाव रहा है. वो 1998 में पहली बार हजारीबाग से संसद सदस्य चुने गए थे. उसी साल वो वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री बनाए गए. 2002 से 2004 तक विदेश मंत्री रहे. पर 2004 में उन्हें सीपीआई से मात खानी पड़ी थी.
इसका बदला उन्होंने 2009 का चुनाव जीत कर लिया. लेकिन 2014 में उन्होंने बेटे जयंत सिन्हा को अपनी राजनीतिक विरासत सौंप दी. पिता यशवंत सिन्हा के आशीर्वाद से बेटे जयंत सिन्हा 2014 और 2019 में लगातार दो बार हजारीबाग से भाजपा के टिकट पर जीते. पर यशवंत सिन्हा के भाजपा से मतभेद बढ़ते गए और 21 साल बाद 2018 में वो भाजपा से अलग हो गए. उन्होंने 2022 में विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था. लेकिन हार गए. तब से वो संसदीय राजनीति से दूर थे. लेकिन इस बार उन्हें कांग्रेस के लिए वोट मांगते देखा जा रहा है.
हजारीबाग का सामाजिक समीकरण
हजारीबाग में सबसे ज्यादा कुर्मी वोटर हैं. अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति की भी अच्छी खासी आबादी है. पर हजारीबाग के बारे में कहा जाता है कि लोकसभा चुनाव में यहां जाति नहीं सामाजिक समीकरण हावी रहते हैं. देश में जब जिस पार्टी की हवा बही. ज्यादातर मौकों पर हजारीबाग में वही पार्टी जीती. पर इस बार हजारीबाग में मोदी फैक्टर हावी होगा या यशवंत सिन्हा फैक्टर, ये देखने वाली बात होगी.