New Delhi: Forgotten PM बनाने की कांग्रेसी कोशिश को धूमिल करती मोदी सरकार, इकनॉमिक पालिसी में बदलाव, न्यूक्लियर बम वाला दांव

New Delhi: Forgotten PM बनाने की कांग्रेसी कोशिश को धूमिल करती मोदी सरकार, इकनॉमिक पालिसी में बदलाव, न्यूक्लियर बम वाला दांव

राजनीति में निर्वासित जीवन जी रहे किसी व्यक्ति के अचानक महत्वपूर्ण हो जाने के देश में बहुत उदाहरण मौजूं हैं।  लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव शायद अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो अपनी मृत्यु के डेढ़ दशक बाद सिर्फ मीडिया में ही नहीं अचानक मुख्यधारा की राजनीति में भी सम्मान के साथ याद किए जा रहे हैं। जननायक कर्पूरी ठाकुर और लाल कृष्ण आडवाणी के बाद अब मोदी सरकार ने  चौधरी चरण सिंह व पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का ऐलान किया है। अपने एक्स अकाउंट से पोस्ट करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे पूर्व प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव गरू को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। एक प्रतिष्ठित विद्वान और राजनेता के रूप में, नरसिम्हा राव गरू ने विभिन्न क्षमताओं में भारत की बड़े पैमाने पर सेवा की। उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और कई वर्षों तक संसद और विधानसभा सदस्य के रूप में किए गए कार्यों के लिए समान रूप से याद किया जाता है। उनका दूरदर्शी नेतृत्व भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने, देश की समृद्धि और विकास के लिए एक ठोस नींव रखने में सहायक था। प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव गारू का कार्यकाल महत्वपूर्ण उपायों द्वारा चिह्नित किया गया था जिसने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया, जिससे आर्थिक विकास के एक नए युग को बढ़ावा मिला। इसके अलावा, भारत की विदेश नीति, भाषा और शिक्षा क्षेत्रों में उनका योगदान एक ऐसे नेता के रूप में उनकी बहुमुखी विरासत को रेखांकित करता है, जिन्होंने न केवल महत्वपूर्ण परिवर्तनों के माध्यम से भारत को आगे बढ़ाया बल्कि इसकी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को भी समृद्ध किया।

निजाम के खिलाफ आंदोलन 

वर्ष 1947 में भारत को आजादी मिली लेकिन उस वक्त हैदराबाद के निजाम ने भारत में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया। यहां तक की वंदे मातरम गाने पर रोक लगा दी। इसके बाद नरसिम्हा राव ने निजाम के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। 1951 में राव कांग्रेस में शामिल हुए। वर्ष 1957 से 77 तक वो आंध्र प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। इस दौरान नरसिम्हा राव ने आंध्र प्रदेश में स्वास्थ्य, कानून और सूचना जैसे अहम मंत्रालय भी संभाले। वर्ष 1971 में वो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने। मुख्यमंत्री रहते उन्होंने ही आंध्र प्रदेश में भूमि सुधार की शुरुआत की थी। उस वक्त आंध्र प्रदेश ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य था। 

सिख दंगों के दौरान संभाला मोर्चा

इन्दिरा गांधी की हत्या के चन्द घण्टो बाद ही हैदराबाद से नरसिम्हा राव को वायुसेना के विमान से दिल्ली लाया गया था। तब सिख-विरोधी दंगों से दिल्ली जल रही थी। बाद में राजीव गांधी ने उन्हें रक्षा तथा मानव संसाधन मंत्री बनाया। जब पंजाब आतंकवाद से धधक रहा था, दार्जिलिंग में गोरखा और मिजोरम में अलगाववादी समस्या पैदा हो रही थी तो इन्दिरा गांधी ने नरसिम्हा राव को गृह मंत्री बनाया था। 

समाधि स्थल को लेकर कांग्रेस का भेदभाव

दिसंबर 2004 में राव की मृत्यु हो गई। कांग्रेस तब तक केंद्र में सत्ता में वापस आ गई थी। सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। राव की मृत्यु के एक दिन बाद, शव को नई दिल्ली के अकबर रोड पर कांग्रेस मुख्यालय के द्वार पर लाया गया। लेकिन राव के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए अंदर नहीं जाने दिया गया। उनके पार्थिव शरीर को एआईसीसी के गेट के बाहर फुटपाथ पर रखा गया था। इस बात की पुष्टि वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा ने अपनी आत्मकथा Courage & Commitment में की थी, जो 2016 में प्रकाशित हुई। तब कांग्रेस का बचाव करते हुए यह तर्क दिया गया था कि राव का शरीर इतना भारी था कि उसे गन कैरेज से उठाकर कांग्रेस मुख्यालय के अंदर रखना मुश्किल था। परिजनों की इच्छा का हवाला देकर शव को हैदराबाद ले जाया गया।  पूर्व प्रधानमंत्री होने के नाते राव का समाधि स्थल दिल्ली में होना चाहिए था। लेकिन यूपीए सरकार ने फैसला किया कि राजधानी में जगह की कमी है और अब यहां समाधिस्थल नहीं बनाए जा सकते।  इस फैसले से साफ था कि कांग्रेस अपने ही पूर्व अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के साथ कोई जुड़ाव नहीं रखना चाहती थी। विडम्बना तो यह थी कि संजय गांधी जो कभी भी किसी भी राजपद पर नहीं रहे, की समाधि राजघाट परिसर में बनी।

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