उत्तर प्रदेश के मेरठ से समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक रफीक अंसारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है. 100 वारंट के बाद भी कोर्ट में पेश नहीं होने और 29 साल बाद हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने 1995 के एक मामले में अंसारी के खिलाफ आपराधिक केस को रद्द करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि उन्हें 1997 और 2015 के बीच लगभग 100 गैर-जमानती वारंट जारी किए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट के सामने पेश नहीं हुए.
जस्टिस संजय कुमार सिंह ने अंसारी की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया. जस्टिस का कहना है कि मौजूदा विधायक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट पर ध्यान न देना और उन्हें विधानसभा सत्र में भाग लेने की इजाजत देना एक खतरनाक और गंभीर मिसाल कायम करेगा. गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों को कानूनी जवाबदेही से बचने की अनुमति देकर हम कानून के प्रति दंडमुक्ति और अनादर की संस्कृति को कायम रखने का जोखिम खड़ा करते हैं.
रफीक अंसारी ने धारा 482 के तहत एक याचिका दाखिल की थी. उनकी मांग थी कि मेरठ में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत में आपराधिक मामला चल रहा है, जिसे रद्द किया जाए. ये केस 1995 में मेरठ के नौचंदी थाने में दर्ज किया गया था. मामले की जांच के बाद पहली चार्जशीट 22 आरोपियों के खिलाफ दायर की गई थी. इसके बाद विधायक अंसारी के खिलाफ एक और सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई. जिसको लेकर मेरठ कोर्ट अगस्त 1997 में संज्ञान लिया था.
अंसारी ने हाईकोर्ट में दी ये दलील
विधायक अंसारी कोर्ट में सुनवाई के दौरान पेश नहीं हुए. इसके बाद उनके खिलाफ 12 दिसंबर 1997 को एक गैर-जमानती वारंट जारी किया गया. इसके बावजूद भी वह पेश नहीं हुए. उनके खिलाफ लगातार गैर-जमानती वारंट जारी होते रहे, जिनकी संख्या 101 है. वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अंसारी की ओर से पेश हुए वकील ने दलील दी कि अंसारी के खिलाफ आपराधिक मुकदमे को मूल रूप से 22 आरोपियों को बरी किए जाने के आधार पर रद्द किया जाए.