दिल्ली की कानून मंत्री आतिशी ने प्रमुख सचिव (कानून) द्वारा जारी उस आदेश को अमान्य घोषित किया है, जिसमें स्थायी वकील (दीवानी) संतोष कुमार त्रिपाठी के बजाय दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक अन्य वकील को अंतरिम आधार पर स्थायी वकील नियुक्त किया गया है।
मंत्री ने 15 फरवरी को जारी एक आदेश में कहा, ‘‘त्रिपाठी दिल्ली उच्च न्यायालय, जीएनसीटीडी में स्थायी वकील (दीवानी) की जिम्मेदारियां संभालते रहेंगे। आदेश की प्रति उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को भी भेजी गई है।
अधिकारियों ने कहा था कि इस महीने की शुरुआत में, दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में शराब की दुकानें खोलने से संबंधित एक रिपोर्ट को लेकर सरकारी वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष ‘‘भ्रामक’’ बयान दिये हैं।
बाद में 14 फरवरी को, प्रधान सचिव (कानून) ने एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया, एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में और दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष दिल्ली जीएनसीटीडी का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए, श्री अनुपम श्रीवास्तव, अतिरिक्त स्थायी वकील (दीवानी) को दिल्ली उच्च न्यायालय, एनसीटी, दिल्ली में अगले आदेश तक स्थायी वकील (दीवानी) नियुक्त किया गया है।
वह दिल्ली उच्च न्यायालय, जीएनसीटी, दिल्ली में स्थायी वकील (दीवानी) के सभी कर्तव्यों का पालन करेंगे और वर्तमान में श्री संतोष कुमार त्रिपाठी द्वारा संभाले जा रहे मामलों को देखेंगे।’’
इस पर गौर करते हुए, आतिशी ने अगले दिन एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि प्रमुख सचिव (कानून) ने उपराज्यपाल और मुख्य सचिव के निर्देश पर आदेश जारी किया है और स्थायी वकील की नियुक्ति एक हस्तांतरित विषय है और यह दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद द्वारा लिया गया एक निर्णय है।
उन्होंने आदेश में कहा, स्थायी वकील को हटाना या नियुक्त करना (चाहे स्थायी या अंतरिम तरीके से) माननीय उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। न ही यह जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम 2023 के तहत आता है।
उन्होंने कहा, ‘‘उक्त आदेश प्रमुख सचिव (कानून) द्वारा प्रभारी मंत्री की मंजूरी के बिना जारी किया गया है और इसलिए यह कानून में आधार के बिना है...इसलिए, उक्तआदेश शुरू से ही अमान्य है और इसलिए इसे अमान्य घोषित किया जाता है।’’
उपराज्यपाल के निर्देश पर प्रमुख सचिव (कानून) ने त्रिपाठी को अगले आदेश तक और सक्षम प्राधिकारी द्वारा मामले में निर्णय लेने तक दिल्ली सरकार की ओर से किसी भी अदालत में पेश नहीं होने के लिए भी कहा था। इसी तरह का आदेश अधिवक्ता अरुण पंवार को भी जारी किया गया था, जो दिल्ली सरकार के पैनल वकील भी हैं।