समानता एक सुंदर और सुरक्षित समाज की नींव है जहां पर विकास रूपी इमारत बनाई जाती है। ऐसे में भारतीय समाज में महिला और पुरुष दो आधार स्तंभ माने जाते हैं जो पूरे देश और राष्ट्र के विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की हालिया ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स रिपोर्ट जारी की गई है उसमें भारत की लैंगिक समानता पर काफी खास चर्चा की गई है। भारत में महिलाओं के साथ भेदभाव कम हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत में लैंगिक असामानता के स्तर में काफी सुधार हुआ है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी यूएनडीपी ने मानव विकास रिपोर्ट 2023-24 में लैंगिक असमानता सूचकांक यानी जेंडर इक्वेलिटी इंडेक्स की रिपोर्ट जारी की है। इसमें भारत की स्थिति और बेहतर हुई है। 2014 में भारत की रैंक 127 थी जो अब घटकर 108 हो गई है। 193 देशों में से भारत 0.437 अंक के साथ 108वें स्थान पर है। 2021 में भारत का स्थान 191 देशों में से 122 पर था। इसका मतलब ये हुआ कि लैंगिक असमानता सूचकांक 2022 में भारत ने 14 रैंक की छलांग लगाई है।
क्या होता है लैगिंग असमानता सूचकांक
ये पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता का एक माप है। लैंगिक असमानता को मांपने के चार पैमाने हैं। स्वास्थ्य, संसद में हिस्सेदारी, शिक्षा और श्रम बाजार में भागीदारी। कहने का मतलब ये है कि अब भारत में महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबरी का मौका मिल रहा है। महिलाओं के स्वास्थ्य का बेहतर ख्याल रखा जा रहा है। शिक्षा क्षेत्र में बेटियों की हिस्सेदारी बढ़ रही है। बेटों की तरह बेटियों को भी उच्च शिक्षा में बराबर के मौके मिल रहे हैं। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां महिलाएं अपना नाम नहीं कमा रही हैं।
जेंडर पे गैप
भारत ने पिछले कुछ सालों में प्रगति की है। भारत की बेटियों ने तरक्की की है। लेकिन असमानता अभी भी मौजूद है। भारत में स्त्री-पुरुष के बीच वेतन अंतर काफी अधिक है। विश्व बैंक समूह की एक रिपोर्ट में पाया गया कि विश्व स्तर पर महिलाएं पुरुषों को दिए जाने वाले प्रत्येक डॉलर के मुकाबले 77 सेंट कमाती हैं। लिंग वेतन अंतर पुरुषों और महिलाओं के बीच औसत कमाई के अंतर को मापता है। यह श्रम बाजार में प्रणालीगत असमानताओं को उजागर करता है, जिसमें प्रत्यक्ष और सूक्ष्म दोनों कारक शामिल हैं।
जेंडर पे गैप की गणना कैसे की जाती है?
आईएलओ के अनुसार, जेंडर पे गैप को मासिक वेतन, प्रति घंटा या दैनिक वेतन के लिए श्रम बाजार में काम करने वाली सभी महिलाओं और सभी पुरुषों के औसत वेतन स्तर के बीच अंतर के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह अंतर समान काम करने वाले समान अवलोकनीय विशेषताओं वाले पुरुष और महिला के बीच वेतन अंतर नहीं है। यह सभी कामकाजी महिलाओं और पुरुषों के औसत वेतन स्तर के बीच का अंतर है। इसलिए, यह समान काम के लिए समान वेतन की अवधारणा से अलग है, जो कहती है कि यदि महिलाओं और पुरुषों की योग्यताएं समान हैं और वे समान काम करते हैं, तो उन्हें समान वेतन दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, इस अंतर की गणना करने के लिए कोई एक सर्वसम्मत तरीका नहीं है। प्यू रिसर्च ने 2012 में पाया कि महिलाओं ने अमेरिका में पुरुषों की कमाई का 84 प्रतिशत कमाया, जबकि यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स ने बताया कि महिलाएं उससे कुछ महीने पहले ही डॉलर के मुकाबले 81 सेंट कमाती थीं।
अंतर क्यों?
शिक्षा के स्तर, उद्योग और काम करने के घंटे को लेकर भी वेतन में काफी अंतर है। प्यू ने अंतर की गणना करने के लिए प्रति घंटा वेतन का उपयोग किया, जबकि श्रम ब्यूरो ने साप्ताहिक वेतन का उपयोग किया, केवल पूर्णकालिक श्रमिकों को ध्यान में रखते हुए (उन लोगों के रूप में परिभाषित किया गया जो आमतौर पर प्रति सप्ताह कम से कम 35 घंटे काम करते हैं। कुल मिलाकर, कार्यप्रणाली के कारण कुछ मतभेदों के बावजूद, अधिकांश देशों और उद्योगों में किसी न किसी प्रकार का लिंग वेतन अंतर मौजूद है। बहुत सी कंपनियों में काम शिफ्ट में होता है और ऐसी कंपनियां अधिकतर लड़कों को ही काम पर रखती हैं, क्योंकि लड़के किसी भी शिफ्ट में आसानी से काम कर सकते हैं, जबकि महिलाएं रात में काम करने में असुरक्षित महसूस करती हैं।
लिंग-आधारित वेतन अंतर के पीछे के तर्क?
पहला साधारण तथ्य यह है कि लैंगिक भूमिकाओं के बारे में धारणाओं के कारण महिलाओं का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट पुरुष के मुकाबले कम है। इसमें यह भी 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के उन व्यक्तियों की संख्या पर भी प्रकाश डाला गया है जो नियमित वेतनभोगी कर्मचारी या स्व-रोजगार थे। ILO के अनुसार, महिलाओं के लिए वर्तमान ग्लोबल लेबर फोर्स रेट 47% से कम है। पुरुषों के लिए यह 72% है। भारत में, 2011 की जनगणना के अनुसार, महिलाओं के लिए कार्यबल भागीदारी दर पुरुषों के लिए 53.26% के मुकाबले 25.51% है। दूसरा कारक यह है कि कार्यबल में शामिल होने के बाद महिलाएं किस प्रकार की नौकरियों में कार्यरत होती हैं। आर्थिक विज्ञान में 2023 स्वेरिगेस रिक्सबैंक पुरस्कार अर्थशास्त्र नोबेल अकादमिक क्लाउडिया गोल्डिन को प्रदान किया गया। उन्होंने वेतन समानता के विषय पर बड़े पैमाने पर काम किया और कहा कि परंपरागत रूप से, पुरुष एक परिवार बनाने और करियर के मामले में कदम आगे बढ़ाने में सक्षम रहे हैं क्योंकि महिलाएं परिवार के लिए अपने करियर से पीछे हटती हैं।