हांफता बनारस , छुपता बनारस , जिंदा है बनारस , ज़िंदा रहेगा बनारस

हांफता बनारस , छुपता बनारस , जिंदा है बनारस , ज़िंदा रहेगा बनारस

आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे 

मेरे अपने मुझसे मेरे होने की निशानी मांगे 

मैंने जब बनारस को महसूस किया तो मानो बनारस मुझसे यही कह रहा हो । बनारस रेलवे स्टेशन जिसे वहां मंडुआडीह स्टेशन भी बोलते हैं पर जैसे ही हम अपना सामान सट्टा लेकर पहुंचे बनारस ने अपनी ख्याति के अनुरूप ही स्वागत किया । स्टेशन के बाहर कुछ टैक्सी वाले आपस मे बिंध रहे थे और एक टैक्सी वाला ससम्मान कंटापियाया जा रहा था ।

भोर भोर बनारस की सड़कों पर , गंगा जी के किनारे किनारे हम सोनभद्र मिर्जापुर की तरफ वाले रस्ते पर बढ़ रहे थे कि एक गड्ढम गड्ढा वाली सड़क से गुज़रना हो गया जिसने हमारा सीमा तक साथ निभाया । महराज इस साथ की कतई उम्मीद नही थी क्योंकि बा मुताबिक टीवी काशी अब क्वोटो हुई गया है । 

ठौर हमारा बिल्कुल गंगा जी के किनारे था , ठीक सामने गंगा जी पर जहां पर बहुप्रचारित क्रूज वाले जहाज खड़े होते हैं । एक क्रूज जहाज पर घाट घूमने का किराया पूछे तो पता चला कि 1000 रुपिया प्रति जन लगेगा , अपनी पुरानी वाली नाव का पूछे तो 100 रुपिया प्रति जन बताए वहां । एक नाव वाले भाईसाहब से बात हुई हमारी तब जब हम अस्सी या असि घाट पर चाय पी रहे थे । नाव वाले भिया बताए कि बाबू हम लोग 100 रुपिया लेते हैं तो लोग मोलभाव करते हैं , वहां क्रूज पर 1000 रुपिया पड़ता है तो कोईओ टोकता तक नही , बंद बंद क्रूज अच्छा है या अपनी ये खुल्ली खुल्ली नाव बताइये आप ।  सब गंगा जी का जल काला काल डीजल वाला कर दिए हैं क्रूज वाले देखियेगा वहां जहां खड़ा होता है । वाकई डीजले डीजल कर दिए थे गंगा जी के जल को जहां घाट पर बांधते हैं क्रूज जहाज को , हमने तो बिल्कुल पास जाकर मुआयना किया इस बात का । इतना गंधा गया था सब कि पक्षी जो गंगा गंगा विचरते थे वो सब अइबेई नही करते थे अब आस पास ।

कालभैरव बाबा के आशीर्वाद लेने गए जब तो लाइन तो ये लम्बी लम्बी लगी थी पर कोई कष्ट नही था किसी को । खांटी काशी की पतली पतली गलियां , सुंदर से घर , महादेव , गणेश जी , राधाकृष्ण जी की प्रतिकृतियों से लिपी पुती दीवारें , ऐसी गलियां जो सूरज की तपिश को नीचे आने ही नही देती । सब जय जय करते हुए बढ़ते गए और दर्शन लाभ लेते गए । 

सूरज देवता ने सारी कसर निकाली तब जब हम पहुंचे The काशी विश्वनाथ कॉरिडोर । गली काशी वाली जो कभी भोले की फौज को भोलेनाथ तक पहुँचाती थीं वो अब तोड़ फोड़ कर बराबर कर दी गयी थी । जे बड़े बड़े पत्थर , खुल्ला खुल्ला रास्ता , 300 रुपिया वाली कथितसुगम दर्शन स्कीम , आम और खास की छंटनी कर मलंग , औघड़ , सन्यासी भोलेबाबा तक पहुंचाने का वो तपता हुआ रास्ता बस यही हासिल था महामहिमा मंडित श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से होकर बाबा विश्वनाथ शिव लिंग के चारो तरफ लगाई हुई स्टील की उस बैरिकेडिंग के पीछे से धक्का खाते हुए भोले बाबा की एक दुश्वावारी से प्राप्त हुई झलक को देखने का । 

बस उसके घाटों ने , उसकी उन गलियों ने , उसकी उस सँस्कृति ने , उसके लोगों ने बनारस को ज़िंदा रखा है अब तक । एक ज़िंदा , अक्खड़ , मलंग , अलमस्त शहर है बनारस । बस ढोल जितना कर्रा वाला पीटा गया पोल उतना ही बड़ा निकला वहां- वहां, जहां - जहां जितना मैंने देखा और समझा बनारस को । आस्था को व्यापार में , प्राचीनता को आधुनिकता में , ठेठपन को रील कल्चर में बदलने का भरपूर प्रयास किया जा रहा है पर फिर भी बनारस ज़िंदा है अभी ...

हर हर शंभु 

महादेव

(अभिनव द्विवेदी)



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