सात दशकों से अधिक वर्षों में देश ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों से भरी यात्रा के दौरान 15 प्रधानमंत्रियों को देखा है। एक बार फिर 18वीं लोकसभा के चयन के लिए देश चुनावी मोड में जाने वाला है। लेकिन आज आपको हम इन चुनावों या उसके आने वाले नतीजों को लेकर कुछ भी नहीं बताने जा रहे हैं। बल्कि आज आपको चुनाव के इतिहास में लेकर जा रहे हैं। अगर मैं आपसे सवाल करूं कि भारत आजाद कब हुआ? आप फट से 15 अगस्त 1947 कहेंगे। अगर मैं आपसे कहूं कि भारत गणतंत्र कब बना? आप कहेंगे 26 जनवरी 1950, हम आपका कोई जीके का टेस्ट नहीं ले रहे हैं। लेकिन अगर मैं आपसे पूछूं कि भारत लोकतंत्र कब बना। जाहिर सी बात है लोकतंत्र अंग्रेजों से तो हमें मिला नहीं। दरअसल, 26 जनवरी की घोषणा तो हो गई थी लेकिन थ्योरी में और प्रैक्टिकल अभी बाकी थी। सारे सवालों के जवाब हमारे संविधान में छिपा था जो ये तय करता कि हमारा गणतंत्र और हमारा लोकतंत्र कैसा होगा। भारत की लोकसभा। प्रत्यक्ष चुनाव से बनने वाली पहली, बड़ी संस्था। इसने अपने गर्भ काल से ही कई उतार चढ़ाव देखे। कई राज छाती में दबे पड़े हैं। वोट ताकत रही है और चुनाव सांसें। यूं तो विधिवत गठन 1951-52 के चुनाव से हुआ था लेकिन इसके पहले इसे संविधान सभा के नाम से जाना जाता था। तब भारत का संविधान गढ़ा गया और लोकसभा बनकर उन्हीं विधानों में अनेक संशोधन हुए। आजाद भारत में पहले आम चुनाव 1951-52 की सर्दियों में कराए गए। इसी पहले चुनाव ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्थापित कर दिया। देश का पहला आम चुनाव 68 चरणों में कराया गया था।
गुलाम भारत में भी हुए चुनाव
1934 में केंद्रीय विधानसभा के चुनाव पूरे हो गए थे। तब मताधिकार बहुत सीमित हुआ करता था। प्रांतीय परिषदों के प्रतिनिधि ही केंद्रीय विधानसभा के सदस्यों को चुना करते थे। मताधिकार के ऐतिहासिक विस्तार के साथ भारत शासन विधान -1935 के तहत प्रांतीय विधान मंडलों के चुनाव 1937 में कराए गए जिनमें आम मतदाताओं ने पहली बार मत का प्रयोग किया। गुलाम भारत में हुए इस पहले चुनाव में जिन्ना और उनकी मुस्लिम लीग बदकिस्मत रहे। साम्प्रदायिक निर्वाचक मण्डलों की प्रथा जारी रहने के बावजूद वे मुस्लिम सीटों के 25% भाग पर भी नहीं जीत सके जबकि कांग्रेस ने कुल 836 सामान्य सीटों में से 715 पर कब्जा कर लिया। मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर और मुस्लिम बहुल प्रांतों में भी बुरी तरह हारी। सभी प्रांतों में मुस्लिमों के लिए आरक्षित 485 सीटों में से लीग केवल 108 पर ही जीत सकी। कांग्रेस को मद्रास, संयुक्त प्रांत (उप्र), बिहार, मध्य प्रांत और उड़ीसा में स्पष्ट बहुमत मिला। पंजाब में सिकंदर हयात खान के नेतृत्व में काम करने वाले यूनियनिस्टों और बंगाल में फजलुल हक्क के नेतृत्व वाली भारत कृषक प्रजा पार्टी को बहुमत मिला। महत्व की बात यह थी कि जिन्ना तब पाक की दिशा में विचार भी नहीं कर रहे थे। कांग्रेस विरोधी मुस्लिम वर्ग के साथ आ गए। अपनी शक्ति की इस वृद्धि ने जिन्ना को इस भावना का विकास करने में समर्थ बना दिया कि भारत के मुसलमान अलग राष्ट्र हैं। आखिर इस सोच का विकास करते हुए जिना इस निष्कर्ष तक पहुंच गए कि अलग राष्ट्र के रूप में उन्हें अलग वतन प्राप्त करने का अधिकार ही नहीं, हक भी है।
महिलाओं और पुरुषों के लिए समान मताधिकार
1951-52 में चार महीनों में आयोजित भारत के पहले लोकसभा चुनाव ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू की जिसके द्वारा नव स्वतंत्र राष्ट्र की बागडोर उसके लोगों के हाथों में सौंप दी गई। देशभर की 489 लोकसभा और 3,283 राज्य विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले गए। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा, दौड़ में अन्य लोगों में सोशलिस्ट पार्टी भी शामिल थी, जिसके नेताओं में जयप्रकाश नारायण, जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी (केएमपीपी); भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई); अखिल भारतीय जनसंघ (बीजेएस, भाजपा का पूर्ववर्ती); हिंदू महासभा (एचएमएस); करपात्री महाराज की अखिल भारतीय राम राज्य परिषद (आरआरपी); और त्रिदीब चौधरी की रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) शामिल थे। भारतीय संविधान की विशेषता यह थी कि इसमें उस समय लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन हेतु महिलाओं और पुरुषों के लिए समान, वयस्क मताधिकार तय किया गया। घोर पिछड़ेपन और निरक्षरता वाले, नए-नए स्वाधीन हुए देश में हर नागरिक जिसकी आयु 21 वर्ष कम न हो उसे वोट डालने का अधिकार मिला। वयस्क मताधिकार की व्यवस्था तब भी अन्य कई देशों में थी लेकिन वहां मताधिकार का विस्तार धीरे-धीरे किया गया। भारत ने यह अधिकार पहली बार में ही सबको दे दिया। तब मात्र छत्तीस करोड़ कीजनसंख्या वाले भारत में साक्षर लोग केवल 16 प्रतिशत थे। इसके बावजूद लोकसभा की 489 सीटों के लिए हुए पहले चुनाव में 8.10 करोड़ (46.6%) लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया।
चुनाव आयोग के सामने चुनौतियां
भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) का कार्यालय 25 जनवरी, 1950 को स्थापित किया गया था। भारतीय सिविल सेवा के एक अधिकारी और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव सुकुमार सेन 21 मार्च, 1950 को मुख्य चुनाव आयुक्त बने। अप्रैल उस वर्ष 19 को, भारत के चुनाव कानून, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम का प्रस्ताव करते हुए, प्रधान मंत्री नेहरू ने संसद को बताया कि चुनाव 1951 के वसंत में होंगे। लेकिन न तो सरकार और न ही लोगों को इस तरह के अभ्यास को आयोजित करने या इसमें भाग लेने का कोई अनुभव था। 1937 में नौ भाग-ए राज्यों - असम, बिहार, बॉम्बे, मध्य प्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब, संयुक्त प्रांत और पश्चिम बंगाल - में चुनाव छोटे थे, जिनमें भूमि स्वामित्व, साक्षरता आदि के आधार पर सीमित मताधिकार था। गुहा ने लिखा सीईसी सेन ने चुनाव कराने में नेहरू की जल्दबाजी को कुछ चिंता के साथ देखा। उन्होंने लिखा कि किसी भी राज्य अधिकारी के लिए, निश्चित रूप से किसी भी भारतीय अधिकारी के सामने इतना शानदार काम नहीं रखा गया था। चुनौतियाँ विकट और अनोखी थीं न केवल मतदाता क्षेत्र दस लाख वर्ग मील से अधिक में फैला हुआ था, बल्कि एक अजीब सामाजिक समस्या भी थी। गुहा ने लिखा कि उत्तरी भारत में कई महिलाएं खुद को ए की मां या बी की पत्नी के रूप में पंजीकृत कराना चाहती थीं। सीईसी सेन नाराज हो गए और उन्होंने अपने अधिकारियों को महिलाओं के नाम डालकर सूची को सही करने का निर्देश दिया। अंततः, देश भर से (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) 17.32 करोड़ मतदाता नामांकित हुए, और 45% महिलाएँ थीं।
रंग-बिरंगी मतपेटियाँ
1.96 लाख बूथों वाले लगभग 1.32 लाख मतदान केंद्र बनाए गए थे और 3.38 लाख पुलिसकर्मियों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात किया गया था। पहला मॉक पोलिंग ड्रिल 5 अगस्त 1951 को उदयपुर में आयोजित किया गया था। एक दर्जन से अधिक निर्माताओं को 19 लाख स्टील बैलेट बॉक्स की आपूर्ति के लिए अनुबंधित किया गया था, जिसमें प्रति बॉक्स की कीमत 4-6.12 रुपये तय की गई थी। लोकसभा चुनाव के लिए बक्से चार रंगों में थे - जैतून हरा, मैदानी हरा, हल्का हरा और ब्रंसविक हरा; विधानसभा उम्मीदवारों के लिए वे चॉकलेट, महोगनी, सागौन, गहरे भूरे और कांस्य रंगों में थे। यह देखते हुए कि 1951 में भारत की साक्षरता दर केवल 18.33% थी, विचार यह था कि अलग-अलग रंगों में मतपेटियाँ हों, जिनमें से प्रत्येक एक उम्मीदवार का प्रतिनिधित्व करती हो। लेकिन यह व्यावहारिक नहीं था, और अंततः यह निर्णय लिया गया कि सभी बूथों पर प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक अलग मतपेटी होगी, जिस पर उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह होगा। मतपत्र एक रुपये के नोट के आकार के थे। वे गुलाबी रंग के थे, उन पर भारत निर्वाचन आयोग अंकित था।
क्या रहा पहले आम चुनाव का परिणाम
देश के पहले आम चुनाव में आजादी की लड़ाई का दूसरा नाम बनी कांग्रेस ने 364 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया। देश के पहले आम चुनाव के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। उनके अलावा 2 ऐसे नेता भी चुनाव जीते जो आगे चलकर भारत के प्रधानमंत्री बने, ये थे- गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर शास्त्री।
नेहरू को प्राप्त हुए 64% से अधिक वोट
13 फरवरी, 1952 को अपने रिपब्लिकन संविधान के तहत हुए पहले आम चुनावों में भारत ने अगले पांच वर्षों के लिए कांग्रेस सरकार को चुना। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और पूर्व संचार मंत्री रफी अहमद किदवई का लोक सभा के लिए चुनाव परिणामों के मुख्य आकर्षणों में से एक था। प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में परिणाम जानने के लिए सुबह से ही इलाहाबाद की जिला अदालतों के परिसर में लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई थी। प्रधान मंत्री अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र इलाहाबाद से लोक सभा के लिए चुने गए, उन्होंने चार विरोधियों को 105,462 मतों से हराया। नेहरू को 233,571 वोट मिले। ये सामान्य सीट के लिए पड़े वोटों का 64% से अधिक रहा। माना जाता है कि यह देश में अब तक के चुनावों में किसी भी उम्मीदवार द्वारा प्राप्त सबसे अधिक वोट हैं।
नेहरू के नेतृत्व में आजाद भारत में तीन चुनाव लड़े गए
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ही ऐसे व्यक्ति थे जो लगातार दो बार देश के राष्ट्रपति रहे। जहां तक सरकारों और चुनावों का सवाल है, पंडित नेहरू के नेतृत्व में आजाद भारत में तीन चुनाव लड़े गए। 1951-52, 1957 और 1962, इन तीनों चुनावों में कांग्रेस ने लोकसभा की 73 से 75 प्रतिशत सीटें हासिल की। दरअसल, पं. नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता थे। शिक्षा, सामाजिक सुधार, आर्थिक क्षेत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और औद्योगीकरण की आजाद भारत में नीव भी उन्हीं ने रखी और इन सभी क्षेत्रों को आगे भी बढ़ाया। आईआईटी, आईआईएम, और विभिन्न विश्वविद्यालयों की स्थापना की। भाखड़ा नांगल बांध, रिहंद बांध और बोकारो स्टील प्लांट भी शुरू करवाए जिन्हें वे देश के आधुनिक मंदिर कहा करते थे।
हिमाचल में सबसे पहले मतदान हुआ
मतदान अंततः दिसंबर 1951 और फरवरी 1952 के बीच हुआ। हालाँकि, हिमाचल प्रदेश के चीनी और पांगी विधानसभा क्षेत्रों में वोट अक्टूबर 1951 में डाले गए थे, इससे पहले कि बर्फ इन क्षेत्रों को शेष भारत से काट देती। 10 दिसंबर, 1951 को देश के बाकी हिस्सों में सबसे पहले त्रावणकोर-कोचीन (वर्तमान केरल) के तिरुवेल्ला और त्रिचूर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान शुरू हुआ। पहले चुनाव में 1,874 लोकसभा उम्मीदवार और 15,361 राज्य विधानसभा उम्मीदवार थे। कोट्टायम (त्रावणकोर-कोचीन), एलेप्पी (त्रावणकोर-कोचीन), और गुडीवाड़ा (मद्रास) में क्रमशः सबसे अधिक 80.5%, 78.1% और 77.9% मतदान हुआ।