हिमाचल प्रदेश राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के हार क्या हुई, राज्य में पार्टी की सरकार पर खतरे की घंटी दिखाई दे रही है। मात्र 14 महीने पहले उत्तर भारत के इस पहाड़ी राज्य में सरकार बनाने में कामयाब रही कांग्रेस को अब यहां सरकार बचाने के लिए तगड़ी मशक्कत करनी पड़ रही हैं। खबर यह है कि निलंबन और सियासी खींचतान के बीच हिमाचल विधानसभा में बजट पास हो गया है। सदन की कार्यवाही अनिश्चितकालीन स्थगित हो गई है। बीजेपी के 15 विधायकों को सस्पेंड किया गया था। इसके बाद अब सुक्कू सरकार को बड़ी राहत मिल गई है। सरकार से कुछ महीनों के लिए खतरा टलता दिखाई दे रहा है। हालांकि बड़ा सवाल यही है कि आखिर राज्य की कांग्रेस सरकार में इतनी बड़ी फुट कैसे आ गई, आखिर कांग्रेस अपने विधायकों को साथ क्यों नहीं रख सकी?
वीरभद्र सिंह के परिवार की अनदेखी
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की एक अपनी धाक रही है। वह राज्य के छह बार मुख्यमंत्री भी रहे हैं। चुनाव जीतने के बाद वीरभद्र सिंह की पत्नी और बेटे ने कहीं ना कहीं दावा किया था कि हमारे परिवार से ही किसी को सीएम बनाया जाना चाहिए। इसको लेकर प्रतिभा सिंह जो कि वीरभद्र सिंह की पत्नी है, उन्होंने अपना दावा ठोका था। प्रतिभा सिंह पार्टी अध्यक्ष रहते ही कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में जीतने में कामयाब हुई थी। जिस शिमला से प्रतिभा सिंह तालुका रखती हैं वहां कांग्रेस ने बढ़िया प्रदर्शन करते हुए आठ में से सात सीटों पर जीत हासिल की थी। यही कारण था कि प्रतिभा सिंह के समर्थकों ने उन्हें सीएम बनाने की मांग की थी। उनकी ओर से साफ तौर पर कहा गया था कि वीरभद्र सिंह की विरासत और उनके परिवार को अनदेखा नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके कांग्रेस अलग कमान ने सुखविंदर सिंह सुक्कू को सीएम बनाया। इसके बाद वीरभद्र फैमिली की आलाकमान से खटास हो गई।
विक्रमादित्य के तेवर
भले ही वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह सुक्कू कैबिनेट में मंत्री बन गए। बावजूद इसके पार्टी लाइन से अलग उन्होंने ऐसे कई बयान दिए जो राज्य सरकार के मुश्किलें खड़ी करती रही। इसके अलावा अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के दौरान भी उन्होंने पार्टी लाइन से अलग बयान दिया। उन्होंने खुद को कट्टर हिंदू भी बताया था। वह प्राण प्रतिष्ठा में भी शामिल हुए थे। विक्रमादित्य सिंह ने यह सब तब किया जब कांग्रेस ने कहा था कि वह प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं होगी। सुक्कू कैबिनेट से विक्रमादित्य सिंह ने इस्तीफा भी दे दिया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि उनके दिवंगत पिता के लिए इस सरकार ने सम्मान नहीं दिखाया।
रणनीतिक चूक
राज्यसभा चुनाव की बात करें तो यहां कांग्रेस को इस वजह से भी हार मिली क्योंकि पार्टी ने बाहरी उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को राज्यसभा के चुनावी मैदान में उतारा था। जबकि भाजपा ने वीरभद्र सिंह के रणनीतिकार रहे हर्ष महाजन को पर्याप्त संख्या बल नहीं होने के बावजूद भी अपना उम्मीदवार बनाया। हर्ष महाजन कुछ दिनों पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे। उन्हें कांग्रेस विधायकों का करीबी भी माना जाता रहा है। इसके अलावा कांग्रेस ने आनंद शर्मा को टिकट न देकर बड़ी गलती की। आनंद शर्मा पार्टी के कद्दावर नेता रहे हैं और वह हिमाचल प्रदेश से ही आते हैं। आनंद शर्मा राज्यसभा जाना चाहते थे। लेकिन आलाकमान ने उन्हें टिकट नहीं दिया।
बगावत के मिल रहे थे संकेत
हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के भीतर यह बगावत अचानक ही हो गई। पार्टी के जिन 6 विधायकों ने बगावत किया, वह पहले से भी संकेत देते रहे हैं। इन सभी को वीरभद्र सिंह के कैंप का माना जाता है। यानी कि यह सभी विक्रमादित्य सिंह के करीबी हैं। हालांकि, दिलचस्प बात यह भी है कि इन विधायकों को मनाने के लिए कांग्रेस और सुक्कू सरकार की ओर से कोई कोशिश नहीं की गई। इनसे कोई संवाद नहीं हुआ। सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए यह विधायक लगातार संकेत भी दे रहे थे। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह जो पहले से ही नाराज चल रही थीं, उन्होंने भी इन विधायकों को मनाने की कुछ खास कोशिश नहीं की। वहीं, मुख्यमंत्री और सरकार में सर्वेसर्वा रहने के बावजूद सुक्कू ने तीन निर्दलीय विधायकों को भी भरोसे में नहीं लिया।