बाहुबली धनंजय सिंह के जेल से बाहर आते ही जौनपुर की राजनीति में ‘खेला’ शुरू हो गया है. बसपा ने धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी को जौनपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था और उन्होंने अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया था, लेकिन अब चुनावी मैदान से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती को जौनपुर सीट पर उम्मीदवार बदलना पड़ा है और धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला की जगह पर श्याम सिंह यादव पर भरोसा जताया है. इस राजनीतिक घटनाक्रम से जौनपुर लोकसभा सीट का ही समीकरण नहीं बदलेगा बल्कि पूर्वांचल की सियासत में भी ‘धनंजय फैक्टर’ अपना सियासी रंग दिखा सकता है?
जौनपुर लोकसभा सीट से बीजेपी ने महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जो जौनपुर के रहने वाले हैं और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं. मुंबई में अभी तक कृपा शंकर सिंह सियासत करते रहे हैं, लेकिन पहली बार अपने गृह जनपद से चुनाव लड़ रहे हैं. सपा ने जौनपुर सीट से बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा को टिकट दे रखा है.
वहीं, जेल जाने से पहले धनंजय सिंह जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का दम भर रहे थे. बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन से टिकट ना मिलने के बाद माफिया धनंजय सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था. हालांकि, इस दौरान अपहरण और रंगदारी के एक पुराने मामले में धनंजय सिंह को अदालत से सात साल की सजा हो गई. धनंजय सिंह के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी श्रीकला रेड्डी ने जौनपुर सीट से ताल ठोकी. बसपा ने श्रीकला रेड्डी टिकट देकर जौनपुर सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया.
धनंजय सिंह के बदले तेवर
बसपा से टिकट मिलने के बाद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी जौनपुर क्षेत्र में प्रचार कर रही थीं. चाहे नुक्कड़ सभा हो, रैली या फिर डोर टू डोर कैंपेन, श्रीकला रेड्डी ने लोगों के बीच अपनी उपस्थिति बनाई थी. चुनावी विश्लेषकों की माने तो जौनपुर में मुकाबला पूरी तरह त्रिकोणीय बनता जा रहा था. बीजेपी कैंडिडेट कृपा शंकर सिंह और धनंजय सिंह एक ही समुदाय से आते हैं. धनंजय सिंह 2009 में जौनपुर सीट से बसपा के टिकट पर सांसद बन चुके हैं. इसके चलते पहले बीजेपी का पलड़ा हल्का होता हुआ नजर आ रहा था. बीजेपी के लिए जौनपुर सीट फंसती हुई नजर आ रही थी. ऐसे में आखिर क्या हुआ कि बसपा ने ऐन मौके पर अपना प्रत्याशी बदल दिया या यू कहें श्रीकला रेड्डी ने अपनी दावेदारी वापस ले ली.
धनंजय सिंह के जेल जाने से पहले और जमानत पर बाहर आने के बाद उनके तेवर में काफी बदलाव नजर आ रहा है. जेल जाने से पहले धनंजय सिंह जौनपुर सीट पर हर हाल में अपने जीतने का दावा कर रहे थे. ऐसे में धनंजय सिंह को जमानत मिलने और जेल से बाहर आने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि श्रीकला रेड्डी के चुनावी अभियान को और भी धार मिलेगी, लेकिन उसका उल्टा हुआ. जेल से बाहर आने के बाद वह अपनी पत्नी के प्रचार में नहीं उतरे और न ही बीजेपी और उसकी नीतियों को लेकर एक बार भी आलोचना नहीं की.
पूर्वांचल की कई सीटों पर सियासी समीकरण बदले!
बसपा के जोनल कोऑर्डिनेटर घनश्याम खरवार ने टीवी-9 डिजिटल से बातचीत करते हुए कहा कि पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी का जौनपुर सीट से टिकट काटा नहीं गया बल्कि उन्होंने खुद चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. धनंजय सिंह ने रविवार रात करीब साढ़े 11 बजे फोन करके कहा कि निजी कारणों के चलते लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. इस संबंध में जानकारी बसपा अध्यक्ष मायावती को दी गई, जिसके बाद जौनपुर में श्रीकला रेड्डी की जगह श्याम सिंह यादव को कैंडिडेट बनाया गया है.
वरिष्ठ पत्रकार और जौनपुर से ताल्लुक रखने वाले हेमंत तिवारी कहते हैं कि श्रीकला रेड्डी के चुनावी मैदान से अपने कदम पीछे खींच लेने जौनपुर सीट के साथ-साथ पूर्वांचल की कई सीटों पर सियासी समीकरण बदल गए हैं. जौनपुर में तो बीजेपी की राह आसान होने के साथ पूर्वांचल की कई सीटों पर डैमेज कंट्रोल भी हो सकेगा. जौनपुर सीट पर करीब 2 लाख से ज्यादा ठाकुर वोटर हैं. कृपा शंकर सिंह भी ठाकुर हैं और धनंजय की पत्नी के चुनाव लड़ने से ठाकुर वोटों में बिखराव का खतरा बन रहा था. जौनपुर क्षेत्र में धनंजय सिंह की ठाकुर वोट बैंक पर अच्छी पकड़ है. अब उनके चुनाव से अलग होने से बीजेपी को साइलेंटली मदद मिलेगी.
धनंजय सिंह की सियासी पकड़
जौनपुर की सियासत में धनंजय सिंह के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. इतना ही नहीं उनके करीबी बृजेश सिंह प्रिंसू जौनपुर से एमएलसी हैं. धनंजय सिंह खुद जौनपुर से सांसद रह चुके हैं और दो बार विधायक रहे हैं. इसके अलावा धनंजय सिंह जब भी चुनाव लड़े हैं, उनके आगे बीजेपी अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी, चाहे विधानसभा का चुनाव रहा हो या फिर लोकसभा का. 2014 के बाद भी धनंजय सिंह के आगे बीजेपी कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी. इसके पीछे वजह यह की है कि जौनपुर की सियासत में उनकी मजबूत पकड़. ऐसे में जौनपुर लोकसभा सीट से धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी के चुनावी मैदान में उतरने से बीजेपी की राह मुश्किल हो सकती थी.
धनंजय का राजनीतिक असर
धनंजय सिंह की पकड़ जौनपुर में सिर्फ ठाकुर समुदाय तक सीमित नहीं है बल्कि दलित और ओबीसी की कई कुछ जातियों के बीच अच्छी पकड़ मानी जाती है. जौनपुर के मुस्लिमों में भी उनका अपना एक असर है. धनंजय सिंह की सबसे बड़ी सियासी मदद ठाकुरों के बाद किसी ने की है, तो वो मल्लाह समुदाय के लोग रहे हैं. राजनीतिक जीवन में आने के बाद धनंजय ने उनका साथ नहीं छोड़ा और जाति के प्रभावी नेताओं को अपनी टीम में भी शामिल किया और लोकल कनेक्ट तो हमेशा बनाए रखा. जौनपुर ही नहीं बल्कि मछली शहर और भदोही लोकसभा सीट पर भी धनंजय का अच्छा खासा असर है.
पूर्वांचल के बाहुबलियों से केमिस्ट्री
पूर्व सांसद धनंजय सिंह की छवि एक बाहुबली और ठाकुर नेता की है. धनंजय सिंह पूर्वांचल के उन बाहुबली नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने शुरू से ही मुख्तार अंसारी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. इसके चलते धनंजय सिंह के रिश्ते बृजेश सिंह से लेकर विनीत सिंह और रघुराज प्रताप सिंह जैसे ठाकुर बाहुबलियों के साथ रहे हैं. पूर्वांचल में इन ठाकुर बाहुबली की तूती बोलती है. मुख्तार अंसारी के निधन और विजय मिश्रा पर कानूनी शिकंजा कसने के बाद अब धनंजय सिंह से लेकर बृजेश सिंह का दबदबा बढ़ा है. ऐसे में ठाकुर बाहुबलियों की एकता बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में सियासी फायदा दिला सकती है.
राजा भैया का धनंजय कनेक्शन
रघुराज प्रताप सिंह के साथ धनंजय सिंह के रिश्ते काफी मजबूत हैं. हाल ही में रविवार को राजा भैया की अमित शाह से बेंगलुरु में मुलाकात हुई. इसके मायने भी ठाकुरों की नाराजगी से जोड़कर निकाले जा रहे हैं. यूपी में योगी आदित्यनाथ के हाथों में सत्ता की कमान आने के बाद से राजा भैया खुलकर बीजेपी की मदद कर रहे हैं. हालांकि, राजा भैया चाहते थे कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन हो, लेकिन बात नहीं बनी. ठाकुरों की नाराजगी के बीच अमित शाह के साथ राजा भैया की मुलाकात ने अब सियासी रंग दिखाना शुरू कर दिया है. इसके बाद ही धनंजय सिंह चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लेते हैं और बीजेपी को लेकर उनके तेवर ठंडे पड़ गए है. रघुराज प्रताप सिंह को धनंजय सिंह अपने बड़े भाई की तरह मानते हैं.
धनंजय की चुप्पी या तरफदारी
लोकसभा चुनाव से पीछे हटने के बाद धनंजय सिंह ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं और खामोशी अख्तियार कर रखी है. उनका कहना है कि जौनपुर को लोंगो के साथ सलाह-मशवरा करके फैसला लेंगे. माना जा रहा है कि अब साइलेंट होकर धनंजय सिंह बीजेपी के लिए सियासी मददगार साबित होंगे. जौनपुर और मछली शहर सीट पर वह अपने समर्थक वोटरों को बीजेपी के पक्ष में करने का रोल अदा करेंगे. इसके अलावा पूर्वांचल में ठाकुर वोटरों को साधने का काम करेंगे, क्योंकि ठाकुर वोटर पूर्वांचल में निर्णायक भूमिका में है.
जौनपुर सीट से लेकर प्रतापगढ़, गाजीपुर, बलिया, अयोध्या, भदोही, चंदौली जैसे सीटों पर ठाकुर मतदाता ठीक-ठाक है. धनंजय सिंह की खामोशी बीजेपी के लिए सियासी मददगार साबित होंगे. ठाकुर मतदाताओं में धनंजय सिंह का असर पूर्वांचल की 12 सीटों पर है. इनमें जौनपुर, मछलीशहर, घोसी, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, आजमगढ़, लालगंज, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र और भदोही शामिल हैं. बीजेपी ने जिस तरह धनंजय सिंह से लेकर राजा भैया को साधा है, उससे पार्टी पूर्वांचल में लाभ मिल सकता है.