सेलिब्रिटी की जिंदगी भी कोई आसान नहीं है. बेशक खेल, सिनेमा या किसी भी अन्य फील्ड में कामयाबी हासिल करने वाले लोगों के पास शोहरत और दौलत होती है लेकिन मशहूर होने के कारण इनकी ‘प्राइवेसी’ छिन जाती है. सेलिब्रिटी किसी आम आदमी की तरह परिवार के साथ न तो अपनी पसंद की फिल्म या कंसर्ट देखने जा सकते हैं और न ही रोड पर खड़े होकर पानीपुरी, भेलपुरी या चाट-पकौड़े का आनंद ले पाते हैं. इन्हें पहचाने जाने का खतरा होता है और इस कारण इनका सार्वजनिक जीवन कई बार घर की चहारदीवारी तक सीमित होकर रह जाता है.
टीम इंडिया के स्टार बैट्समैन विराट कोहली हाल ही में करीब दो माह का ब्रेक लेकर देश के बाहर ऐसे स्थान पर रहे थे जहां उन्हें कोई नहीं पहचानता था. इसी तरह अपने इंटरनेशनल करियर के दिनों में लोगों की निगाह से बचने के लिए पूर्व कप्तान सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) भी एक बार अपने शहर कोलकाता में सरदारजी का वेश धरकर दुर्गा विसर्जन देखने के लिए पहुंचे थे.
सरदारजी का रूप धरकर दुर्गा विसर्जन में पहुंंचे थे
सौरव ने अपनी आत्मकथा ‘ए सेंचुरी इज नॉट एनफ (एक सेंचुरी काफी नहीं)’ में इस घटना के बारे में विस्तार से बताया है. उन्होंने लिखा, ‘हर बंगाली की तरह दुर्गापूजा मेरा भी पसंदीदा त्यौहार है. मुझे दुर्गापूजा इतनी पसंद है कि मैं हमेशा कोशिश करता हूं कि पूजा के आखिरी दिन देवी मां की इस यात्रा में भी शामिल होऊं. यह वह दिन होता है जब दुर्गा मां को गंगा में विसर्जित कर दिया जाता है. उस समय घाट के आसपास इतनी भीड़ होती है कि एक बार अपनी कप्तानी के दिनों में मैंने विसर्जन घाट पर वेश बदलकर हरभजन सिंह की बिरादरी का बनकर जाने का फैसला किया था. मैं सरदारजी के वेश में वहां गया था.’
पत्नी डोना ने मेकअप आर्टिस्ट अरेंज किया था
सौरव ने लिखा, ‘ऐसे में मेरे लोगों के बीच घिर जाने का भी खतरा था लेकिन परिवार के लोगों के साथ ट्रक में बैठकर देवी मां के विसर्जन में शामिल होने का मोह इससे कहीं ज्यादा प्रबल था. पत्नी डोना ने इसके लिए बकायदा मेकअप आर्टिस्ट अरेंज किया था जो घर आकर मुझे हार्डकोर बंगाली से असली जैसा दिखने वाला ‘सरदारजी’ बना गया. हालांकि रिश्तेदार यह कहते हुए मेरा मजाक उड़ा रहे थे कि मैं पहचान लिया जाऊंगा लेकिन मैंने यह चुनौती स्वीकार कर ली थी. हालांकि वे (रिश्तेदार) ही सही निकले. पुलिस ने मुझे ट्रक पर खड़े होने की अनुमति नहीं दी और मुझे बेटी सना के साथ उस ट्रक के पीछे-पीछे कार से जाना पड़ा.’
एक पुलिस इंस्पेक्टर में पहचान लिया था
सौरव आगे लिखते हैं, ‘जैसे ही कार बाबूघाट इलाके के पास पहुंची, एक पुलिस इंस्पेक्टर मुझे गौर से देखते हुए पहचान लेने के अंदाज में मुस्कुरा दिया. मैं झेंप गया और उससे राज को अपने तक ही रखने के लिए कहा. यह सारी कवायद यूं ही नहीं थी. नदी के पास विसर्जन को दृश्य अदभुत होता है, यह समझने के लिए आपको वहां मौजूद रहकर इसे देखना होगा. आखिरकार दुर्गा मां पूरे एक साल बाद ही लौटती हैं.’
सुरक्षा को नजरअंदाज कर पाकिस्तान में भी होटल से निकले थे
वर्ष 2004 के भारतीय टीम के पाकिस्तान दौरे में भी सौरव ने सुरक्षा इंतजामों के बिना इसी तरह होटल से बाहर निकलने का जोखिम मोल लिया था. सौरव ने पुस्तक में लिखा, ‘वैसे तो मैं कई बार पाकिस्तान का दौरा कर चुका हूं लेकिन जो सुरक्षा के इंतजाम 2004 में थे, वे सबसे सख्त थे. क्या आप इस बात पर भरोसा करेंगे कि भारतीय कप्तान, सुरक्षा के उस किले से एक दिन आधी रात को अपने कुछ दोस्तों के साथ मस्ती करने के लिए भाग निकले थे. हम पाकिस्तान में वनडे मैचों की ऐतिहासिक सीरीज जीत चुके थे. सीरीज के उस निर्णायक मैच को देखने के लिए कोलकाता से भी मेरे कुछ मित्र आए थे. आधी रात के बाद मैंने पाया कि मेरे दोस्त मशहूर तंदूरी खाने और कबाबों वाले फूड स्ट्रीट में जाने की योजना बना रहे थे. लाहौर का यह इलाका ग्वालमंडी के नाम से मशहूर है. मेरा दुस्साहस देखिए कि मैंने अपने सिक्युरिटी ऑफिसर को भी नहीं बताया क्योंकि वह मुझे जाने नहीं देते. मैंने केवल अपने टीम मैनेजर रत्नाकर शेट्टी को बताया कि मैं दोस्तों के साथ जा रहा हूं.’
इस तरह मुसीबत में फंसते-फंसते बचे थे सौरव
सौरव ने लिखा, ‘मैं चुपचाप पीछे के दरवाजे से निकल गया था. कैप पहन ली थी जिससे मेरा आधा चेहरा ढंक गया था. टीम के साथी भी नहीं जातने थे कि मैं बिना किसी सुरक्षा के बाहर निकला था. फूड स्ट्रीट ऐसी जगह है जहां हमेशा आपको पहचाने जाने का खतरा रहता है. वहां किसी ने उत्साह के साथ मुझे पूछा था-अरे आप सौरव गांगुली हो न.. तो मैंने आवाज बदलते हुए इनकार में जवाब दिया था. एक और आदमी मेरे सामने आया और बोला-सर आप इधर? क्या बढ़िया खेली आपकी टीम? मैंने तुरंत उसे नजरअंदाज किया और ऐसा व्यवहार करने लगा मानो क्रिकेट से मेरा ताल्लुक ही न हो. वह आदमी हैरानी से सिर हिलाते हुए चला गया. हम डिनर खत्म करने ही वाले थे कि किसी ने मेरे झूठ का पर्दाफाश कर दिया. हम लोग जहां कुर्सियों पर बैठे थे, वहां से कुछ दूरी पर पत्रकार राजदीप सरदेसाई नजर आए. जैसे ही उन्होंने मुझे देखा, वे चिल्लाने लगे-सौरव, सौरव. मैं मुसीबत में फंस गया था. दोस्त मेरे लिए फिक्रमंद होने लगे थे क्योंकि भीड़ तेजी से बढ़ रही थी.तभी कुछ पुलिस वाले आए और मुझे घेरे में लेकर कार तक पहुंचा दिया था. हम सही सलामत होटल पहुंच गए थे. ‘
मुशर्रफ बोले-अगली बार जाना चाहें तो Pls सिक्युरिटी को बताएं
सौरव गांगुली ने लिखा , ‘ग्वालटोली वाली घटना की अगली सुबह जो सामने था, वह और भी सनसनीखेज था. मैंने रात की घटना के बारे में टीम मैनेजर को बता दिया था. इसके बाद अपने कमरे में गया तभी फोन बजा. कॉल सीधे (तत्कालीन) राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के ऑफिस से थी. दूसरी तरफ से आवाज आई – राष्ट्रपति साहब आपसे बात करना चाहते हैं. मेरी तो घिग्घी बंध गई. आखिर क्या हुआ कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति को भारतीय कप्तान को फोन करना पड़ गया. राष्ट्रपति मुशर्रफ ने नरम लेकिन दृढ़ता भरी आवाज में कहा-अगली बार जब आप बाहर जाना चाहें तो प्लीज सिक्युरिटी को जरूर इत्तला कर दें और हम आपके साथ पूरा अमला भेज देंगे. मैं पानी-पानी हो गया था.’