बिहार सरकार ने साइबर अपराध पर नियंत्रण पाने के लिए हर जिले में साइबर थाना खोलने का फैसला किया था. राजधानी पटना में भी साइबर थाना खुला, ताकि राजधानी वासियों को साइबर अपराध की घटनाओं से निजात दिलाई जा सके. लेकिन पटना साइबर थाने में पिछले 11 महीने में दर्ज केस में 70 प्रतिशत केस लंबित हैं. 11 महीने में 1188 केस दर्ज तो कर लिए गए, लेकिन आइओ की कमी की वजह से पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गई है. इसके पीछे की वजह भी हैरान करने वाली है जो पुलिस विभाग की अपराध के मामले के निपटारे के लिए गंभीरता और कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है.
दरअसल, आईओ पर केस की जांच के साथ ही चार्जशीट और गिरफ्तारी करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है. साइबर थाने के एक आईओ पर 70 से 80 केस का दबाव है. इसके अलग साइबर ठगी के रोज 10 से 12 केस दर्ज किए जा रहे हैं. साइबर अपराधियों पर शिकंजा करने के लिए पटना में साइबर थाना 2023 में 9 जून को खोला गया था. अब तक इस थाने की पुलिस केवल 62 अभियुक्तों को ही गिरफ्तार कर सकी है और 125 को नोटिस भेजा गया है.
जांच की रफ्तार इसलिए धीमी
इसमें भी सबसे बड़ी बात है कि अब तक किसी बड़े साइबर गिरोह के खिलाफ साइबर थाना की पुलिस टीम कार्रवाई नहीं कर पाई है. यहां 70 प्रतिशत केस आईटी एक्ट के दर्ज किए गए हैं. जिस केस में आईटी एक्ट लग जाता है उसकी जांच की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर रैंक के अफसर को दी जाती है. यही वजह है कि जांच की रफ्तार धीमी है. इस बात की भी जानकारी मिली है कि अब तक साइबर थाने की पुलिस केवल 70 केस में चार्जशीट नहीं पाई है. सबसे चौंकाने वाला तथ्य है कि अब तक किसी भी आरोपी को सजा नहीं दिलायी जा सकी है.
सिम कहीं का खाता कहीं और का
बता दें कि पटना साइबर थाने की सुनवाई एसजीएम 4 की अदालत में होती है. इसके अलावा केस की जांच की लेटलतीफी की वजह फर्जी नाम पर सिम और ऑनलाइन खाते हैं. वैसे अफसरों की कमी और साथ ही उनका कंप्यूटर फ्रेंडली नहीं होना, फेसबुक इंस्टाग्राम ट्विटर व्हाट्सएप से साइबर अपराधियों की डिटेल मिलने में देरी होना, एक-एक केस में तीन राज्य शामिल हो जाना भी मूल वजह है. साथ ही सिम कहीं का और खाता कहीं का, शातिर अपराधियों का लोकेशन कहीं और का होना भी केस की जांच में अड़चन है.
थाने का चक्कर लगाने को मजबूर
पटना साइबर थाने का बोझ कम करने के लिए अब पटना पुलिस ने एक जुगाड़ निकाल लिया है. साइबर थाने में पीड़ित का केस तो दर्ज कर लिया जा रहा है, लेकिन साइबर थाने के अधिकारी पीड़ित के संबंधित थाने में तैनात इंस्पेक्टर को उसका आईओ बना दिया जा रहा है. यह बात भी सामने आई है कि साइबर थाने की पुलिस केस दर्ज करने में आनाकानी कर रही है. पीड़ित को तीन-चार दिन तक थाने का चक्कर लगाना पड़ जाता है. इस थाने में फिलहाल एक डीएसपी, 7 पुलिस इंस्पेक्टर, 6 दारोगा और 7 पुलिसकर्मी पदस्थापित हैं. इनमें कई ऐसे इंस्पेक्टर और दारोगा हैं जो इंटरनेट और कंप्यूटर फ्रेंडली नहीं हैं. सवाल यही है कि केवल खानापूर्ति कर क्या साइबर क्राइम पर नियंत्रण पाया जा सकता है?