एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को हाउस अरेस्ट में रहने के दौरान जो सुरक्षा मिली थी उसका खर्चा उन्हें ही चुकाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने सुरक्षा के लिए पुलिस कर्मियों की जो तैनाती की थी उसका खर्च भुगतान खुद गौतम नवलखा को करना होगा। इसके पीछे सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया है कि गौतम नवलखा ने खुद ही हाउस अरेस्ट की मांग की थी।
इस मामले पर नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी ने जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एवीएन भट्टी की बेंच को यह जानकारी दी की हाउस अरेस्ट में रहने के दौरान नवलखा पर 1.64 करोड रुपए खर्च हुए हैं। सुरक्षा में खर्च की गई राशि का भुगतान खुद गौतम नवलखा को ही करना होगा। एल्गार परिषद-मार्कसिस्ट से संबद्ध मामले में गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि मेडिकल ग्राउंड पर गौतम नवलखा ने हाउस अरेस्ट की मांग की थी जिसे कोर्ट ने मंजूरी दी थी।
कोर्ट में नवलखा के वकील ने जानकारी दी की हाउस अरेस्ट की मांग की है तो आपको भुगतान करना होगा दो जजों की बेंच ने कहा कि आप जानते हैं कि आपका दायित्व है जिससे आप बच नहीं सकते। हाउस अरेस्ट आपकी मांग पर ही किया गया था। नियम के मुताबिक 1.64 करोड रुपए बकाया है और नवलखा को हाउस अरेस्ट के दौरान जो सुरक्षा मिलती है उसका भुगतान उन्हें करना होगा।
एनआईए ने इस मामले में नजरबंदी के आदेश को असामान्य बताया है। एनआईए के वकील राजू ने कहा कि नजरबंदी के दौरान सुरक्षा के लि 24 घंटे पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है। नवलखा के वकील ने कहा कि भुगतान करना परेशानी नहीं है मगर मुद्दा गणना को लेकर है। एजेंसी की मानें तो नवलखा इससे पहले दस लाख रुपये का भुगतान कर चुके हैं मगर अब वो इससे बच रहे है।
पीठ ने नवलखा का पक्ष रख रहे अधिवक्ता से कहा, ‘‘अगर आप मांग करते हैं तो आपको भुगतान भी करना होगा।’’ शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की, ‘‘ यह देनदारी है, आप जानते हैं, आप इससे बच नहीं सकते क्योंकि आपने (नजरबंदी के दौरान सुरक्षा की) इसकी मांग की थी।’’ राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) का शीर्ष अदालत में पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एस.वी. राजू ने कहा कि 1.64 करोड़ रुपये बकाया हैं और 70 वर्षीय नवलखा को उनकी नजरबंदी के दौरान प्रदान की गई सुरक्षा के लिए भुगतान करना होगा।
नवलखा के वकील ने कहा कि एनआईए की याचिका पर भी सुनवाई की जरूरत है, जिसमें बंबई उच्च न्यायालय के 19 दिसंबर, 2023 के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें नवलखा को जमानत दी गई थी। उच्च न्यायालय ने नवलखा को जमानत दे दी थी लेकिन एनआईए द्वारा शीर्ष अदालत में अपील दायर करने के लिए समय मांगने के बाद उसने तीन सप्ताह तक आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने पांच जनवरी को उच्च न्यायालय द्वारा नवलखा को जमानत देने के अपने फैसले के क्रियान्वयन पर लगाई गई रोक की मियाद बढ़ा दी थी। शीर्ष अदालत के समक्ष मंगलवार को सुनवाई के दौरान एएसजी ने कहा कि नवलखा ने खुद ही घर में नजरबंद करने का अनुरोध किया था और चाहे जमानत मिले या नहीं उन्हें 24 घंटे सुरक्षा के लिए किए गए खर्च का भुगतान करना होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘जमानत का मुद्दा थोड़ा अलग है। उन्होंने पहले कहा था कि ‘मुझे घर में नजरबंद कर दो क्योंकि मैं ठीक नहीं हूं। अब वह स्वस्थ हैं और सब कुछ ठीक है।’’ राजू ने कहा, ‘‘हमने कहा था कि अगर उन्हें ऐसी जगह नजरबंद किया जाएगा जहां वह रहना चाहता हैं, तो इसके लिए चौबीसों घंटे पुलिस कर्मियों की आवश्यकता होगी... उन्होंने कहा कि ‘मैं इस मद में होने वाले खर्च का भुगतान करूंगा।’’ राजू ने कहा कि नवलखा यह कहकर भुगतान करने से नहीं बच सकते कि वह हिसाब लगाना चाहते हैं। पीठ ने नवलखा के वकील से कहा, ‘‘जब तक आपके पास यह सुविधा रहेगी, भुगतान की जाने वाली राशि बढ़ती जाएगी। आज हम जो सोच रहे हैं, वह यह है कि इसे उच्चतम स्तर को छूने की अनुमति देने के बजाय, हम एक सप्ताह का समय दें।’’
इसमें कहा गया कि नवलखा के वकील गणना देख सकते हैं और अदालत को इसके बारे में बता सकते हैं। पीठ ने कहा कि पांच जनवरी को लगाई गई अंतरिम रोक जारी रहेगी और मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी। नवलखा 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों के मामले में आरोपी हैं। पुलिस का दावा है कि उनके भाषण की वजह से अगले दिन पश्चिमी महाराष्ट्र शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़की। शीर्ष अदालत के आदेश पर नवलखा 10 नवंबर 2022 से ही नजरबंद हैं। इससे पहले वह नवी मुंबई के तलोजा कारागार में बंद थे।