किसी भी वेबसाइट के यूआरएल में पहले WWW जरूर लिखा रहता है, जिसका मतलब होता है वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web). दुनियाभर में फैला ऐसा सूचनाओं का एक जाल, जिसे हर वह इंसान इस्तेमाल कर सकता है, जिसके पास इंटरनेट कनेक्शन है. इंटरनेट का यह जाल (Web) तीन तरह का होता है. इन तीनों के अलग-अलग नियम व कायदे हैं. इन्हीं तीनों में से एक है डार्क वेब (Dark Web). आज हम इसी ‘काले और अंधेरे जाल’ के बारे में जानकारी देंगे.
डार्क वेब के अलावा वेब के दो और स्टाइल होते हैं- ओपन वेब (Open Web), और डीप वेब (Deep Web). डार्क वेब को समझने से पहले इन दोनों के बारे में जान लेना चाहिए. ओपन वेब ऐसा इंटरनेट अथवा वेब है, जिसे हर कोई इस्तेमाल कर सकता है. आप, मैं या कोई भी साधारण इंसान इसे यूज कर सकता है. गूगल क्रोम या फायरफॉक्स या माइक्रोसॉफ्ट एज़ ब्राउज़र या दूसरी ऐप्स के जरिए इस्तेमाल होने वाला कंटेंट कोई भी देख-पढ़ सकता है. इसे ओपन वेब कहा जाता है.
डीप वेब, ओपन वेब से एक कदम आगे होता है. ओपन वेब सबके लिए उपलब्ध होता है, मगर डीप वेब को वही लोग इस्तेमाल कर सकते हैं, जिनके पास उसे इस्तेमाल करने की परमिशन होती है. उदाहरण के लिए किसी शॉपिंग मॉल या किसी ऑफिस की फाइलों को देख-पढ़ पाने की परमिशन केवल कर्मचारियों के पास होती है. हर इंटरनेट यूजर इसे एक्सेस नहीं कर पाता. ओपन और डीप वेब में मूलभूत तौर पर यही अंतर है. अब बात करते हैं डार्क वेब की.
पहचान रहित है डार्क वेब
ज्यादातर लोग जब ऑनलाइन होते हैं तो वे किसी कंप्यूटर या मोबाइल या टैब का इस्तेमाल करते हैं. इस तरह के हर डिवाइस का एक आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस होता है. आईपी एड्रेस किसी भी डिवाइस का यूनीक पहचान-पत्र होता है. एक आईपी एड्रेस वाले नेटवर्क के जरिए किसी भी जानकारी को एकदम सही जगह भेजा जा सकता है. किसी भी व्यक्ति ने इंटरनेट पर कब-कब क्या-क्या किया, क्या-क्या देखा, सबकुछ आईपी एड्रेस से पता लगाया जा सकता है.
इसके उलट डार्क वेब का सिस्टम काफी जटिल होता है. इसमें किसी भी यूजर का सही-सही आईपी एड्रेस पूरी तरह पहचान रहित (Anonymise) रहता है. मतलब यदि किसी ने डार्क वेब का इस्तेमाल करके आपको कोई संदेश भेजा, तो यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि वह संदेश किसने, किस डिवाइस से, और कहां से भेजा. हाल ही में दिल्ली के स्कूलों में बम की धमकी वाले ईमेल आए थे. सुरक्षा एजेंसियों ने आशंका जताई है कि ये ईमेल डार्क वेब के जरिए भेजे गए हो सकते हैं.
बता दें कि डार्क वेब को एक्सेस करने के लिए इसी काम के लिए बने सॉफ्टवेयर्स का इस्तेमाल होता है. इस तरह के सॉफ्टवेयर्स को टोर (TOR) कहा जाता है. TOR की फुल फॉर्म है द अनियन राउटर (The Onion Router). इंग्लैंड की संस्था एजुकेशन फ्रॉम द नेशनल क्राइम एजेंसी (CEOP) की वेबसाइट के मुताबिक, लगभग 25 लाख लोग हर रोज टोर का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि टोर अपने आप में डार्क वेब नहीं है. टोर दरअसल एक टूल अथवा ब्राउज़र है, जिसके जरिए ओपन या डार्क वेब को ब्राउज़ किया जा सकता है.
किन कामों के लिए यूज होता है डार्क वेब
यह पूरी तरह इस्तेमाल करने वाले पर निर्भर करता है कि वह डार्क वेब पर क्या करता है. यदि किसी की मंशा ठीक है तो वह किसी मुद्दे पर लोगों का ध्यान खींचने के लिए डार्क वेब का इस्तेमाल कर सकता है. ऐसा करने से पहल किसी के निशाने पर नहीं आएगा, क्योंकि उसकी पहचान पूरी तरह गुप्त हो जाएगी.
यह बात अलग है कि डार्क वेब गलत कार्यों के लिए बदनाम हो चुका है. फिलहाल डार्क वेब का यूज लोग गैर-कानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कर रहे हैं. कुछ लोग तो ऑनलाइन ड्रग्स और हथियारों तक की बिक्री कर रहे हैं. TOR पर कुछ वेबसाइट्स क्रेडिट कार्ड का चोरी किया गया डेटा तक बेचती हैं. अवैध पोर्नोग्राफी (Illegal Pornography), मानव तस्करी (Human Trafficking), और किसी पर हमला कराने के लिए लोगों को हायर करना जैसे काम भी डार्क वेब पर होते हैं. हालांकि, अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी FBI डार्क वेब पर कड़ी नजर रखती है और ऐसी अवैध सर्विसेज को खत्म करने के प्रयास में भी रहती है.
तो क्या टोर इस्तेमाल करना है गैर-कानूनी?
हालांकि, टोर या फिर डार्क वेब का इस्तेमाल करना किसी भी तरह से गैर-कानूनी नहीं है. हालांकि आपको यह भी समझ लेना चाहिए कि किसी भी तरह का गलत काम करना गैर-कानूनी ही है, जैसे कि चाइल्ड एब्यूज़, आतंक को बढ़ावा देना, ड्रग्स या हथियार बेचना इत्यादी.
भूलकर भी मत सोचना यूज करने के बारे में…
यदि आपको लगता है कि ट्राय किया जाए और करने में क्या जाता है तो यह आपके लिए बहुत अधिक नुकसानदायी हो सकता है. इन दिनों बहुत से हैकर भी डार्क वेब पर रहते हैं. यदि आप डार्क वेब यूज करने जाएं और आपका पूरा डेटा चोरी हो सकता है. आपके बैंक अकाउंट से लेकर तमाम जानकारियां चुराई जा सकती हैं.