भारत, इटली, स्पेन, बेल्जियम, जर्मनी, ग्रीस, देश कई पैटर्न वही, प्रदर्शनों में ट्रैक्टरों का उपयोग, ग्लोबल ट्रेंड पर एजेंसियों की नजर

भारत, इटली, स्पेन, बेल्जियम, जर्मनी, ग्रीस, देश कई पैटर्न वही, प्रदर्शनों में ट्रैक्टरों का उपयोग, ग्लोबल ट्रेंड पर एजेंसियों की नजर

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर किसान आंदोलन का आगाज हो गया है। दो साल पहले कृषि कानून निरस्त कराने की मांग में भी इसी तरह के विरोध प्रदर्शन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब एक बार फिर किसान दिल्ली चलो के नारे के साथ राजधानी में दाखिल होने के लिए प्रयासरत हैं। हालांकि इन्हें पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर रोक लिया गया है। किसान संगठनों से केंद्रीय मंत्री बात भी कर रहे हैं और दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा की सीमाओं पर भारी बंदोबस्त तैनात हैं। चूंकि किसान पड़ाव दर पड़ाव आगे बढ़ रहे हैं, पुलिस के साथ उनके संघर्ष की तस्वीरें भी लगातार सामने आ रही है। अभी एक हफ्ते पहले की बात है दिल्ली से 6,391 किलोमीटर दूर बेल्जियम में पुलिस बड़ी संख्या में ट्रैक्टर-सवार प्रदर्शनकारियों को संभालने के लिए संघर्ष करती नजर आई थी।  बेल्जियम में हजारों की तादाद में किसानों ने यूरोपीय संसद के बाहर प्रदर्शन किया। बता दें कि जिस वक्त प्रदर्शनकारी किसान यूरोपीय संघ के केंद्र में एकत्र हुए, उसी समय पूरे यूरोपीय संघ के नेताओं का एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन भी हो रहा था, जिसमें युद्धग्रस्त यूक्रेन के लिए अधिक धनराशि को मंजूरी दी गई।

प्रदर्शनों में ट्रैक्टरों का उपयोग  

दंगा-रोधी उपकरण पहने पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए कंटीले तारों और पानी की बौछारों का इस्तेमाल करना पड़ा। अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों में से एक के रूप में टेली-वर्किंग का सुझाव दिया गया था। यह सिर्फ ब्रुसेल्स या दिल्ली और पड़ोसी राज्य नहीं हैं जहां ट्रैक्टर पर सवार प्रदर्शनकारी कानून प्रवर्तन अधिकारियों या सरकार के लिए चिंता का कारण बन गए हैं। वर्तमान में इटली, लातविया, नीदरलैंड, स्पेन, जर्मनी, बेल्जियम, पोलैंड, रोमानिया और ग्रीस में विरोध प्रदर्शनों में ट्रैक्टरों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे यूरोपीय संघ में भी चुनावी वर्ष में संतुलन बिगड़ रहा है।

ग्लोबल प्रोटेस्ट की स्टडी

सूत्रों के मुताबिक भारतीय खुफिया एजेंसियां ​​दुनिया भर में हो रहे इन आंदोलनों पर कड़ी नजर रख रही हैं। इन विरोध प्रदर्शनों से उभरने वाले पैटर्न का विश्लेषण अनौपचारिक रूप से किया जा रहा है और पुलिस को उनसे निपटने के लिए उपकरणों सहित उपाय सुझाए जा रहे हैं। एक सूत्र ने कहा हम इसे अपने नियमित काम के हिस्से के रूप में कर रहे हैं, जहां वैश्विक घटनाओं पर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की जरूरत है। रिपोर्ट तैयार की जा रही है और संबंधित अधिकारियों के साथ साझा की जा रही है। यह सिर्फ एजेंसियां ​​नहीं हैं जो ग्लोबल प्रोटेस्ट की स्टडी कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि विरोध समूह अन्य देशों में हो रहे आंदोलनों से भी संकेत ले रहे हैं। पश्चिम में कई विरोध प्रदर्शनों में कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स और बोल्डर को हटाने के लिए संशोधित ट्रैक्टरों का उपयोग किया गया था। पंजाब स्थित किसान समूहों के विरोध प्रदर्शन में, असामान्य संशोधन वाले ट्रैक्टरों की कई तस्वीरें सामने आई हैं। अन्यत्र ट्रैक्टर आंदोलनों से प्रेरित होकर कई लोगों ने टायर प्रोटेक्टर भी लगाए हैं।

देश अलग विरोध का पैटर्न वही

जिस बात ने खुफिया अधिकारियों को आश्चर्यचकित कर दिया है वो ये है समन्वय और लामबंदी का स्तर। उदाहरण के लिए, पोलैंड में 1,400 ट्रैक्टरों ने हाल ही में एक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया और पूरे देश में सड़कें अवरुद्ध कर दी गईं। ट्रैक्टरों ने कई स्पेनिश क्षेत्रों में यातायात भी बंद कर दिया, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कठिनाई का सामना करना पड़ा। पिछले महीने में जर्मनी में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे, जहां हजारों ट्रैक्टरों ने बर्लिन पर धावा बोल दिया था, जिससे वहां की गतिविधियां रुक गईं क्योंकि किसानों ने बढ़ती लागत और कृषि ईंधन सब्सिडी को लेकर संसद के दरवाजे पर विरोध प्रदर्शन किया। पेरिस में नियमों, वेतन और करों को लेकर ट्रैक्टर विरोध प्रदर्शन किया गया है जबकि रोमानिया में किसानों ने अनाज की कीमत को लेकर ट्रैक्टरों के साथ विरोध प्रदर्शन किया है।

अमेरिका की आर्थिक मंदी और ट्रैक्टर मार्च

1973-1975 की मंदी या कहे कि 70 के दशक की मंदी के दौरान पश्चिमी दुनिया के अधिकांश हिस्सों में आर्थिक ठहराव की अवधि थी, जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के समग्र आर्थिक विस्तार को तबाह कर दिया। यह स्टैगफ्लेशन को शामिल करके पिछली कई मंदी से भिन्न थी, जिसमें उच्च बेरोजगारी और उच्च मुद्रास्फीति एक साथ मौजूद थी। याद किया जा रहा है कि कैसे ये ट्रैक्टर विरोध प्रदर्शन ने सत्तर के दशक के अंत में अमेरिका में आर्थिक मंदी के दौरान क्रोध का प्रतीक बन गए थे। कृषि बिल जैसी सरकारी योजनाओं ने उत्पादन में वृद्धि की थी, लेकिन कमोडिटी मूल्य समर्थन की मांग ने बड़े पैमाने पर आंदोलनों को बढ़ावा दिया था। उस समय की समाचार रिपोर्टों से पता चलता है कि 1978 में लगभग 3,000 किसानों ने एक मार्च निकाला था और यहां तक ​​कि बकरियां भी लाए थे, जिन्हें कैपिटल मैदान में छोड़ दिया गया था, जिससे मीडिया में हंगामा मच गया था।

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