तीसरे चरण के चुनाव के बाद सभी उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है और जिसका फैसला 4 जून को होगा। तीसरे फेज की वोटिंग ने रफ्तार पकड़ ली है। पहले दो फेज में मतदान की धीमी रफ्तार ने तीसरा चरण आते आते उसके प्रतिशत का आंकड़ा बीते चुनाव के बरक्स में खड़ा नजर आया। पिछले बार के चुनाव में 67 प्रतिशत वोट पड़े थे और इस बार कमोबेश उसी के ईर्द-गिर्द वोटिंग का आंकड़ा आकर टिक गया है। 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 93 निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 65 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। इसमें अभी 1 से 2 प्रतिशत का इजाफा फाइनल आंकड़े आने के बाद होने की प्रबल संभावना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भी वोटिंग को लेकर जनता को जागरूक करने का काम करते रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि पहले और दूसरे चरण के चुनाव के परिपेक्ष्य में तीसरे फेज में इतनी तेजी वोटिंग में कैसे हुई?
बीजेपी के लिए तीसरा फेज कितना अहम?
तमाम लेफ्ट लिबरल और यूट्यूब के कुछ पत्रकारों ने ये थ्योरी देनी शुरू कर दी कि कम वोटिंग का नुकसान बीजेपी को होगा। तो थोड़ा सा धन्यवाद उन्हें भी बीजेपी को कर देना होगा कि जिनकी वजह से बीजेपी के वोटर बाहर निकले। तीसरा चरण बीजेपी के लिए काफी अहम था क्योंकि इसमें अधिकतर सीटें उसी के पास थी। वोटिंग कम हुई है तो किसके वोटर कम निकले इसका साइंटिफिक डाटा का पता लगा लेना फिलहाल मुमकिन नहीं है। पहले तीन चरणों को मिला दें तो 283 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। इन 283 में से कांग्रेस तो बहुत पीछे हैं और बीजेपी उससे काफी आगे है। बीते चुनाव में बीजेपी ने 164 सीटों पर जीत हासिल की थी।
500 साल के संघर्ष की याद
वोटिंग प्रतिशत के कम होने की एक वजह ये भी बताई जा रही है कि कांग्रेस का वोटर निराश है। उन्हें लग रहा है कि आएगा तो मोदी ही। वहीं बीजेपी के वोटर सोच रहे हैं कि हमारे एक वोट से क्या फर्क पड़ेगा। मोदी सरकार 400 पार का नारा लगाएंगे लेकिन वोट देने नहीं जाएंगे। ऐसा ही कुछ दो फेज में देखने को मिला। अब धूप की वजह से कम वोटिंग की बात करने वालों की थ्योरी धराशायी हो गई। बाहर के तापमान को भी देखें तो टेंपरेचर बढ़ता ही नजर आ रहा है और इसके साथ ही वोटिंग प्रतिशत भी। राहुल गांधी तो पिछले वीकेंड पर भले ही वीक ऑफ पर हो लेकिन प्रधानमंत्री ने अयोध्या का दौरा किया। उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा की पूरी याद लोगों को दिलाई। पीएम मोदी राम लला की बात तो करते थे लेकिन अयोध्या का एक दौरा और फिर वो एक साथ गिनाते हैं कि हमने क्या-क्या किया। पीएम मोदी के 500 साल के संघर्ष कहने के साथ ही 3 मिनट तक तालियां बजती रही। वहीं बीजेपी के हार्ड कोर वोटर को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि उनकी पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़े। वो भारी तादाद में बाहर निकले। संगठन, ग्राउंड वर्कर का रोल यहीं अहम हो जाता है। जिसमें कांग्रेस पर बीस साबित होती है बीजेपी।
क्या बीजेपी को 370 सीटें आ रही है?
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं सीटों पर 65.1 प्रतिशत का मतदान हुआ था। उस वक्त बीजेपी 282 सीटें सारे चरणों के मतदान के बाद हासिल किए थे और कांग्रेस के हिस्से में 44 सीटें आई थी। 2019 में 67.4 प्रतिशत वोटिंग के साथ बीजेपी ने 303 सीटें जीती और कांग्रेस ने 52 पर जीत दर्ज की थी। यानी वोटिंग प्रतिशत में इजाफा ने बीजेपी के सीटों का मुनाफा करवाया। जबकि तीसरे चरण की वोटिंग के साथ देश की 52 प्रतिशत सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका है। ऐसे में इस बात की चर्चा तेज हो चली है कि क्या एनडीए का अबकी बार 400 पार का सपना साकार होगा की नहीं क्योंकि इस फिल्म का फर्स्ट हाफ समाप्त हो चुका है। बीजेपी को अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराना होगा तो उसे पहले तीन चरणों की 282 सीटों में से 164 पर जीत मिलनी चाहिए। वहीं अगर उससे बेहतर की उम्मीद की जाए यानी कि 370 सीटें जीतना हो तो बीजेपी को बाकी के शेष चार चरणों की 260 सीटों में से 207 सीटें जीतनी होगी। पिछली बार इन 260 सीटों में से बीजेपी ने 139 सीटें जीती थीं।
फर्स्ट हाफ के चुनाव का एग्जिट विश्लेषण
इस बार के चुनाव को आप एक फिल्म की तरह देखें तो इसका फर्स्ट हाफ तो समाप्त हो गया। इंटरवल के बाद इसका सेकेंड हाफ 13 मई को शुरू होगा। फर्स्ट हाफ में पूरी फिल्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईर्द गिर्द ही घूमती नजर आई। कांग्रेस और विपक्षी दलों का गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर देने में कामयाब रहा ये कोई भी एकदम कॉन्फि़डेंस के साथ नहीं कह सकता। हां ये बात और है कि सोशल मीडिया पर तो बीजेपी को कड़ी टक्कर मिली है। लेकिन पोलिंग बूथ पर टक्कर को लेकर शक है। बीजेपी के 150 से लेकर 180 सीटों पर सिमटने का दावा करने वालों से हमारा ये सवाल है कि इस चुनाव में कांग्रेस कितनी सीट जीत रही है? विपक्ष के इंडिया गठबंधन को कितनी सीट मिल रही है। हमारे देश में जितने भी चुनाव के विश्लेषक हैं और राजनीति पंडित हैं, किसी ने भी कांग्रेस या इंडिया गठबंधन के सीटों को लेकर कोई विश्लेषण किया ही नहीं है। विचार और विमर्श के केंद्र बिंदु नरेंद्र मोदी ही बने हुए हैं।
पिछली बार 421 पर लड़कर मिले 52, 328 में इस बार क्या?
विपक्षी नेताओं का जोर इसी बात पर है कि बीजेपी को कितनी सीटें आ रही हैं। हकीकत ये है कि पिछली दफा कांग्रेस ने देश की 421 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जिनमें से लगभग 12 % यानी 52 सीटों पर उसे जीत मिली थी। लेकिन इस बार कांग्रेस अपने इतिहास की सबसे कम 328 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अगर वो अपने पिछले प्रदर्शन को ऐसे के ऐसे ही दोहराने में कामयाब होती है तो वो केवल 40 सीट ही जीत पाएगी। कांग्रेस भले ही बीजेपी को बराबर की टक्कर देने का मौखिक दावा जरूर कर रही हो। लेकिन वो बीजेपी की बराबर सीटों पर चुनाव तक नहीं लड़ पाई है। बीजेपी 410 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
मोदी के गियर बदलने से गेम में वापस आ गई बीजेपी
फर्स्ट हाफ में प्रधानमंत्री का विटेंज रूप देखकर बीजेपी के कोर वोटर उत्साहित हुए हैं। पहले चरण में मोदी ने अपने गारंटी की बात की और सरकार की उपलब्धियां गिनाई। लेकिन दूसरे चरण से ही उन्होंने वो सारी बात कही जो मोदी का सबसे पुराना रूप है और जिसकी सबसे ज्यादा फैन फॉलोइंग है। प्रधानमंत्री मोदी की जो स्वाभाविक राजनीति है और जिसके लिए वो पसंद किए जाते हैं। जाने जाते हैं वही विंटेज रूप प्रधानमंत्री मोदी का नजर आ रहा है। पहले चरण की वोटिंग के बाद पीएम मोदी ने अपना गियर बदल लिया। लेकिन सबसे अहम बात है कि इस बार कुछ लोग सोशल मीडिया को देखकर चुनाव में हार और जीत का अनुमान लगा रहे हैं। वोटिंग के बढ़ने पर भी विपक्ष की तरफ से कोई बयान देखने को नहीं मिला।